बेटी ससुराल चली
मॉडर्न बेटी ख़ूब ख़ुश हुई,
बाप ने ब्याह राजसी ढंग से किया।
शाही बाग में की दावत और,
दान-दहेज भी ख़ूब दिया।।
कर मेकअप नखराली, बेटी ससुराल चली।
सास गर्व करे और ननदें लेती बलाएं,
मालदार बाप की बेटी खूब दहेज है लाई।
गिफ़्ट में लाई महंगे जोड़े,
हमारा ख़ूब सम्मान बढ़ाया।।
शान पीहर की दिखला के, बेटी ससुराल चली।
अगर बेटी को विरासत मिलती,
तो वो किरोड़पति बन जाती।
बीस लाख में पीछा छूट गया,
भाई उसका ख़ुश ख़ूब हुआ।।
करोड़ गंवा, लेकर कौड़ी, बेटी ससुराल चली।
लेकिन ग़रीब की ज़िंदगी धूल गई,
ज़मीन बेटी की शादी में बिक गई।
अब बेटा भरते मकान किराया,
बाप गरीब फूट-फूटके रोया।
पीहर का पता गंवा के, बेटी ससुराल चली।
इस कविता का संदेश यह है कि अमीर बाप, अपनी बेटी की शादी में कुछ लाख रुपये ख़र्च करके, विरासत में मिलने वाली बड़ी रकम को "हड़प" कर जाता है। दूसरी तरफ़ अगर कोई ग़रीब बाप दुनियादारी निभाने के चक्कर में बेटी को मिलने वाली विरासत से ज़्यादा ख़र्च शादी में करता है।
इस क्रोनोलॉजी को समझिए। अगर आप चाहते हैं कि मुस्लिम समाज में शादी आसान हो तो इस कविता को शेयर कीजिएगा।
सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर, राजस्थान। व्हाट्सएप : 9829346786
Leave a comment.