क्या मौत को किसी दुनयावी तदबीर से टाला जा सकता है?
1 मई 2021 को राजद नेता, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, शेरे-सीवान के नाम से मशहूर डॉ. मोहम्मद शहाबुद्दीन का नई दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में इंतक़ाल हो गया। उस वक़्त सोशल मीडिया पर यह ख़बरें ज़ोरो-शोर से चल रही थी कि अगर उन्हें इलाज के लिये AIIMS नई दिल्ली भेजा जाता तो उनकी जान बच सकती थी।
उन वायरल ख़बरों में कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन, छोटा राजन की मिसाल दी जा रही थी कि उसे कोरोना संक्रमण होने पर इलाज के लिये AIIMS नई दिल्ली में भेजा गया तो डॉ. शहाबुद्दीन को क्यों नहीं भेजा गया? 7 मई 2021 को गैंगस्टर छोटा राजन की AIIMS नई दिल्ली में मौत की खबर आई। जिसका देर रात AIIMS के अधिकारीयों ने खंडन किया, हालाँकि इसी AIIMS में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी समेत कई बड़े बड़े नेताओं का निधन हो चुका है, इससे यह साबित हुआ कि किसी बड़े से बड़े अस्पताल में जाने से जान नहीं बचती, अगर अल्लाह ने मौत का वक़्त मुक़र्रर कर दिया है।
आज के इस ब्लॉग में हम क़ुरआन व सहीह अहादीस के हवाले से जानेंगे कि इस्लामी शरीअत में मौत के बारे में क्या फ़रमान हैं? क्या कोई चीज़ मौत को टाल सकती है?
मौत एक अटल सच्चाई है। इसके बारे में अल्लाह तआला क़ुरआन में इर्शाद फ़रमाता है,
◆ हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है। (सूरह अनक़बूत : 57)
◆ और जब किसी का मुक़र्रर वक़्त आ जाता है तो फिर उसे अल्लाह तआला हरगिज़ मोहलत नहीं देता। (सूरह मुनाफिक़ून : 11)
◆ जब तुम में से किसी की मौत आ पहुँचती है तो उसकी रूह हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) क़ब्ज़ कर लेते हैं और वो ज़रा भी कोताही नहीं करते। (सूरह अन्आम : 61)
जब मौत का तयशुदा वक़्त आ पहुँचता है तो बड़े से बड़ा डॉक्टर या बड़े से बड़ा अस्पताल भी कुछ नहीं कर सकता। क़ुरआन करीम में इसके बारे में इर्शादे-बारी तआला है,
◆ हरगिज़ नहीं! जब रूह हंसली तक आ पहुंचेगी और कहा जाएगा, है कोई इलाज करने वाला? और उसने जान लिया कि यह वक़्त जुदाई का है और पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी और रूह अपने रब की तरफ़ उस दिन रवाना होगी। (अल क़ियामह : 26 से 30 तक)
■ जब मौत मुक़द्दर है तो इलाज क्यों कराएं?
इन क़ुरआनी आयतों को पढ़ने के बाद कोई शख़्स यह कह सकता है कि जब मौत मुक़र्रर है तो इलाज क्यों कराएं? इसका जवाब यह है कि इंसान, अल्लाह तआला की अफ़ज़लतरीन मख़लूक़ (सर्वश्रेष्ठ रचना) है। इस्लाम तो इंसान के सम्मान की ख़ातिर, मरने के बाद उसके मुर्दा शरीर को भी जलाने से मना करता है। इसलिये बीमार का हर मुमकिन इलाज कराया जाए ताकि मरीज़ तड़पे नहीं।
अल्लाह के रसूल, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया,
◆ अल्लाह तआला ने जितनी बीमारियां उतारी हैं, उनका इलाज भी उतारा है, इसलिये तुम इलाज करो। (सुनन इब्ने माजह)
■ क्या मौत को टाला जा सकता है?
ज़िंदगी देना और मौत देना, सब अल्लाह तआला के इख़्तियार में है। लिहाजा उसी से दुआ की जाए, वो ज़िंदगी और मौत समेत हर चीज़ पर क़ादिर (सामर्थ्यवान) है। वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है।
◆ अल्लाह तआला फ़रमाता है, तुम सब मुझसे दुआ करो, मैं तुम्हारी दुआ क़ुबूल करूंगा। (सूरह मोमिन : 60)
◆ हज़रत अय्यूब (अलैहिस्सलाम) ने लम्बे अर्से तक बीमार रहने के बाद अल्लाह तआला से दुआ की, ऐ मेरे रब! मुझे बीमारी लग गई है और तू रहमान व रहीम है। (सूरह अम्बिया : 83)
◆ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, दुआ ही तक़दीर को फेर सकती है। (तिर्मिज़ी, इब्ने माजह, मुसनद अहमद, हाकिम)
◆ आपने यह भी इर्शाद फ़रमाया, दुआ उस बला से नजात (मुक्ति) दिलाती है जो उतर चुकी है और उस बला से भी जो अभी तक नहीं उतरी है। जब कोई बला या मुसीबत उतरती है तो दुआ उससे लड़ती है और रोकती है। दुआ और बला का यह मुक़ाबला क़यामत तक जारी रहेगा। (तबरानी, मिश्कात, बज्जार)
◆ एक और हदीस में अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, सदक़ा बुरी मौत और बलाओं से बचाता है। (मुसनद अहमद)
◆ इसी तरह एक और हदीस में आपने इर्शाद फ़रमाया, सदक़ा देने में जल्दी करो क्योंकि सदक़ा देने से मुसीबत नहीं बढ़ती। (रज़ीन)
इसी तरह एक और हदीस में अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सिलारहमी करने यानी रिश्ते-नाते जोड़ने और उनसे अच्छा बर्ताव करने पर उम्र लम्बी होने की ख़ुशख़बरी दी है।
■ मौत पर सब्र क्यों करना चाहिये?
दुआ, सदक़ा, सिलारहमी समेत इन सारी तदबीरों के अपनाने के बाद भी अगर किसी इंसान की मौत हो जाए तो फिर सब्र करना चाहिये। अल्लाह तआला पर ईमान रखते हुए यह सोचना चाहिये कि शायद उस शख़्स का बीमारी भुगतते हुए ज़िंदा रहना, उसके लिये मौत से भी ज़्यादा बदतर होता। हो सकता है कि उसकी बीमारी के कारण उसके घरवाले और ज़्यादा परेशान हो जाते।
हम सब अल्लाह के बंदे हैं। हम नहीं जानते कि हमारे हक़ में बेहतर क्या है? अल्लाह तआला जो भी करता है, अच्छा ही करता है; भले ही वक़्ती तौर पर उसकी हिकमत हमें समझ में आये या नहीं। अल्लाह तआला से दुआ है कि वो तमाम इंसानों को हर क़िस्म की बला से महफूज़ (सुरक्षित) रखे और अपने हर फैसले पर हमें राज़ी रहने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, आमीन!
अंत में आपसे यह गुज़ारिश है कि इस मैसेज को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें ताकि दूसरे लोग भी मौत की हक़ीक़त से आगाह हो सकें।
वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
Leave a comment.