क्या लॉकडाउन से कोरोना कंट्रोल हो सकता है?

  • Sun, 29 Mar 2020
  • National
  • Saleem Khilji

यह पोस्ट वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर लिखी गई है। कृपया थोड़ा समय निकालकर इसे पूरा पढ़ें। आपको इसमें "वायरस की प्रकृति" के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी, उससे आप कोरोना जैसी बीमारी को भी सही तरीक़े से समझ पाएंगे। इंशाअल्लाह।

इस वक़्त पूरे देश में कर्फ़्यू जैसी स्थिति है और कई जगहों पर तो वाक़ई कर्फ़्यू लगा हुआ है। लोगों से घरों में रहने की अपील की जा रही है और कहा जा रहा है कि ऐसा करना कोरोना की चैन तोड़ने के लिये ज़रूरी है।

लोगों के मन में कुछ सवाल हैं, लेकिन हम नीचे लिखे इन दो सवालों पर ही चर्चा करेंगे जो लोगों के मन में हैं। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यक़ीनन आपको भी परहेज की अहमियत का एहसास होगा।

० अगर घर से बाहर निकलने पर कोरोना संक्रमण हो सकता है तो क्या घर में रहकर नहीं हो सकता क्योंकि हवा पर तो कोई रोक-टोक नहीं है, बाहर की हवा घर में भी तो आती है?

० बिना जाँच किये सब लोगों को घरों में बंद कर देने से कोरोना का फैलाव कैसे रुकेगा?

इन सवालों का जवाब जानने के लिये पहले आप कुछ ज़रूरी बातें जन्तु विज्ञान (ज़ूलोजी) के हवाले से समझ लें।

01. वायरस क्या होता है?
वायरस बेहद बारीक (अति सूक्ष्म) कण होते हैं। वायरस सजीव (Living) नहीं बल्कि निर्जीव कण (Non-Living Particles) होते हैं जो सजीव कोशिकाओं को संक्रमित करके रोग को फैलाते हैं। यानी जब तक कोई भी वायरस हमारे जिस्म की ज़िंदा कोशिका के सम्पर्क में नहीं आता, तब तक वो कोई नुक़सान नहीं कर सकता।

02. वायरस जिस्म के अंदर कैसे नुक़सान पहुंचाता है?
वायरस जैसे ही हमारे जिस्म के अंदर जाकर सजीव कोशिकाओं के सम्पर्क में आता है तो वो तेज़ी से अपनी रेप्लिका यानी प्रतिलिपियाँ बनाने लगता है। जब उनकी तादाद बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो वो शरीर के विभिन्न अंगों के काम करने में रुकावट पैदा करती है और स्थिति जानलेवा हो जाती हैं। कोरोना के संक्रमण में वायरस फेफड़ों की नसों को ब्लॉक कर देता है जिससे साँस लेने में दिक़्क़त होती है। शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई न होने से इंसान की मौत होती है।

03. वायरसों का वर्गीकरण कितनी श्रेणियों में किया गया है?
मशहूर जीवविज्ञानी होम्स (Holmes 1948) ने वायरसों को तीन श्रेणियों में बांटा, (01) जूओफैगिनी यानी जंतुओं के वायरस, (02) फाइटोफैगिनी यानी पेड़-पौधों के वायरस, (03) फैगिनी यानी जीवाणुओं के वायरस।

04. वायरस हमारे जिस्म के अंदर कैसे पहुँचता है?
मोटे तौर पर वायरस इन सात तरीक़ों से हमारे जिस्म में दाख़िल होते हैं, (01) साँस के ज़रिए, (02) खाने-पीने के ज़रिए, (03) आँखों के तरल पदार्थ के ज़रिए, (04) किसी ज़हरीले जीव के डंक के ज़रिए जैसे मलेरिया, डेंगू आदि, (05) संक्रमित ख़ून चढ़ाने के ज़रिए, (06) वायरस जनित रोग जैसे एड्स से पीड़ित व्यक्ति से यौन-संबंध बनाने के ज़रिए, (07) आनुवंशिक रूप से यानी माँ-बाप के ज़रिए संतान के जिस्म में।
गौरतलब है कोरोना वायरस पहले तीन तरीक़ों से जिस्म के अंदर पहुँचता है।

05. वायरस कितने डिग्री तापमान तक एक्टिव रह सकता है?
आम तौर पर 35-40 डिग्री तापमान पर वायरस बेअसर हो जाते हैं लेकिन कुछ वायरस 60-70 डिग्री तापमान पर समाप्त होते हैं।

06. वायरस को ख़त्म करने के तरीक़े क्या हैं?
इसके दो तरीक़े हैं। पहला, हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity System), दूसरा वायरस के संक्रमण से बचने के लिये टीका या वैक्सीन।

07. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से कैसे लड़ती है?
वायरस का संक्रमण होने पर हमारे शरीर में अल्लाह की क़ुदरत से निम्नलिखित प्रतिक्रियाएं अपने-आप होतीं हैं,
(1) तेज़ बुख़ार होता है। आम तौर पर 39 डिग्री तापमान पर वायरस ख़त्म हो जाते हैं। जन्तु विज्ञानियों (Zoologists) के अनुसार बुख़ार एक प्राकृतिक सुरक्षा विधि है।
क़ुर्बान जाइये इस्लाम की तालीमात पर। सैकड़ों बरस पहले अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बुख़ार को बुरा कहने से मना फ़रमाया था।

(2) हमारे शरीर में कुछ घूमती रहने वाली कोशिकाएं होती हैं जिनको "मैक्रोफेजेज" कहा जाता है। ये कोशिकाएं वायरस को खा जाती हैं।

(3) वायरस बहुत ही प्रभावशाली ज़हरीले पदार्थ यानी "एंटीजन" होते हैं। हमारे शरीर में "बीटा-लिम्फोसाइट्स" नाम की कोशिकाएं प्रतिकारक प्रोटीन यानी "एंटी-बॉडीज़" बनाती हैं, जो वायरस से लड़कर उन्हें तोड़ देती हैं।

08. टीका या वैक्सीन क्या होता है?
वैक्सीन के ज़रिए शरीर में प्रतिरक्षण (Immunization) बनाने का काम किया जाता है। इसके लिये दो तरीक़े इस्तेमाल किये जाते हैं,

(1) चेष्ट (Active) : कुछ बीमारियों में निष्क्रिय यानी बेअसर किये गये वायरसों का इस्तेमाल किया जाता है जो ख़ुद तो बीमारी पैदा नहीं कर सकते लेकिन शरीर में एंटीजन का काम करके बीटा-लिम्फोसाइट्स को प्रेरित करके उन्हें प्रतिरक्षी (Immune) बनाते हैं। अलर्क रोग, पोलियो, इन्फ्लूएंजा, हैपेटाइटिस-बी आदि बीमारियों में ऐसा किया जाता है।

(2) निश्चेष्ट (Passive) : कुछ बीमारियों के इलाज के लिये उससे संबंधित वायरस का किसी जानवर में संक्रमण कराया जाता है। उस जानवर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (Immunity System) उससे लड़ने के लिये एंटीबॉडीज़ का निर्माण करती है। फिर उसके बाद उस जानवर के ख़ून का सीरम (Serum) इन्सानों के शरीर में इंजेक्शन के ज़रिए डाला जाता है। खसरा, गलसुआ (Mumps) जैसी बीमारियों के वैक्सीन में ऐसा किया जाता है।

अब हम अपने उन सवालों के जवाब की तरफ़ वापस लौटते हैं जो इस पोस्ट के शुरू में लिखे गये हैं। सबसे पहले इस बात को समझ लें,

लॉकडाउन के दौरान क्या-क्या हुआ है?
इस वक़्त पूरे देश में लॉकडाउन है। ट्रेनें, बसें, दोपहिया सहित सभी निजी वाहन नहीं चल रहे हैं। सभी कल-कारखाने बंद हैं।
लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं। उन्हें सिर्फ़ ज़िन्दा रहने लायक ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई लाइन चालू है। बाक़ी सब चीज़ें नहीं मिल रही है, मिसाल के तौर पर शराब की दुकानें बंद हैं, तम्बाकू उत्पादों के बेचने पर रोक है।

ऊपर आप पढ़ चुके हैं कि वायरस-जनित रोगों से लड़ने में हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कारगर साबित होती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता सही वक़्त पर खाना खाने, नशीली चीज़ों के इस्तेमाल से बचने और शरीर को साँस के ज़रिए प्रदूषण-रहित साफ़ हवा मिलने से बढ़ती है।

अगर आप ग़ौर करें तो पता चलेगा कि इस समय हर प्रकार का प्रदूषण कंट्रोल में है। नशीली चीज़ें न मिलने के कारण लोग उनसे बचे हुए हैं। अपने-अपने घरों में रहने की मजबूरी के चलते समय पर खाना भी खा रहे हैं। इस प्रकार देखा जाए तो लॉकडाउन का सही रूप में पालन करने से हमारा फ़ायदा ही हो रहा है।

इसके अलावा हम उस व्यक्ति के सम्पर्क में आने से बचे हुए हैं, जो कोरोना संक्रमण से ग्रस्त है। ऐसा करने कोरोना का फैलाव बेक़ाबू नहीं होगा।

अंत में आपसे यही अपील है कि कुछ दिन सब्र से गुज़ार लीजिए। अपने ख़ाली वक़्त का इस्तेमाल अपने गुनाहों की तौबा करने और अल्लाह की इबादत करने में गुज़ारें। अपने आस-पड़ौस के लोगों की ख़बरगीरी करें, उनके खाने-पीने की चीज़ों का बिना दिखावा किये इंतज़ाम करें। इस वक़्त को अच्छे समाज के निर्माण के लिये मिला अवसर समझें। लोगों में जागरूकता लाने के लिये इस पोस्ट को शेयर भी करें।