मसला सिर्फ ये नहीं है कि नोटबंदी के दौरान 50 दिनों तक देशवासियों को लाइन में खड़ा रहना पड़ा। इस तरह की बातें खूब फैलाई गई कि सियाचिन के माइनस 56 डिग्री तापमान में जब देश के लिये सैनिक खड़ा रह सकता है तो हम क्या थोड़ी देर के लिये बैंक की लाइन में नहीं खड़े रह सकते? लेकिन मसला केवल लाइन में खड़े होकर पेश आने वाली दुश्वारियों का नहीं था। इस विशाल देश का मध्यवर्ग रोज़ ही लाइन में खड़ा होता है, उसे लाइन में खड़े होने की आदत है। एक बहुत बड़ी तादाद यहाँ ऐसे लोगों की है जिन्हें खड़े होने के लिये लाइन भी नसीब नहीं होती, वे मेट्रो, बस, ट्रेन, बैंक, राशन, अस्पताल इत्यादि की लाइन में नहीं खड़े हो पाते क्योंकि उनकी जेब में इतने नोट नहीं होते कि लाइन खड़े होने की पात्रता हासिल की जा सके।
स्वच्छ भारत अभियान को 5 साल गुज़रने को है, प्रधानमंत्री दावा है कि देशभर में 9 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं लेकिन आज भी लोग शौच जाने हेतु लाइन में खड़े होते है और उन्हें उस लाइन से कोई दिक्क़त भी नहीं है क्योंकि ये उनकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है।
अब बात नोटबंदी की। रिज़र्व बैंक ने एक आरटीआई के जवाब में कहा है कि उसके पास इसका कोई डाटा नहीं है कि पेट्रोल पम्पों और दीगर छूट-प्राप्त स्थानों पर कितने पुराने नोट बदले गये? एक आरटीआई में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि आरबीआई नोटबंदी की अनुशंसा के लिये पूर्ण रूप से तैयार नहीं थी। नोटबंदी से हासिल क्या हुआ? 8 नवम्बर 2016 तक देश में 15417.93 अरब रुपये की वैल्यू के 500-1000 के पुराने नोट चलन में थे। उसमे 15310.73 अरब वैल्यू के नोट 50 दिन की तय समयसीमा में वापस जमा हो गए अर्थात् 1000-500 के 99.30% पुराने नोट वापस आ गए। सिर्फ 0.7% नोट वापस आने से रह गए, जो कि लगभग 16 हज़ार करोड़ बनते हैं। पड़ौसी देश नेपाल के बैंक में मौजूद पुराने नोटों को बदला जाना अभी बाकी है।
मसला सिर्फ लाइन का नहीं था; मसला ये था कि ज़ुकाम कुछ प्रतिशत लोगों को था और पूरे गांव की नाक काट दी गई। इसे कुछ यूं समझिये। नोटबंदी के निर्णय पहले एक अनुमान के मुताबिक देश में मौजूद कुल काले धन का सिर्फ 6% करेंंसी नोट के रूप में जमा था, बाकी 94% रियल स्टेट, सोना इत्यादि के रूप में जमा था। सवाल ये उठता है कि कुल काले धन का 6% हिस्सा 1000-500 के नोटों के रूप में था वो कहाँ गया? क्या उसे नोटबंदी में धोकर सफेद कर लिया गया? सरकार का कहना है कि नोटबंदी से 2 लाख फ़र्ज़ी कम्पनियां पकड़ में आई, कैश ट्रांजेक्शन कम हुआ; 56 लाख नये करदाता जुड़े। लेकिन ये विश्लेषण बहुत समय गुज़र जाने के बाद आया। नोटबंदी की घोषणा के वक़्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का मकसद काले धन पर नकेल कसना बताया गया था। उसके बाद सरकार की तरफ से बयान आते रहे कि नोटबंदी से आतंकवाद की कमर टूटेगी, बेनामी सम्पत्तियों की खरीद-फरोख्त पर लगाम लगेगी वगैरह।
नोटबंदी के दुष्परिणाम आज हमारे सामने है। देश मे बेरोजगारी की दर तीन गुना बढ़ चुकी है। अपने अंर्तमन की परतों में मोदी सरकार भी इस बात मानती है कि नोटबंदी का निर्णय गलत था। अगर मोदी सरकार नोटबंदी को सही मानती उसके चुनावी भाषणों में नोटबंदी का महिमामंडन ज़रूर होता, जिस तरह सर्जिकल स्ट्राइक का होता है। बैनरों और भाषणों से नोटबंदी की तारीफ गायब है यानी मोदी सरकार को भी मालूम है कि मसला सिर्फ लाइन में खड़े रहने का नहीं था।