किसी को क्या खाना चाहिए, हिंदू धर्म में इसका कोई धर्मादेश नहीं है

आज की इस स्पेशल रिपोर्ट में हम, प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों के आख्यानकर्ता और लेखक, देवदत्त पटनायक का एक लेख प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें उन्होंने यह कहा है कि ऐसी कोई पाबंदी हिंदू धर्म की किताबों में नहीं है कि माँस (गोश्त) नहीं खाना चाहिये, दूसरे शब्दों में यूँ कहा जा सकता है कि हिंदू धर्म का नाम लेकर गोश्त खाने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह लेख 16 मई 2021 को दैनिक भास्कर में छपा था, हमने इसे वहीं से उद्धृत किया है। आप इस लेख को पूरा पढ़िये, फिर अपने ग़ैर-मुस्लिम परिचितों को भी बताइये कि मांसाहार के नाम पर राजनीति की जा रही है और जनता को आपस में लड़ाया जा रहा है।

हम देवदत्त पटनायक और दैनिक भास्कर का शुक्रिया अदा करते हुए यह लेख आपकी सेवा में पेश कर रहे हैं। ज़रूरी मैटर को बोल्ड करने के अलावा हमने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है। (एडिटर)

कई हिंदू व जैन देशांतरवासियों के विश्वभर में फैलने और योग की लोकप्रियता के कारण ‘शाकाहारी’ आहार का विचार प्रचलित हुआ है। शाकाहारी प्रथाएं हिंदुओं को अन्य समुदायों से अलग करती हैं। ये कुछ वर्षों पहले तक पाश्चात्य समाजों में ‘विचित्र’ मानी जाती थीं। इसलिए शाकाहार हिंदू धर्म की निर्धारक विशेषता बन गया है, इसके बावजूद कि आंकड़े इसे प्रमाणित नहीं करते।

हिंदू धर्मावलंबी शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होते हैं। हिंदू धर्म बहुलवादी धर्म है। इस धर्म में कई जातियां, संप्रदाय और परंपराएं सम्मिलित हैं। इनमें से कुछ भले ही कुछ समय के लिए शाकाहारी हों, कुछ और बिल्कुल शाकाहारी नहीं भी हो सकते हैं। हिंदुओं को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, यह बताने वाला कोई धर्मादेश हिंदू धर्म में नहीं पाया जाता।

भारत में अलग-अलग समुदायों में अलग-अलग भोजन की आदतें होती हैं। कोई एक नियम नहीं है जो इन आदतों को निर्धारित करता है। उदाहरण के तौर पर ऐसी मान्यता व्यापक है कि सभी ब्राह्मण शाकाहारी होते हैं। लेकिन यह भी पूरी तरह से सत्य नहीं है। बंगाल में ब्राह्मण मछली खाते हैं और शाक्त परंपरा के अनुसार काली को बकरियों व भैंसों की बलि चढ़ाते हैं। कश्मीर में कुछ ब्राह्मण समुदाय शिव के भैरव रूप को मांस अर्पित करते हैं।

दक्षिण भारत के ब्राह्मण शाकाहारी होते हैं। अपनी उच्च शिक्षा और गणित में निपुणता के कारण वे भारत भर के शहरों में बैंकरों, पत्रकारों और नौकरशाहों के रूप में बस गए। इतने सालों से उनके साथ रहने के कारण बॉलीवुड फ़िल्मों में उन्हें लेकर ‘मद्रासी’ रूढ़ोक्ति निर्मित हुई है, जिसके अनुसार सभी दक्षिण भारतीय केवल शाकाहारी भोजन खाते हैं। इस कारण दक्षिण भारत की कई मांसाहारी परंपराओं को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

भारत के सबसे सफल उद्योगपतियों में से कुछ उद्योगपति जैन समुदाय और गुजरात व राजस्थान के वैष्णव समुदायों से हैं। वे शुद्ध शाकाहारी होते हैं। चूंकि कई विदेशी व्यापारी उनके साथ व्यवहार करते हैं, इसलिए यह विचार फैला कि सभी भारतीय शुद्ध शाकाहारी होते हैं। जैन धर्म के लोग हिंदू धर्मावलंबियों से अलग हैं, हालांकि उनका धर्म भी पुनर्जन्म में विश्वास करता है अर्थात सनातन धर्म में। इन मारवाड़ी और बनिया संस्कृतियों के कारण उत्तर भारत की कई मांसाहारी परंपराओं को भी नज़रअंदाज़ किया जाता है।

देवताओं पर कोई एक नियम लागू नहीं होता। हिंदू पुराणों में विष्णु शुद्ध शाकाहारी देवता हैं, लेकिन अपने नरसिंह अवतार में विष्णु रक्त पीते हैं। वैरागी होने के नाते शिव उन्हें दिया सब कुछ स्वीकार करते हैं। उनके कोमल, गोरा-भैरव रूप में, उन्हें फल और दूध दिया जाता है। लेकिन उनके उग्र, काल-भैरव रूप में, उन्हें रक्त और शराब दी जाती है। देवी को रक्त चढ़ाया जाता है। ओडिशा के वराही मंदिरों में वे मछली खाती हैं। फिर भी कई देवी मंदिरों में जिनमें वे विष्णु के साथ निकटता से जुड़ी हुई हैं, शाकाहारी हैं, जैसे कि महाराष्ट्र में कोल्हापुर के अंबाबाई मंदिर में या पंजाब और जम्मू की पहाड़ियों के मंदिरों में।

कुछ लोग शाकाहार को अहिंसा से जोड़ते हैं। अहिंसा जैन धर्म और योग का एक मूल सिद्धांत है। लेकिन, अहिंसा एक बहुत ही जटिल विचार है। इसका तात्पर्य है किसी जीवित प्राणी को शारीरिक और मानसिक चोट नहीं पहुंचाना। लेकिन यह खाने की क्रिया पर लागू नहीं होता। भोजन की खोज हिंसक होती है। जैसे खेती एक बहुत ही हिंसक गतिविधि है जिसमें जाने-अनजाने कई हानिकारक जीवों की हत्या की जाती है और सांडों को बधिया किया जाता है।

इसलिए हमें भारत के विभिन्न समुदायों की मांसाहारी प्रथाओं को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। आखिरकार तथ्य भी यही है कि खाद्य जनगणना के अनुसार भारत की 70 फीसदी जनसंख्या किसी न किसी रूप में मांस खाती है।
_(साभार : दैनिक भास्कर 16 मई 2021)

नोट : हमें लगता है कि प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों के आख्यानकर्ता और लेखक देवदत्त पटनायक के इस लेख को पढ़ने के बाद मांसाहार के सम्बंध में बहुत सारी ग़लत धारणाओं का निराकरण हो जाता है। हिंदू धर्म में माँस खाना वर्जित नहीं है, यह लेखक ने हिंदू धर्म से जुड़े तथ्यों के साथ समझाया है।

अगर कोई माँस नहीं खाना चाहे तो यह उसकी व्यक्तिगत इच्छा है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिये। इसी तरह अगर कोई माँस खाता है तो उसके अधिकारों की भी हिफ़ाज़त होनी चाहिये। कौन क्या खाए और क्या न खाए, इसको लेकर राजनीति नहीं की जानी चाहिये।

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बिलाल ख़िलजी
सह संपादक एवं वेब एडिटर
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान।

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Comments (3)
PRAGYANSHU

Intekhab Farash
लोकमान्य टिळक का मशहुर वाक्य है। "मुसलमान अगर अपने मोहल्ले में गो हत्या करते हैं। तो कोई आपत्ति नहीं " ये हर किताबों में संदर्भ मिलेगा

\nहमारा विश्व गुरु हिंदू धर्म आपको ज्ञान देता है की मानव मांसाहारी जीव नहीं है फिर भी यदि कोई मूर्ख मानव मांसाहार करे तो उसे कौन रोके ??सभी मांसाहारी कच्चा मांस पचा सकते है ,मानव नहीं, क्यूंकि मानव शाकाहारी जीव है\nमेरे धर्म में यही अच्छी बात है समझो फिर मानो थोपना नहीं , किताब में लिखा है कह कर गर्दन उड़ाना हिंदू धर्म में नहीं है कारण समझो फिर मानो

Mon 11, Apr 2022 · 07:39 am · Reply
Ayub Khan Mehar

आज के दौर में ऐसा लेख लिख कर आपने एक सराहनीय प्रयास किया है इसे आगे भी जारी रखे

Wed 02, Jun 2021 · 12:51 pm · Reply
Intekhab Farash

लोकमान्य टिळक का मशहुर वाक्य है। "मुसलमान अगर अपने मोहल्ले में गो हत्या करते हैं। तो कोई आपत्ति नहीं " ये हर किताबों में संदर्भ मिलेगा

Tue 01, Jun 2021 · 09:15 pm · Reply