1946 व 1947 : ख़ून सना रमज़ान
अंग्रेज़ों के हाथों भारत की ग़ुलामी और आज़ादी के इतिहास की कुछ अहम घटनाओं पर नज़र डालें तो वे हफ़्ते के तीन दिनों सोमवार, जुमेरात और जुम्आ को घटित हुईं। इन घटनाओं पर चर्चा करने से पहले इन तीन दिनों की इस्लाम में क्या अहमियत है, यह जान लेते हैं।
सप्ताह के तीन दिन इस्लाम में बहुत अहमियत वाले हैं। यह तीन दिन हैं, अल इसनैन (सोमवार), अल ख़मीस (जुमेरात, गुरुवार), अल जुमुआ (शुक्रवार)।
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, हफ़्ते में दो दिन बंदों के आमाल अल्लाह के सामने पेश किये जाते हैं, सोमवार और जुमेरात। मैं चाहता हूँ कि जब मेरे आमाल पेश किये जाएं तो मैं रोज़े से रहूँ। (तिर्मिज़ी)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जुम्आ के दिन को सभी दिनों का सरदार कहा है।
अब आइये हम इतिहास के पन्ने उलटकर देखते हैं।
■ सोमवार, 24 अगस्त 1600 (13 सफ़र 1009 हिजरी) : अंग्रेज़ों की भारत में आमद
अंग्रेज़ों का पहला जहाज़ सूरत (गुजरात) में आकर लगा। उन्होंने आगरा जाकर मुग़ल बादशाह जहाँगीर से मुलाक़ात की। जहाँगीर ने उन्हें सूरत में कोठियां बनाने और भारत में कारोबार करने की इजाज़त दी। यह भारत की ग़ुलामी की दिशा में पहला क़दम था।
■ जुमेरात, 23 जून 1757 (5 शव्वाल 1157 हिजरी) : बंगाल में पहली अंग्रेज़ कठपुतली सरकार
ईस्ट इंडिया कंपनी के एक कमांडर, लॉर्ड क्लाइव ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को प्लासी की जंग में हराया। इस जंग में उसका साथ दिया, नवाब के ग़द्दार साथी मीर ज़ाफ़र ने जिसे इनाम के तौर नवाब बनाया गया। यह भारत के किसी राज्य में अंग्रेज़ों की पहली रिमोट कंट्रोल सरकार थी।
■ सोमवार, 11 मई 1857 (17 रमज़ान 1273 हिजरी) : भारत की पहली जंगे-आज़ादी
मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के नेतृत्व में, कुछ रियासतों के हिंदू राजाओं और मुस्लिम नवाबों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहली जंगे-आज़ादी शुरू की। लेकिन कुछ ग़द्दार राजाओं-नवाबों ने आज़ादी की इस लड़ाई में शामिल होने के बजाय अंग्रेज़ों का साथ दिया जिसकी वजह से 1857 की क्रांति नाकाम हो गई। अंग्रेज़ों ने चुन-चुनकर मुस्लिम आलिमों को शहीद किया क्योंकि उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जिहाद का फ़तवा जारी किया था। सन् 1273 हिजरी (1857 ईस्वी) का वो ख़ून सना रमज़ान, मुसलमानों को कभी भूलना नहीं चाहिये।
■ सोमवार, 3 मार्च 1924 (26 रजब 1342 हिजरी) : ख़िलाफ़ते-उस्मानिया के अंत की घोषणा
पहला विश्व युद्ध 19 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला। यह पहला विश्व युद्ध ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली, रोमानिया,जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (मित्र राष्ट्र) तथा उस्मानिया ख़िलाफ़त तुर्की, जर्मनी, ऑस्ट्रिया व हंगरी के गठबंधन के बीच लड़ा गया।
जीत के बाद मित्र देशों ने उस्मानिया ख़िलाफ़त को टुकड़ों में तोड़कर अपने बीच बांट लिया। अमेरिका समर्थक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क को तुर्की का राष्ट्रपति बनाया गया। उसने 3 मार्च 1924 को ख़िलाफ़ते-उस्मानिया को ख़त्म करने के साथ ही तुर्की को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कर दिया। तुर्की टोपी और हिजाब पहनने पर पाबंदी लगा दी गई। ख़िलाफ़त ख़त्म करने के बाद, मुस्लिम पहचान की चीज़ें भी ख़त्म करने की शुरुआत कर दी गई।
■ जुम्आ, 16 अगस्त 1946 (18 रमज़ान 1365 हिजरी) : जिन्ना द्वारा घोषित "डायरेक्ट एक्शन डे" पर ज़बरदस्त ख़ून-ख़राबा
1946 वो साल है जब एक तरफ़ मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग अलग देश पाकिस्तान की माँग कर रही थी वहीं दूसरी तरफ़ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की अध्यक्षता वाली कांग्रेस "अखंड भारत" चाहती थी। भारत के सभी मुसलमान मोहम्मद अली जिन्ना के साथ नहीं थे।
जिन्ना को साफ़ लगने लगा था कि हिंदू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता की आग भड़काए बिना अलग पाकिस्तान का सपना पूरा नहीं हो सकता। इसलिये उन्होंने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे घोषित किया। रमज़ान का मुक़द्दस (पवित्र) महीना चल रहा था। मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने बंगाल में रमज़ान के महीने में जमकर ख़ून-ख़राबा किया।
मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन डे के दौरान हुई हिंसा के जवाब में हिंदुओं ने भी जमकर ख़ून-ख़राबा किया। दोनों तरफ़ से हुई हिंसा के कारण हर तरह इंसानी लाशों के अम्बार लगे थे और उनसे अपनी दावत मनाने के लिये कोलकाता के आसमान में गिध्द मंडरा रहे थे।
देखते ही देखते हमारा प्यारा देश भारत साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा। 1946 के उस रमज़ान को ख़ौफ़नाक दंगों के कारण ख़ून सना रमज़ान कहना पूरी तरह मुनासिब होगा।
■ जुम्आ, 18 जुलाई 1847 (29 शाबान 1366 हिजरी) : ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज सिक्स्थ द्वारा भारत की आज़ादी के क़ानून पर हस्ताक्षर
इस क़ानून को इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 कहा जाता है। इस क़ानून के तहत ब्रिटेन शासित भारत को दो टुकड़ों, भारत-पाकिस्तान में बांटकर, 15 अगस्त 1947 को आज़ाद करने की बात कही गई। सभी देसी रियासतों की ब्रिटिश साम्राज्य के साथ की गई ट्रीटीज़ (संधियों) को ख़त्म कर दिया गया। इसके साथ ही सभी 565 रियासतें आज़ाद हो गईं। उनको भारत या पाकिस्तान के साथ विलय करने या आज़ाद देश के रूप में रहने का इख़्तियार दिया गया।
18 जुलाई 1947 को इस्लामी तारीख़ 29 शाबान 1366 हिजरी थी। उस दिन की रात से रमज़ान 1366 हिजरी शुरू हुआ।
ब्रिटिश साम्राज्य के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा भारत के बंटवारे की घोषणा के साथ ही देश में साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़क उठी। बड़ी तादाद में लोगों की जानें गईं। 1947 का वो रमज़ान ज़बरदस्त ख़ून-ख़राबे में बीता इसलिये हमने इस ब्लॉग के टाइटल में ख़ून सना रमज़ान शब्द इस्तेमाल किया है।
■ जुम्आ, 14-15 अगस्त 1947 (27 रमज़ान 1366 हिजरी) : दो टुकड़ों में बाँटकर भारत की आज़ादी
यह बात याद रखियेगा के अखंड भारत के सिर्फ़ एक चौथाई हिस्से पर ब्रिटिश सरकार की सीधी हुकूमत थी। बाक़ी 565 देसी रियासतों के राजाओं-नवाबों के साथ उन्होंने संधि कर रखी थी।
1366 हिजरी के रमज़ान (जुलाई-अगस्त 1947) में पाकिस्तानी क्षेत्र घोषित इलाकों से अल्पसंख्यक हिंदू भारत आ रहे थे और भारत के हिंदू बहुल क्षेत्रों से अल्पसंख्यक मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे। दोनों देशों की सरहद पर स्थित पंजाब और बंगाल में ज़बरदस्त हिंसा चल रही थी। ख़ून-ख़राबे के उस दौर में मुसलमानों ने कैसे रोज़े रखे होंगे, इसकी कल्पना करते ही रोम-रोम दहल जाता है।
1947 के उस उस रमज़ान में ज़्यादा से ज़्यादा रियासतों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश दोनों ओर के नेताओं द्वारा की जा रही थी। ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के सहयोग से सरदार पटेल कलात (बलोचिस्तान) को छोड़कर बाक़ी तमाम रियासतों को भारत गणराज्य में शामिल करने में कामयाब रहे। इन रियासतों में हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़, रामपुर, टोंक जैसी मुस्लिम नवाबों द्वारा शासित 100 से ज़्यादा छोटी-बड़ी रियासतें भी शामिल थीं। इसलिये यह कहना सरासर ग़लत है कि बंटवारे के बाद मुसलमानों का भारत में कोई हक़ नहीं है।
■ सोमवार, 18 अगस्त 1947 (1 शव्वाल 1366 हिजरी) : ईदुल फ़ित्र
ख़ून सने इतिहास के एक बहुत थोड़े-से हिस्से को हमने आपके सामने पेश किया है। जिन लोगों ने 1947 का रमज़ान देखा है वो शायद इस बात को कभी नहीं भूले होंगे कि उस साल ईदुल फ़ित्र कैसे हालात में मनाई गई थी?
रमज़ान के महीने के चंद दिन बाक़ी हैं। अल्लाह की बारगाह में रो-रोकर दुआएं कीजिये कि ऐ अल्लाह! अब कोई रमज़ान ऐसा ख़ून सना न हो। ऐ अल्लाह! बंटवारे के ज़ख़्म अभी ताज़ा हैं, फिर से "अखण्ड भारत" बनाकर इस सरज़मीन पर स्थायी अमन-चैन नसीब फ़र्मा, आमीन!
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वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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