आमदनी के चार रास्ते

हर इंसान को इस दुनिया में जीने के लिये और कुछ बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पैसा चाहिये। इस ब्लॉग में हम यह बताने की कोशिश की है कि पैसे कमाने के चार रास्ते कौनसे हैं? इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ियेगा और अगर अच्छा लगे तो अपने कम से कम 10 परिचितों को इसका लिंक पर्सनल में सेंड कीजिएगा।

पैसा हलाल तरीक़े से भी कमाया जा सकता है और हराम तरीक़े से भी; यह हर इंसान पर निर्भर करता है कि वो कौनसा रास्ता इख़्तियार करता है? मोटे तौर पर पैसा कमाने के चार रास्ते हैं,

01. किसी चीज़ के निर्माण, उत्पादन और उनके व्यापार के ज़रिए

अल्लाह तआला ने तिजारत में बरकत रखी है। दुनिया में लोगों की आमदनी का ज़रिया यही सेक्टर है। इंसानी ज़िंदगी में काम आने वाली हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज़ बनाने के कल-कारखाने, दुकानें-शोरूम आदि इसमें शामिल हैं।

खेती-किसानी भी इसी सेक्टर में आती है क्योंकि इससे खाने-पीने की चीज़ों का उत्पादन होता है। खेतों से उगने वाली चीज़ों के ज़रिए अनेक चीज़ें फैक्ट्रियों में बनती है और उनकी ख़रीद-फ़रोख़्त के ज़रिए बड़ी तादाद में लोगों को रोज़गार मिला हुआ है।

डेयरी उद्योग भी निर्माण व उत्पादन के क्षेत्र में आता है। दूध, दही, पनीर, मक्खन, घी, आइसक्रीम, मिठाई आदि अनेक चीज़ों का उत्पादन इस सेक्टर में होता है। इसी तरह गोश्त, चमड़ा, ऊन आदि अनेक चीज़ें पशुपालन क्षेत्र की पैदावार है।

कहने का मतलब यह है कि इंसानों की आमदनी के लिये सबसे बड़ा क्षेत्र निर्माण, उत्पादन और उनका व्यापार है।

02. किसी चीज़ की सेवा देकर उसके ज़रिए

इस सेक्टर में कुछ चीज़ें आती हैं जिनमें कोई इंसान अपने शरीर या दिमाग़ी जानकारी के ज़रिए कोई सेवा देता है और उसके बदले पैसा हासिल करता है। जैसे डॉक्टर, वकील, पत्रकार, टीचर, मोबाइल सर्विस, गाड़ी रिपेयरिंग, हेयर ड्रेसर और इसी तरह के दर्जनों क़िस्म के लोग।

मदरसों में दीनी व दुनयावी तालीम देना और इस्लाम की तबलीग़ (प्रचार) करना भी सर्विस सेक्टर में आता है, जिसके बदले सर्विस चार्ज के तौर पर तनख़्वाह दी जाती है। लेकिन सिर्फ़ पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ाना कोई सर्विस नहीं है क्योंकि नमाज़ एक ऐसी इबादत है जो हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है जिसमें आलिम हज़रात भी शामिल हैं।

इस्लाम का इतिहास पढ़ें तो पता चलता है पहले ज़माने में मदरसों में दीनी तालीम के साथ-साथ दीगर तालीम भी दी जाती थी। अगर ऐसा न होता तो मुसलमान सदियों तक हुकूमत नहीं कर पाते क्योंकि शासन चलाने और जनता की सहूलियत के लिये अनेक प्रकार के एक्सपर्ट्स की ज़रूरत पड़ती है। मुस्लिम शासकों के शासनकाल में दीनी व दुनयावी तालीम के लिये मदरसों के अलावा और कोई ज़रिया नहीं होता था।

कोविड-19 के दौरान मस्जिद के इमामों के सामने आमदनी का बड़ा संकट पैदा हुआ है। ज़रूरत इस बात की है कि मदरसा एजुकेशन में रिफॉर्म (सुधार) किया जाए। मदरसों को उनका खोया हुआ गौरव फिर से लौटाया जाए। वहां दीनी तालीम के साथ-साथ रोज़गारपरक शिक्षा भी दी जाए। ऐसा होने पर आलिम हज़रात उत्पादन क्षेत्र या सेवा क्षेत्र की किसी एक्टिविटी के ज़रिए आमदनी हासिल कर सकेंगे और वे नमाज़ पढ़ाने जैसी इबादत को सवाब कमाने के लिये "फ्री ऑफ़ कॉस्ट (नि:शुल्क)" अंजाम दे सकेंगे।

हमने अपने एक ब्लॉग चर्च का पादरी और मस्जिद का मौलवी में इस विषय पर चर्चा की है। इस ब्लॉग के अंत में उसका लिंक दिया गया है। उसे भी आप ज़रूर पढ़ें।

03. सरकारी-ग़ैर सरकारी नौकरी के ज़रिए

आमदनी का तीसरा बड़ा ज़रिया नौकरी है। काफ़ी लोग सरकारी विभागों या उपक्रमों में नौकरी करते हैं। काफ़ी लोग किसी की फैक्टरी, दुकान या ऑफिस में अपनी सेवाएं देकर तनख़्वाह के रूप में मेहनताना हासिल करते हैं। वहीं बहुत-से लोग सर्विस सेक्टर से जुड़े लोगों, जिनका ज़िक्र दूसरे पॉइंट में किया गया है, उनके यहाँ नौकरी करके भी अपना जीवन-यापन करते हैं।

04. माँगने के ज़रिए :

आमदनी का चौथा तरीक़ा है, माँगना। इस सेक्टर में आने वाले लोग न तो किसी चीज़ का उत्पादन करते हैं, न तिजारत करते हैं, न कहीं नौकरी करते हैं और यहाँ तक कि वे किसी क़िस्म की कोई सेवा भी प्रदान नहीं करते है। आम ज़बान में इसे भीख कहा जाता है।

यहाँ पर यह बात भी समझ लेनी चाहिये कि भीख और दान में बड़ा फ़र्क़ होता है।

इस्लाम ने कुछ विशेष परिस्थितियों में और कुछ विशेष कैटेगरी के लोगों के लिये ज़कात, ख़ैरात, सदक़ा के ज़रिए पैसे हासिल करना जाइज़ करार दिया है। उसके लिये कुछ कैटेगरीज़ भी बताई है लेकिन बिना किसी ठोस वजह के सवाल करने या माँगने वालों की इस्लाम ने बड़ी सख़्त मज़म्मत (निंदा) की है। 

मुस्लिम समाज के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक उत्थान के लिये कंप्लीट रिफॉर्म कैम्पेन (सम्पूर्ण सुधार अभियान) चलाने की ज़रूरत है। हम इससे संबंधित मैटर आप तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। हमें उम्मीद है कि इस काम के लिये आपका सहयोग मिलेगा।

आप इस आर्टिकल पर अपनी राय कमेंट बॉक्स में लिखकर दे सकते हैं। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।

सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप : 9829346786

चर्च का पादरी और मस्जिद का मौलवी

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Comments (3)
Ajmal Ansari

MashaAllah,,,, Behtreen post Salim Sahab, Assalamo Alaikum Ummid karta hoon ki Aap khairiyat se honge Insha Allah,,,,, Aap ne wh bat batayi jo Aajke Alim Hazraat nhi bataate, Allah hme halal trike se kaam karne ki taufeek de

Mon 16, Aug 2021 · 10:21 pm · Reply
Mohd farooq sheikh

Aapne bhut acche Tarikye se bataya he ye perfect bat he per bhut se log karna hi nahi chate he or kuch logo ki majburiya he ki unkepas jariya nahi hota he

Thu 12, Aug 2021 · 12:40 pm · Reply
Sfarhaz

Are AAP madarso ki baat kar rahe hai yaha pure logo ka yahi haal hai na kami ka jariya hai na kami to Insaan Apne bacho ki school or madarso ki fis kase de

Thu 12, Aug 2021 · 08:15 am · Reply