लॉकडाउन में खोया बचपन कौन लौटाएगा?
मुद्दत हुई खुला आसमां देखे हुए,
दोस्तों से मिले शरारतें करते हुए।
घर में इस से तरह कैद,
मैं कब तक रह पाऊंगा?
क्या ये सच हैं "मां",
मैं अब बाहर कभी नहीं जा पाऊंगा?
एक मासूम बचपन का दिल झकझोर देने वाला सवाल अपनी "मां" से और शून्य में ताकती माँ के पास कोई जवाब नहीं।
नन्हीं ज़िंदगी, अल्हड़पन, सबको लुभाने वाली अदाएं, कभी यहां तो कभी वहां घूमने में मशगूल, थका देने वाली शरारतें, घर के हर कोने से लेकर आंगन चोबारों, गली मोहल्लों तक उछल-कूद शोर-शराबा, हंगामा और मस्ती। यही तो है ज़िंदगी का वो सबसे हसीन पल जिसे "बचपन" कहा जाता है।
अबसे पहले वक़्त चाहे जैसा रहा हो, मौसम ने चाहे जैसी करवट ली हो लेकिन ये तय था कि हमारे वतन में नन्हीं मुस्कान को कभी कोई ख़तरा नहीं था। ये वही देश है जहां छोटा भीम जैसा कार्टून कैरेक्टर भी किसी सुपर हीरो से कम प्रसिद्ध नहीं है।
हालिया दो साल ना सिर्फ भारत पर बल्कि पूरी दुनियां पर जैसे कहर बनकर टूटे है। हमारे यहां कोई बम-बंदूक़ों की दहशत नहीं फैली है यहां तो दहशत फैली है एक ऐसे अनदेखे, अनसमझे "वायरस" की जिसे पीटा नहीं जा सकता, जिसे धुतकारा भी नहीं जा सकता और तो और हम उसे सॉरी कहकर यहां से जाने का भी नहीं कह सकते।
हालिया इन दो सालों में इस वायरस ने ना जाने कितने घरों में इन मासूम फरिश्तों से क्या-क्या छीन लिया है? किसी से मां का प्यार, किसी से पिता का साया, किसी से दादा-दादी, नानू-नानी का दुलार, तो किसी से भाई-बहन का साथ छीन लिया है।
घर की चारदीवारी जहां इस मासूम से बचपन की अठखेलियां वातावरण में मिठास घोल देती थी वो ही इस लॉक डाउन की पाबन्दियों से मानो अब उदासी फैला रही हैं। घर के भीतर किसी अपराधी की तरह क़ैद ये कुंद होता बचपन जैसे आंखो को चुभन दे रहा है। कहीं किसी के खोने के गम में ग़मगीन है ये बचपन, तो कहीं पर किसी से ना मिल पाने को लेकर बेचैन है ये बचपन।
इस मासूम बचपन को अब ये लगने लगा है कि शायद इन्हें किसी बड़ी-सी शरारत करने या कोई ग़लत ज़िद करने की बड़ी सख़्त सज़ा मिली है।
लॉक डाउन नाम की जेल में क़ैद यह बचपन, अपने घर की खिड़कियों से झांकता है, अपने नन्हें दोस्तों से दूर, खुले आसमान से अलग और बहते पानी में काग़ज़ की नाव चलाने के उत्साह, उमंग और आंनद से जुदा।
एक साल से ज़्यादा हुआ स्कूल की सूरत देखे। मोहल्ले की गलियों में खेलने से महरूम एक मासूम बच्चा जब मां का पल्लू पकड़कर, रोते हुए पूछता है, " क्या ये सच है मां अब मैं कभी घर से बाहर नहीं जा सकूंगा? इस नहीं-सी ज़बान से निकला ये बड़ा सवाल जिसका जवाब ना होने पर एक मां पर बीतती है, ये अवर्णनीय है, शब्दहीन है।
मेडिकल एक्सपर्ट्स कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं, कह रहे हैं कि वो बच्चों के लिये घातक हो सकती है। हम तो अपने रब (पालनहार) से यही दुआ करते हैं कि वो कभी न आए, इन मासूमों से हमेशा दूर बहुत दूर रहे। हमारी यही आरज़ू है कि ये कोराना हमेशा के लिए दुनिया से अलविदा हो जाए ताकि मासूम बचपन की नटखट अदाओं से शहर के गली-मोहल्लों में छाई वीरानी ख़त्म हो।
माजिद शेख (प्रिंसिपल), इंदौर/बड़वानी मध्यप्रदेश मोबाइल : 9752026290 Email : majidsheikh 337@gmail.com |
इस आर्टिकल पर नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके आप अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं। इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कीजिये। सलीम ख़िलजी (एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क) जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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