लॉक डाउन मैसेज-3 : फ़िज़ूलख़र्ची से बचना ज़रूरी

  • Fri, 22 May 2020
  • Rajya
  • Saleem Khilji

इस सीरिज़ के पिछले दोनों पार्ट्स की तरह इस पार्ट में भी हम सामाजिक ज़िंदगी से जुड़े एक अन्य मसले फ़िज़ूलख़र्ची और उसके बुरे नतीजों पर चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।


सबसे पहले इस बात को समझ लें। अपनी ज़रूरत से ज़्यादा ख़र्च करना फ़िज़ूलख़र्ची है। मिसाल के तौर पर एक जग पानी से वुज़ू हो जाए तो दूसरा जग पानी बहाना भी फ़िज़ूलख़र्ची है। अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में फ़िज़ूलख़र्ची करने वाले को शैतान का भाई क़रार दिया है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि हम में से ज़्यादातर लोग इसके बारे में सोचते ही नहीं हैं।

01. तालीम में फ़िज़ूलख़र्ची :


जिनके पास पैसा है, वो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल या लोकल स्कूल में पढ़ाना अपनी शान के ख़िलाफ़ समझते हैं। कई नामनिहाद इंटरनेशनल स्कूल्स प्राइमरी और अपर प्राइमरी क्लास के लिये सालाना डेढ़-दो लाख रुपये की फीस लेती हैं। हैरत की बात है कि मालदारों की देखा-देखी कई मिडल क्लास परिवार भी इस होड़ में बर्बाद हो रहे हैं।

हमारे सामने पूर्व राष्ट्रपति और देश में मिसाइलमैन के नाम से मशहूर, एपीजे अब्दुल कलाम की जीती-जागती मिसाल मौजूद है कि उन्होंने किसी महंगी स्कूल में पढ़ाई नहीं की थी।

याद रखिये क़ाबलियत किसी बड़े स्कूल के नाम की मोहताज नहीं है। आने वाला वक़्त काफ़ी नाज़ुक है, इसलिये इस फ़िज़ूलख़र्च से बचना होगा।

02. रहन-सहन में फ़िज़ूलख़र्ची :


इस सीरिज़ के पहले पार्ट में आप पढ़ चुके हैं कि ज़िन्दा रहने के लिये हमारी बुनियादी ज़रूरियात बहुत थोड़ी है। लेकिन अपना लिविंग स्टैंडर्ड हाई रखने के चक्कर में हमने बहुत सारे ख़र्चे पाल रखे हैं। घरों में ग़ैर-ज़रूरी सजावट, महंगे मॉडल की कारें-मोटर साइकिल्स, हर साल गाड़ी बदलने का शौक़ इत्यादि रहन-सहन की फ़िज़ूलख़र्ची में शामिल हैं। अच्छा घर वो है जिसमें सुकून मिले। अच्छी गाड़ी वो है जो मंज़िल तक पहुंचा दे। इस बात को समझ लेना ज़रूरी है।

03. शॉपिंग में फ़िज़ूलख़र्ची :


कुछ लोग बाज़ार या शॉपिंग मॉल में जाकर बिला-ज़रूरत कोई चीज़ ख़रीद लेते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर से किसी न किसी चीज़ का ऑर्डर करते रहते हैं। यह बात याद रखनी चाहिये कि इंसान की क़द्र महंगे कपड़ों से नहीं, अच्छे किरदार से होती है। जूता कितना ही महंगा क्यों न हो, उसे उतारकर ही घर में या मस्जिद में दाख़िल हुआ जाता है। इसलिये ज़रूरत की चीज़ ख़रीदें और ज़रूरतमंदों की मदद करने को अपनी आदत बनाएं।

लॉक डाउन के बाद आने वाली मंदी से बचना बहुत मुश्किल है। यह बात भी याद रखिये! दुनिया की ऐशो-इशरत किसी की बपौती नहीं है। कब किसी का बुरा वक़्त आ जाए, कोई कह नहीं सकता। इसलिये हर क़िस्म की फ़िज़ूलख़र्ची से बचिये, यह लॉक डाउन का तीसरा मैसेज है। अगली कड़ी में फिर किसी विचारोत्तेजक मैसेज पर चर्चा होगी।

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