एडिटर्स चॉइस : माँ इंजन, सूटकेस बोगी और मुसाफ़िर बच्चा

रेल का इंतजार करते-करते महीने भर से ज़्यादा वक़्त गुज़र गया। जब ट्रेन चली भी तो जाने वाले लाखों में थे और सीटें चंद हजार। कहावत है, मरता क्‍या ना करता? हज़ारों मज़दूर पैदल ही अपना परिवार लेकर निकल पड़े।

पंजाब से चलकर, उत्तर प्रदेश के महोबा जाने के लिये निकले एक जत्‍थे की तस्‍वीर देखिये। एक बच्‍चा है, उसे आप इस सफर का यात्री मानिये। एक ट्रॉली-बैग है, उसे ट्रेन समझिये। तो ट्रेन पर वो यात्री पसरा हुआ। दोनों हाथों से बैग के दोनों छोर पकड़े हैं, गिरने का भी ख़तरा है। और इस ट्रेन को खींच रही है एक मजबूर मां।

(वीडियो साभार : नवभारत टाइम्स)

उसे चलते जाना है। मगर बच्‍चे को तो नींद आ रही है। उसे क्‍या समझ कि क्‍यों उसकी मां अचानक निकल पड़ी है यूं पैदल? कहां जा रही है, उसे कुछ आइडिया नहीं? बच्चे ने मां से रूक जाने को कहा, मगर माँ रुक नहीं सकती थी। अगर वो रुक जाती तो उस काफ़िले से बिछड़ जाती, जिसके साथ वो सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकली है।

ये लॉक डाउन की रुला देने वाली चंद तस्वीरों में से एक है। रमज़ान का महीना तेज़ी से बीत रहा है। अल्लाह से दुआ कीजिये, ऐ अल्लाह, आसानी पैदा कर, तेरी मख़लूक़ परेशान है।

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