न्यू वर्ल्ड ऑर्डर-01 : बंगाल में अंग्रेज़ समर्थित सरकार
आज सोशल मीडिया पर मुसलमान एक ही मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, वो है फलस्तीन। लेकिन फलस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके इस्राईल किस ख़ास मंसूबे के तहत बनाया गया? इस मुद्दे पर बहुत कम ही चर्चा हो रही है। हम इस सीरीज़ में जज़्बाती बातें नहीं करेंगे बल्कि ज़मीनी हक़ीक़त आपके सामने लाने की कोशिश करेंगे, इन् शा अल्लाह! एक ऐसी सच्चाई जिससे ज़्यादातर लोग अनजान हैं। आपसे गुज़ारिश है कि इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें ताकि लोग समझ सकें कि जो नज़र आ रहा है, उसके पीछे की हक़ीक़त क्या है?
इस आर्टिकल में दिये गये नक़्शे को देखिये। ये 1750 की दुनिया का नक़्शा है। हरे रंग में जो ख़ित्ता (भूभाग) नज़र आ रहा है वो ख़िलाफ़ते-उस्मानिया है। केसरिया रंग में जो ख़ित्ता है वो सफ़वी (शिया) सल्तनत है और बैंगनी रंग में हिंदुस्तान की मुग़लिया सल्तनत है। उत्तर और पश्चिम दिशा में ख़िलाफ़ते-उस्मानिया की सरहद ईसाई देशों से मिलती थीं, जिनमें ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल, रूस आदि देश थे। 1776 से पहले तक अमेरिका भी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था।
अंग्रेज़ों ने एक सुनियोजित (Well Planned) तरीक़े से काम किया और मुसलमानों के हाथों से ज़मीन सिकुड़ती गई। एक दौर वो था जब आधी से ज़्यादा दुनिया पर मुस्लिम वर्चस्व था। इसी मुस्लिम वर्चस्व को तोड़ने के लिये अंग्रेज़ों की तदबीर (योजना) थी पूरब से पश्चिम की ओर बढ़ना। लेकिन क्यों?
■ अंग्रेज़ों ने पूरब पर फ़ोकस क्यों किया?
एक हदीस में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, मुझसे पहले की उम्मतें पश्चिमी हवाओं से हलाक (समाप्त) कर दी गई लेकिन मेरी मदद पूरब की हवाओं से की गई। (सहीह बुख़ारी : 3205)
मुसलमानों का वर्चस्व या यूँ कहें कि ख़िलाफ़ते-उस्मानिया को ख़त्म करने के लिये शायद इसीलिये अंग्रेज़ों ने सबसे पहले पूरब की ओर अपना फोकस सेट किया ताकि उसको "मुस्लिम इंडिया" से मिलने वाली सम्भावित मदद रोकी जा सके।
दुनिया का पूरब यानी हिंदुस्तान और हिंदुस्तान का पूरब यानी बंगाल।
23 जून 1757 को ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंग्रेज़ कमांडर लॉर्ड क्लाइव ने प्लासी की जंग में अविभाजित बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया। नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर ज़ाफ़र ने लॉर्ड क्लाइव का साथ दिया था। शायद उसी दिन से भारत में मीर ज़ाफ़र शब्द, "ग़द्दारी का प्रतीक" बन गया।
भारत के मुस्लिम सुल्तान व नवाब तुर्क शासकों को ख़लीफ़ा मानते थे, लेकिन सफ़वी राजवंश के शिया हुक्मरान उन्हें ख़लीफ़ा नहीं मानते थे।
1757 से लेकर 1857 के दौरान, 100 साल की अवधि में अंग्रेज़ पूरब से पश्चिम तक धीरे-धीरे आगे बढ़े। 1857 में मुग़लिया सल्तनत ख़त्म दी गई। अंग्रेज़ों के क़दम अब बलोचिस्तान तक पहुंच चुके थे यानी ईरान की सरहद तक। यह वो समय था जब उस्मानिया सल्तनत की सफ़वी सल्तनत के साथ जंग चल रही थी। इस जंग के नतीजे में सफ़वी सल्तनत सिमटकर सिर्फ़ ईरान तक सीमित रह गई।
अब अंग्रेज़ों का टार्गेट था, ख़िलाफ़ते-उस्मानिया जिसे वो लोग ऑटोमन एम्पायर (उस्मानिया सल्तनत) कहते थे।
वो वक़्त भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
लम्हों ने ख़ता की, सदियों ने सज़ा पाई।
यह दास्तान अगले कुछ पार्ट्स में जारी रहेगी, इन् शा अल्लाह! "आदर्श मुस्लिम डॉट कॉम" पर विज़िट करना अब आप अपनी रोज़ाना की आदत बना लीजिये। हम इस सीरीज़ के तहत कई अहमतरीन जानकारियां आप तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे, इन् शा अल्लाह!
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सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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