मीडिया सेक्टर में पत्रकारों की छंटनी शुरू
प्रिय पाठकों ! आपको याद होगा हमने 3 मई 2020 को अपनी वेबसाइट पर एक ब्लॉग लिखा था और मीडिया के अस्तित्व पर मंडरा रहे संकट की ओर निशानदेही की थी। आज वही हो रहा है। पढ़िये इस ब्लॉग में।
मैंने 10 साल उस संस्थान में काम किया है। पन्ने पर बदलाव करने के लिए कई बार घर से देर रात वापस ऑफ़िस भी गई ताकि एडिशन ठीक से निकले। लेकिन मेरी 10 साल की सर्विस को ख़त्म करने में उन्हें कुछ ही मिनट लगे।
ये शब्द एक महिला पत्रकार के हैं जो हिंदी अख़बार नवभारत टाइम्स में काम करती थीं और कुछ दिनों पहले अचानक उनसे इस्तीफ़ा माँग लिया गया है। नवभारत टाइम्स में वह अकेली नहीं हैं बल्कि सीनियर कॉपी एडिटर से लेकर एसोसिएट एडिटर स्तर तक के कई पत्रकारों से इस्तीफ़ा देने को कहा गया है। इस संस्थान में दिल्ली-एनसीआर, लखनऊ और अन्य ब्यूरो से लोग निकाले गए हैं। सांध्य टाइम्स और इकोनॉमिक टाइम्स (ईटी) हिंदी बंद हो गए हैं। इसके अलावा फ़ीचर पेज की टीम को भी मिला दिया गया है।
इसी संस्थान के एक और पत्रकार ने बताया कि एक दिन संपादक और एचआर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके कहा कि लॉकडाउन के कारण कंपनी नुक़सान में है और इसलिए आपकी सेवाएं ख़त्म की जा रही हैं। आप दो महीने का वेतन लीजिए और इस्तीफ़ा दे दीजिये।
(यहाँ पढ़ें) कोरोना इफेक्ट्स-02 : प्रिंट मीडिया के वजूद का संकट
मीडिया में नौकरी जाने की शुरुआत मार्च में लॉकडाउन के कुछ समय बाद ही हो गई थी। अलग-अलग मीडिया संस्थानों से बड़ी संख्या में पत्रकारों को नौकरी से निकाला जाने लगा। ये सिलसिला अब तक जारी है। मीडिया संस्थानों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उनके अख़बारों का सर्कुलेशन कम हुआ है, सप्लीमेंट बंद हो रहे हैं और विज्ञापन का पैसा भी कम हुआ है। किसी संस्थान ने कर्मचारियों को बिना वेतन की छुट्टियों पर भेज दिया है, किसी ने दो महीने का वेतन देकर इस्तीफ़ा माँगा है, तो किसी ने तुरंत प्रभाव से निकाल दिया है।
कहाँ-कहाँ हुई छँटनी?
◆ हाल ही में दैनिक हिंदी अख़बार हिंदुस्तान का एक सप्लीमेंट स्मार्ट बंद हुआ है। इस सप्लीमेंट में क़रीब 13 लोगों की टीम काम करती थी जिनमें से आठ लोगों को कुछ दिनों पहले इस्तीफ़ा देने के लिए बोल दिया गया।
◆ हिंदी न्यूज़ वेबसाइट राजस्थान पत्रिका के नोएडा दफ़्तर सहित कुछ और ब्यूरो से भी लोगों को टर्मिनेशन लेटर दे दिया गया है। उन्हें जो पत्र मिला है उसमें दो या एक महीने का वेतन देने का भी ज़िक्र नहीं है। सिर्फ़ बक़ाया लेने के लिए कहा गया है।
◆ इसी तरह हिंदुस्तान टाइम्स (एचटी) ग्रुप में भी पत्रकार से लेकर फ़ोटोग्राफ़र तक की नौकरियों पर संकट आ गया है। एचटी ग्रुप के ही सप्लीमेंट मिंट और ब्रंच से भी लोगों को इस्तीफ़ा देने के लिए कहा है।
◆ द क्विंट नाम की न्यूज़ वेबसाइट ने अपने 200 लोगों की टीम में से क़रीब 45 को फ़र्लो यानी बिना वेतन की छुट्टियों पर जाने को कह दिया है।
◆ दिल्ली-एनसीआर से चलने वाले न्यूज़ चैनल न्यूज़ नेशन ने 16 लोगों की अंग्रेज़ी डिजिटल की पूरी टीम को नौकरी से निकाल दिया था।
◆ टाइम्स ग्रुप में ना सिर्फ़ लोग निकाले गए हैं बल्कि कई विभागों में छह महीनों के लिए वेतन में 10 से 30 प्रतिशत की कटौती भी गई है।
◆ इसी तरह नेटवर्क-18 में भी जिन लोगों का वेतन 7.5 लाख रुपये से अधिक है, उनके वेतन में 10 प्रतिशत की कटौती हुई है।
22 मार्च 2020 के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों की तरह मीडिया की भी इस महामारी से लड़ने में अहम भूमिका होगी। प्रधानमंत्री ने यह आग्रह भी किया था, *आप अपने व्यवसाय, उद्योग में साथ काम करने वाले लोगों के प्रति संवेदना रखें और किसी को नौकरी से ना निकालें।
लेकिन, उसके बावजूद भी संस्थान बेधड़क अपने कर्मचारियों से इस्तीफा ले रहे हैं। पत्रकारों पर दोहरी मार पड़ी है। पहली, लॉकडाउन में नौकरी छूट जाना और दूसरी, किसी अन्य संस्थान में फ़िलहाल नौकरी मिलना मुश्किल होना।
भारतीय जन संचार संस्थान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉक्टर आनंद प्रधान कहते हैं, ये आर्थिक संकट पिछले एक-डेढ़ साल से चल रहा था। अख़बार से लेकर न्यूज़ चैनल तक, सबकी विज्ञापनों से कमाई में कमी आ रही थी। अब कोरोना वायरस के कारण ये संकट अचानक और गहरा गया है जिसका असर हम देख रहे हैं। लेकिन बड़े मीडिया समूहों कि आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब नहीं है कि उन्हें लोगों को नौकरी से निकालना पड़े। ये लोग एक-डेढ़ साल मैनेज कर सकते थे।
असल बात यह है कि मीडिया सेक्टर में कॉर्पोरेट की भी एंट्री हो गई है। मिसाल के तौर पर नेटवर्क-18 टीवी चैनल, रिलायंस का है। जो कम्पनियां शेयर मार्केट में लिस्टेड हैं वे अपने को मुनाफा में दर्शाने के लिये, हायर एंड फायर की नीति अपनाते हैं। जब ज़रूरत कम हुई तो कर्मचारियों को निकाल दिया ज़रुरत बढ़ी तो फिर नये लोगों को रख लिया।
हालाँकि मीडिया कम्पनियां झूठ बोल रही है। जो अख़बार पहले 25 पन्नों का होता था, वो आजकल 15 पन्नों का हो गया है, यानी काग़ज़ और छपाई का ख़र्च भी कम हुआ है। त्यौहारों और चुनावों के सीज़न में ये कंपनियाँ कई गुना मुनाफ़ा कमाती हैं, उस समय वे कर्मचारियों को भी फ़ायदा नहीं देती हैं तो फिर नुक़सान की भरपाई के नाम पर पत्रकारों की छंटनी क्यों की जा रही है?
सरकार से इन अख़बारों को सब्सिडी भी मिलती है तो सरकार इन मीडिया कॉर्पोरेट पर दबाव डालकर लोगों की नौकरी बचाने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है? ज़रुरत इस बात की है कि मीडिया को कॉर्पोरेट से मुक्त कराया जाए। लोग मीडिया से सूचना पाते हैं, जागरुक होते हैं, इसलिये ये जन कल्याण से जुड़ा काम है। अगर मीडिया संस्थान बंद होने लगे या उनकी टीम छोटी होने लगे तो यह लोकतंत्र के लिये बेहद घातक होगा। सूचना और विचारों की अभिव्यक्ति पर बुरा असर पड़ेगा।
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