अफ़ग़ान दास्तान-2 : तालिबान के साथ खुलकर आया पाकिस्तान
14 अगस्त 2021 को, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान @ImranKhanPTI ने अपने ट्वीट में डॉ. इक़बाल के एक शे'र को उद्धृत किया था, सबक़ फिर पढ़, सदाक़त का, अदालत का, शुजाअत का। लिया जाएगा तुझसे काम, दुनिया की इमामत का। इसके अगले दिन तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सरकार पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया।
अगले दिन यानी सोमवार 16 अगस्त 2021 को इस्लामाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा, ''अफ़ग़ानिस्तान ने ग़ुलामी की ज़ंजीरें तो तोड़ दी, लेकिन जो ज़हनी ग़ुलामी की ज़ंजीरे हैं वो नहीं टूटती।''
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के बयान का वीडियो क्लिप (साभार : ट्विटर @PakPMO)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का ये बयान पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर प्रसारित सम्बोधन का एक छोटा-सा हिस्सा है। अपने उस भाषण में इमरान ख़ान ने अँग्रेज़ी शिक्षा के साथ-साथ पाकिस्तान में फैल रही अंग्रेज़ी कल्चर को ज़हनी (मानसिक) ग़ुलामी बताया था।
ग़ौरतलब है कि 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया था, ऐसे हालात में पाकिस्तान प्रतिक्रिया देने वाला दूसरा देश बना। उससे पहले तालिबान शासन पर चीन की प्रतिक्रिया सामने आ चुकी है।
अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता परिवर्तन से दो दिन पहले ही पाकिस्तान ने अपना क्रेडिट लेना शुरू कर दिया था। 13 अगस्त 2021 को पाकिस्तान के सूचना प्रसारण मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान से जुड़े हर घटनाक्रम का असर पाकिस्तान की सियासत और रणनीति पर हुआ है।
उन्होंने कहा, तमाम हालात के बीच पाकिस्तान को अपना रास्ता तलाशना पड़ा और अभी जो हालात पैदा हो रहे हैं, उसमें हम काबुल में एक समावेशी सरकार की बात कर रहे हैं जिसमें सारे राजनीतिक दल और अफ़ग़ानिस्तान के लोग शामिल हों। हम कोशिश कर सकते हैं।
उन्होंने पाकिस्तान को क्रेडिट देते हुए कहा था, हमने (पाकिस्तान ने) तालिबान को अमरीका के साथ बैठाया, उनके बीच बातचीत शुरू करवाई। हमने अफ़ग़ान हुकूमत और तालिबान के बीच बातचीत करवाई। लेकिन अगर तालिबान वहां एक के बाद सूबे फ़तह कर रहे हैं तो सवाल पाकिस्तान से नहीं करना चाहिये, अमेरिका और नेटो को सवाल अफ़ग़ान सरकार से करना चाहिये।
इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा था, हम ये मानते हैं कि बातचीत से राजनीतिक समझौता ही आगे का रास्ता है। हम अफ़ग़ानिस्तान में लगातार गृह-युद्ध नहीं देख सकते हैं। हम अफ़ग़ान लोगों को केवल जीवित ही नहीं बल्कि फलते-फूलते देखना चाहते हैं।
तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान के बारे में इमरान ख़ान के बेबाक बोल पहले भी कहे-सुने जा चुके हैं। इसी साल एक इंटरव्यू में उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था, अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में स्थिति बिगाड़ी। मेरे जैसे लोग जो अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास को जानते हैं और वे कहते रहे कि इसका कोई सैन्य समाधान नहीं निकल सकता। इसके लिये मेरे जैसे लोगों को अमेरिका विरोधी कहा जाता था। मुझे "तालिबान ख़ान" भी कहा गया।
इसी इंटरव्यू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था, तालिबान कोई सैन्य संगठन नहीं है वो आम नागरिक हैं। तालिबान वहाँ की सरकार का हिस्सा होगा।
यह बात बिल्कुल भी ढंकी-छुपी नहीं है कि पाकिस्तान के तालिबान के साथ नज़दीकी संबंध रहे हैं और अमेरिका से 'डील' करने में पाकिस्तान इन रिश्तों को इस्तेमाल करता रहा है।
अफ़ग़ानिस्तान की पूर्ववर्ती अशरफ़ ग़नी सरकार पाकिस्तान पर तालिबान की मदद करने और अफ़ग़ानिस्तान में दख़ल देने के आरोप लगाती रही है। इसी सिलसिले में बीते जुलाई 2021 में अफ़ग़ानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के बीच ताशकंद में कहासुनी भी हो गई थी।
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान का इंट्रेस्ट 1971 में भारत के हाथों हुई करारी हार और अपने देश के विभाजन के बाद पैदा हुआ था। बाद में उसके साथ अमेरिका भी जुड़ गया। इतिहास के कुछ ऐसे ही पन्ने सबूतों के साथ अगली कड़ियों में आपके सामने पेश किये जाएंगे, इन् शा अल्लाह! हमारे साथ बने रहिये और हमारी वेबसाइट को रेगुलर विज़िट करते रहिये।
अफ़ग़ान दास्तान-1 : चीन का हाथ, तालिबान के साथ
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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान
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