पश्चिमी राजस्थान के शहरों-देहातों में जब किसी के घर बेटा पैदा होता है तो थाली बजाई जाती है। इस थाली वादन क्रिया से मुहल्ले वालों को पता चल जाता है कि फलां घर में बधाई देने जाना है।
पूरी दुनिया में जब कोई वक्ता, भाषण के दौरान अच्छी बात कहता है तो श्रोता ताली बजाते हैं। इस ताली वादन क्रिया से वक्ता को गाइडलाइन मिल जाती है कि उसे किस तरह की बातें करनी है।
22 मार्च 2020 को शाम 5 बजे दिल्ली दरबार के आग्रह पर पूरे देश के लोगों ने ताली वादन एवं थाली वादन क्रिया की। ऊपर जिन दो परिस्थितियों की हमने चर्चा की उनमें से एक भी परिस्थिति नहीं थी लेकिन देश की जनता ने किसी चमत्कार की आस में दिल्ली दरबार के अहम को संतुष्ट किया।
असल में दिल्ली दरबार को तालियां सुनने का शौक़ है। इस समय न तो देश में कहीं चुनाव है और न ही सरकार ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कोरोना-फोबिया की शिकार जनता ने दिल्ली दरबार के आग्रह को आदेश मानकर उसका पालन किया।
वैसे हमारे देश में ताली वादन क्रिया एक और कारण से होती है। गर्मी के दिनों में हमारे आस-पास मच्छर भिनभिनाते हैं और अपने तीखे डंक के ज़रिए हमें दर्द व जलन का एहसास कराते हैं। उस समय हवा में उड़ते मच्छरों को मारने की प्रक्रिया में दुर्घटनावश ताली बज जाती है। इस ताली वादन क्रिया में कभी मच्छर मर जाता है तो कभी फरार होकर हमारे मानव बल को चिढ़ाता है। मच्छर को सज़ा देने के प्रयास में नाकाम होने पर हमारी हथेलियों को दर्द का एहसास होता है।
इसी तरह खेतों में फसल चट कर रहे टिड्डी-दल को भगाने के लिए किसान थाली वादन करते हैं। थाली की आवाज़ सुनकर टिड्डियाँ उड़ जाती हैं।
ऐसा लगता है कि दिल्ली दरबार को कोरोना वायरस के मच्छर व टिड्डी जैसा होने का दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ है और उसने जनता के बीच दूरसंचार माध्यमों का प्रयोग करते हुए इस ज्ञान का प्रसारण कर दिया।
लेकिन देश की वर्तमान स्थिति को देखकर हर देशप्रेमी रो रहा है। जनता की जायज़ मांगों को अनसुना किया जा रहा है। साम्प्रदायिक सद्भाव का ताना-बाना बिखेरा जा रहा है। अर्थव्यवस्था गहरी खाई में गिर रही है। डिफाल्टरों के टिड्डी दल ने बैंकिंग सिस्टम को बर्बाद करने की ठान ली है।
अब देखना यह है कि देशवासियों के ताली वादन एवं थाली वादन से कोरोना वायरस मरता है या देश के साम्प्रदायिक सौहार्द्र व अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने वाला टिड्डी दल भागता है?