न्यू वर्ल्ड ऑर्डर-03 : मुग़ल सल्तनत और अवध पर क़ब्ज़ा
मैसूर पर क़ब्ज़ा करने के बाद अब अंग्रेजों को दिल्ली की ओर बढ़ना था। उत्तर और दक्षिण के बीच में थी एक बड़ी रुकावट थी, जिसे "मराठा साम्राज्य" कहते हैं। उस समय मराठों का सम्राट था, पेशवा बाजीराव (द्वितीय) जो सन 1796 से 1818 तक मराठा साम्राज्य के पेशवा रहा।
पेशवा बाजीराव (द्वितीय) अंग्रेज़ों से संधि करते हुए
इतिहास बताता है कि पेशवा बाजीराव (द्वितीय) एक कायर व्यक्ति था, उसने कई मराठा क्षेत्र अंग्रेज़ों को दे दिये थे। पेशवा बाजीराव (द्वितीय) ने एक अंग्रेज़ी जहाज़ पर 31 दिसम्बर 1802 को बसई की संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इस संधि के द्वारा उसने ईस्ट इंडिया कम्पनी के मातहत होना मंज़ूर कर लिया। उसने यह भी वादा किया कि वह अपने यहाँ अंग्रेज़ों से दुश्मनी रखने वाले अन्य यूरोपीय देश के लोगों को नौकरी पर नहीं रखेगा। इस प्रकार बाजीराव (द्वितीय) ने अपनी रक्षा के लिये अंग्रेज़ों के हाथ आज़ादी बेच दी।
परन्तु अंग्रेज़ों के साथ भी वह सच्चा सिद्ध नहीं हुआ। नवम्बर 1817 में बाजीराव (द्वितीय) के नेतृत्व में गठित मराठा सेना ने पूना की 'अंग्रेज़ी रेजीडेन्सी' को लूटकर जला दिया और खड़की स्थित अंग्रेज़ी सेना पर हमला कर दिया, लेकिन वह पराजित हो गया।
भीमा कोरेगाँव युद्ध
1 जनवरी 1818 में भीमा कोरेगाव की लड़ाई हुई। 500 महार सैनिकों और मुट्ठी भर अंग्रेज़ सेना ने पेशवा के 28,000 मराठा सैनिकों को हरा दिया।
एक महीने के बाद पेशवा बाजीराव (द्वितीय) आष्टी की लड़ाई में भी हारा। उसने भागने की कोशिश की लेकिन 3 जून 1818 को उसे अंग्रेज़ों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा। अंग्रेज़ों ने इस बार पेशवा का पद ही समाप्त कर दिया और बाजीराव द्वितीय को क़ैद करके कानपुर के निकट बिठूर भेज दिया जहाँ 1853 ई. में उसकी मौत हो गई।
अंग्रेजों के लिये अब दिल्ली दूर नहीं थी।
औरंगज़ेब आलमगीर (रह.) आख़री मज़बूत मुग़ल बादशाह थे। उसके बाद उनके तमाम वारिस नाकारा साबित हुए। बात बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर (रह.) की चली है तो एक यादगार क़िस्सा बताना ज़रूरी है।
मुग़ल सम्राट औरंगजेब (रह.)
औरंगज़ेब (रह.) ने अपनी हुकूमत में गाने-बजाने और संगीत पर रोक लगा दी थी। बादशाह के फरमान से गवैयों और संगीतकारों की रोज़ी-रोटी बंद हो गई, उन लोगों ने बादशाह पर दबाव डालने के लिये विरोध-प्रदर्शन करने का फैसला किया।
जुमे का दिन था। 1000 कलाकारों ने दिल्ली की जामा मस्जिद से एक जुलूस निकाला। अपने बाजों और ढोलक-तबलों को एक जनाज़े की तरह उठाकर रोते-पीटते वे दिल्ली की सड़कों से गुज़रे। बादशाह औरंगज़ेब (रह.) ने पूछा, “ये किसका जनाज़ा है, जिसकी ख़ातिर इस क़दर मातम किया जा रहा है?” गवैयों-संगीतकारों ने कहा, “आपने संगीत का क़त्ल कर दिया है, उसे दफ़नाने जा रहे हैं।” औरंगज़ेब आलमगीर (रह.) ने कहा, “अच्छा है! लेकिन क़ब्र थोड़ी गहरी खोदना।”
लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। औरंगज़ेब (रह.) की मौत के बाद उन्हीं के वारिसों ने संगीत के उस मुर्दे को क़ब्र से बाहर निकालकर महलों में पनाह दे दी। तवायफों के कोठे आबाद हुए। घुंघरुओं की झंकार ने तलवारों की खनकार से सुल्तानों और शहज़ादों को दूर कर दिया। शाही दरबारों में मुजरे सुने जा रहे थे इसलिये अंग्रेज़ों को उनकी सुल्तानी और शाही ठाठ-बाट का जनाज़ा निकालने में ज़्यादा मुश्किल नहीं हुई।
दिल्ली और अवध जैसी बड़ी रियासतों ने अंग्रेजों से बिना लड़े “ट्रीटी (संधि)” कर ली। बादशाह और नवाब अंग्रेज़ों के पेंशनधारी ग़ुलाम बन गये।
अंग्रेज़ सेना
यही हाल हिन्दू राजाओं का था। झाँसी से लेकर ग्वालियर तक और राजस्थान की मेवाड़, उदयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर से लेकर पंजाब तक, हर रियासत के राजा ने अंग्रेजों से लड़ने के बजाय संधि कर ली। हर जगह अंग्रेज़ बिना जंग के कामयाब थे।
जब बड़ी-बड़ी रियासतें अंग्रेजों के आगे बिछी जा रही थी तो छोटी-छोटी रियासतों की तो हैसियत ही क्या थी? अंग्रेज़ों का झंडा, "यूनियन जैक" धीरे-धीरे सबको अपने मातहत किये जा रहा था। एशिया में अंग्रेज़ नामी एक महाशक्ति अपने एजेण्डे को लागू करने बड़े ही सधे क़दमों से आगे बढ़ रही थी। न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के मंसूबे की दास्तान अगली कड़ी में जारी रहेगी।
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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़,
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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