चर्च का पादरी और मस्जिद का मौलवी

चर्च का पादरी और मस्जिद का मौलवी

दो-तीन साल पहले, सीकर से मेरे एक दोस्त मेरे घर (जोधपुर) आए। उन्हें एक बाइबल की ज़रूरत थी क्योंकि एक ईसाई उनका दोस्त था इसलिये मेरे दोस्त को ईसाइयत के बारे में कुछ जानकारी चाहिये थी। मैं उन्हें अपने साथ लेकर तारघर के पास स्थित समरवेल चर्च गया।

चर्च में पादरी (फ़ादर) नहीं थे। चर्च के दो सेवादार थे उन्होंने बताया कि कोई ईसाई भाई बीमार है, फादर प्रेयर उसके लिये करने गये हैं। थोड़ी देर बाद पादरी साहब आ गये। उन्होंने बड़े अच्छे अख़लाक़ से बात की, पानी पिलाया, चाय मंगवाई और एक-एक बाइबल दे दी। चर्च के पादरी (फादर) ने कहा कि अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो आप कभी भी आ सकते हैं, मैं दिन भर चर्च में रहता हूँ।

एक और मिसाल पर ग़ौर कीजिएगा। क़रीब चार साल पहले, मैं अपने एक दोस्त से मिलने गया। सुबह का वक़्त था। उनका पड़ौसी अपने लॉन में पौधों को पानी दे रहा था। स्कूटी लेकर एक पादरी आए। उस आदमी ने फादर को अदब के साथ बिठाया। फादर ने जो कहा उस पर ग़ौर कीजिए, "माई सन! दो संडे हो गया तुमको चर्च में नहीं देखा, मुझे लगा तुम कहीं बीमार तो नहीं हो गये, इसलिये तुम्हारी तबियत का हाल पूछने चला आया।"

ईसाई चर्च का पादरी, दिन भर चर्च में रहता है। कोई भी व्यक्ति, कभी भी उसके पास धर्म संबंधी समस्या के समाधान के लिये जा सकता है। हर ईसाई की शादी चर्च में होती है और मैरिज का रजिस्टर चर्च के पादरी के पास रहता है।

■ अब बात मस्जिद के मौलवी साहब की। मस्जिद के इमाम साहब को कम से कम 15000 से 20000 रुपये महीना तनख्वाह मिलनी चाहिये। अगर मस्जिद कमेटी माकूल तनख्वाह न दे सके तो मुहल्ले के लोगों को चंदा करके हस्बे-हैसियत उनकी मदद करनी चाहिये। यह ज़रूरी है लेकिन पूरे दिन मस्जिद में इमाम साहब को रहना भी चाहिये ताकि दिन भर मस्जिद खुली रहे। किसी को कोई मसला पूछना हो तो फ़ज्र से इशा के बीच कभी भी पूछ सके। किसी को क़ुरआन सीखना या समझना हो तो उसे आसानी हो।

मगर हक़ीक़त यह है कि हमारी मस्जिदें दिन में पाँच बार, वक़्ती तौर पर खुलने वाला कम्युनिटी हॉल बन गई हैं। यह बात सही है कि मस्जिद के इमामों को उनका "वाजिब अधिकार" मिलना चाहिये, मगर उसके साथ "कर्तव्य" का निर्धारण होना चाहिये और उसका पालन भी होना चाहिये।

हमारे आदर्श, अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। उनका तो घर ही मस्जिदे नबवी से मिला हुआ था। हर समय लोगों के लिये मयस्सर रहते थे आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), वरना ये लाखों की तादाद में अहादीस सहाबा के ज़रिए कैसे सामने आती?

एक बात और मैं अर्ज़ कर देना चाहता हूँ, पाँच वक़्त की नमाज़ हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है, इमाम साहब पर भी फ़र्ज़ है। नमाज़ पढ़ाना कोई जॉब या नौकरी नहीं है, यह एक इस्लामी फ़र्ज़ है। अलबत्ता सीरते-नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) व सीरते-सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से यह सुबूत ज़रूर मिलता है कि इस्लाम के मुबल्लिग (प्रचारक) को इस्लामी बैतुलमाल से वज़ीफ़ा मिलता था। इस्लाम की दावत हर इंसान तक पहुंचाना, आलिमों की अव्वलीन ज़िम्मेदारी है, उस पर पूरे सप्ताह काम होना चाहिये, सिर्फ़ जुमे का ख़ुत्बा काफ़ी नहीं है। इसलिये तमाम मस्जिद कमेटियों को फुल टाइम मुबल्लिग रखने चाहिये, उन्हें सम्मानजनक वज़ीफ़ा देना चाहिये।

इसके साथ ही मुसलमानों को शादी मस्जिद में करनी चाहिये। मस्जिद में निकाह रजिस्टर रहना चाहिये। अगर निकाह सर्टिफिकेट इश्यू करने के लिये इमाम साहब को प्रति सर्टिफिकेट 500 रुपये दिये जाएं तो उनकी आय का सॉलिड इंतज़ाम हो सकेगा।

अगर मेरी कोई बात किसी भाई को नागवार लगी हो तो मैं माफ़ी चाहता हूँ। आप इस आर्टिकल पर कमेंट्स करके अपनी राय दे सकते हैं।

सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप 9829346786

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Comments (10)
Faizan Hussain

Bht aalatareen..

Wed 11, Aug 2021 · 10:22 am · Reply
Prof Kunwar Asif

It's the truth of life. So all communities follow it, specially muslims and his imams like our ideal and beloved prophet Muhammad sb pbh

Tue 10, Aug 2021 · 10:38 pm · Reply
Fatima bi

Remarkable comments ....highly impressive suggestions...our muslim community should follow these rules for the betterment ...but molvies must provide proper Quraan education..and solution of queries as well...but so many molvies do not clear any concept because they dont have proper knowledge..only arguments...and want to earn ..only commercialised moving door to door asking 500 rs for 10 mins . In 10 mins what knowledge they will provide to our new generation..

Tue 10, Aug 2021 · 09:47 am · Reply
NAEEM BELIM

Mamaji baat 100% sahi hai is par har momin ko ek saath amal mein lana cahiye

Tue 10, Aug 2021 · 08:37 am · Reply
Mohammed Hanif Khilji

आप बात बिल्कुल सही है हर मस्जिद में ऐसा ही होना चाहिए और सभी नमाज पढ़नी चाहिए और बे नमाजी को नमाज की दावत देनी चाहिए

Tue 10, Aug 2021 · 07:58 am · Reply
Mohammedhanif Shaikh

All Christian weds In church irrespective of country or continent. Muslims on the other hand are not only Muslims but they are either Keralian or Gujarati or Bengali or Kashmiri. Indian Muslims follow their regional culture. So instead of marrying in Masjid they go to hotels or party plots or Jamaat khana. Respectable Salary to Imams is must. It’s shame on locality and our society if they are underpaid.

Tue 10, Aug 2021 · 01:02 am · Reply
Tabrez alam

Bat to sahi h but koi kuch karta nai hai imam Hazart k lye aj sheher indore ki kai masjid me imam ki tankhwah 4..6..8 Hazar hai..or chand ek hai jinki 12 se 15 Hazar hai...ab jo imam 6 Hazar kamai ga unse kiya ummid rakhe k woh tablihg ka kam kre wo apne hi kamo me uljhe rehte hai... Kam se kam 25 Hazar tankhwa hona chaye Or imam bhi alim ho khidmat ka jazba Rakhne wala ho...her koi imamat k layak nai Hota hai

Tue 10, Aug 2021 · 12:12 am · Reply
Kaleem Qureshi

Baat Main Dam Hai Sukriya Bhai

Mon 09, Aug 2021 · 11:11 pm · Reply
Moinuddin

Aap ki baat Alhumdulila bilkul shi hi es maamle me har masjid kai elakae kmeti ko bhi es par gor karna chahiye jb insa Allah y maamla ho skta hi

Mon 09, Aug 2021 · 11:09 pm · Reply
Zubair Qureshi

Zazakallah ap n bohat acci bat ki

Mon 09, Aug 2021 · 11:08 pm · Reply