तब्सरा-4 : सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिये

इस आर्टिकल में हम डॉ. राहत इंदौरी की एक ग़ज़ल पर तब्सरा पेश करेंगे। इस ग़ज़ल के शुरुआती तीन अश'आर के पीछे एक-एक दास्तान छुपी हुई है। हम आपसे गुज़ारिश करते हैं कि इस तब्सरा को थोड़ी तवज्जो देकर पढ़ियेगा।

सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं, आँखों में पानी चाहिये,
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को, ख़ानदानी चाहिये।

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के एक बेटे काबील ने हसद में अंधे होकर अपने भाई हाबील का क़त्ल कर दिया। यह इस धरती पर पहला क़त्ल था और पहली इंसानी मौत थी। काबील को समझ में नहीं आ रहा था कि वो अपने भाई की लाश का क्या करे? उसने एक कौवे को देखा जो चोंच से मिट्टी खोदकर अपने साथी कौवे की लाश को दफना रहा था।

यह मंज़र देखकर काबील रोया और पछताया। उसने अपने भाई की लाश को दफ़नाया। काबील अपने भाई का क़ातिल था, उसका दुश्मन था लेकिन ख़ानदानी था। हालांकि उसका जुर्म इतना बड़ा है कि क़यामत के दिन उसे कड़ी सज़ा दी जाएगी।

आज के दौर में जब धार्मिक आधार पर पीट-पीटकर भीड़ मार देती है जिसे मॉब लिंचिंग कहते हैं। जब पुलिस की गोली से घायल एक धर्म विशेष के व्यक्ति पर दूसरे धर्म का फोटो पत्रकार कूद-कूदकर मार देता है, तब आप समझ सकते हैं कि शायर की नज़र में दुश्मन के ख़ानदानी होने के ज़िक्र का क्या मतलब है?

शहर की सारी अलिफ़-लैलाएँ बूढ़ी हो चुकीं,
शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिये।

एक शहज़ादे को अजीब-सी सनक सवार थी। वो शादी करता और दुल्हन के साथ रात गुज़ारने के बाद सुबह उसे क़त्ल कर देता। कई लड़कियां उसकी सनक में मारी गईं। उसके मंत्री की ख़ूबसूरत बेटी से उसने शादी की। सब यह समझ रहे थे इस बदनसीब लड़की की ज़िंदगी एक रात के बाद ख़त्म हो जाएगी। मगर वो लड़की समझदार थी। उसने शादी की पहली रात, शहज़ादे को एक कहानी सुनाना शुरू की। कहानी को बड़े ही दिलचस्प मोड़ पर लाकर सुबह उस लड़की ने कहा, बाक़ी कहानी कल सुनाऊँगी, अगर ज़िंदा रही तो। शहज़ादे को कहानी का अगला हिस्सा सुनने की बड़ी उत्सुकता थी, इसलिये लड़की का क़त्ल मुल्तवी कर दिया गया।

अगली रात लड़की कहानी को आगे बढ़ाया और फिर सुबह होते-होते पुरानी कहानी में एक नई कहानी जोड़कर फिर एक दिलचस्प मोड़ पर उसे अधूरी छोड़ दिया। यह सिलसिला एक हज़ार रातों तक चला, इसलिये उन कहानियों को अल्फ़ लैला (हज़ार रातें) कहा गया, जिसका बिगड़ा हुआ रूप अलिफ़ लैला है।

बहरहाल इन हज़ार रातों यानी तीन साल के वक़्त ने शहज़ादे की सनक ख़त्म कर दी और वो अपनी बीवी के साथ अच्छी ज़िंदगी गुज़ारने लगा।

डॉ. राहत इंदौरी ने इस शे'र के ज़रिए शासन व्यवस्था पर तंज़ किया है कि आधुनिक दौर के शहज़ादे की सनक हज़ार रातों में भी ख़त्म नहीं हुई है, उसे फिर कोई नई कहानी चाहिये, भले ही इसके लिये इतिहास से खिलवाड़ करना पड़े।

मेरी क़ीमत कौन दे सकता है, इस बाज़ार में,
तुम ज़ुलेख़ा हो, तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिये।

इस शे'र के पीछे हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) का वाक़या छुपा हुआ है।हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को उनके भाइयों ने हसद में अंधे होकर एक कुंवे में डाल दिया ताकि वो मर जाएं। उस रास्ते से एक काफ़िला गुज़रा, पानी के लिये कुंवे में डोल डाला, हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) डोल पकड़कर बाहर आये तो उस काफ़िले वालों ने उन्हें ग़ुलाम बनाकर मिस्र के बाज़ार में बेच दिया। मिस्र के वज़ीर ने उन्हें ख़रीदा और बेटा बनाकर अपने घर ले आया।

हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) जब जवान हुए तो हुस्ने-यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) पर वज़ीर की बीवी ज़ुलैख़ा फिदा हो गई। उसने हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को अपने साथ बदकारी करने की दावत दी मगर हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने इंकार कर दिया। ज़ुलैख़ा की बदनामी हुई तो उसने हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को जेल में डलवा दिया।

ज़ुलैख़ा ने हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की क़ीमत यह लगाई कि या तो वे उसके साथ नाजायज़ रिश्ता बनाए या फिर जेल जाएं। हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने गुनाह करने के बजाय जेल में डाला जाना क़ुबूल किया। आज के दौर में भी यही हो रहा है, अगर कोई ईमानदारी के साथ जीना चाहे तो समाज के भ्रष्ट लोग उसे जीने नहीं देते। बेईमान छुट्टे घूमते हैं और ईमानदार लोग जेल की सलाखों के पीछे सड़ने पर मजबूर होते हैं।

आर्टिकल को बहुत ज़्यादा तवील (लंबा) होने से बचाने के लिये हमने ऊपर के तीनों अश'आर के पीछे छुपे क़िस्सों को इख़्तिसार (संक्षेप) में पेश किया है। उम्मीद है आप इनमें छुपे ज्ञानभरे संदेश को समझ गये होंगे।

मैं ने ऐ सूरज तुझे, पूजा नहीं समझा तो है,
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिये।

इस शे'र का इशारा साफ़ है। इसमें अप्रत्यक्ष रूप से शासन व्यवस्था से सवाल है कि अगर हम उसकी भक्ति नहीं करते तो क्या हुआ, हम उसे सरकार मानते तो हैं; इसलिये हमें हमारे नागरिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

ज़िंदगी है इक सफ़र और ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदगी भी आए तो, ठोकर लगानी चाहिये।

इस शे'र में अपने मिशन के प्रति जुनून की हद तक लगाव पैदा करने की बात कही गई है। ज़िंदगी गुज़ारने के लिये अपने उसूलों से कोई समझौता नहीं करना चाहिये।

मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू, छलका दिया,
इक समुंदर कह रहा था, मुझ को पानी चाहिये।

शोषण करने वाले लोगों के लिये ख़ून और पानी में कोई फ़र्क़ नहीं होता। इस शे'र में उसी की तरफ़ इशारा किया गया है।

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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क

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Comments (3)
Agha Jaan Sheikh

Very Nice. I really admired your paryaas You done a good and hard job. Pl. Continue.

Fri 15, Oct 2021 · 07:17 pm · Reply
Saleem Khilji · Editor-in-Chief

Jakir Hussain
I really appreciate everything that you do.

शुक्रिया

Fri 15, Oct 2021 · 06:09 pm · Reply
Jakir Hussain

I really appreciate everything that you do.

Fri 15, Oct 2021 · 05:37 pm · Reply