इस्राईल में एक साल के अर्से में तीसरी बार चुनाव हुए हैं। इस्राईल की 120 सदस्यों वाली संसद नेसेट में बहुमत के लिए 61 सांसद ज़रूरी है। इस्राईल के निवर्तमान प्रधानमंत्री बिन्यामीन नेतन्याहू भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी हैं। नरेंद्र मोदी भी उनकी सरकार की वापसी चाहते थे। नेतान्याहू की छवि एक कट्टरपंथी यहूदी नेता की है।
पिछले दो बार के चुनावों में किसी भी पार्टी के गठबंधन को बहुमत न मिलने के कारण सरकार का गठन नहीं हो पाया था। क़रीब छह महीने पहले हुए चुनाव में फलस्तीनी अरबों की पार्टी अरब जॉइंट लिस्ट को 13 सीटें मिली थीं लेकिन उसने किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं दिया था।
इस बार हुए चुनाव में नेतान्याहू की लिकुड पार्टी को 36 सीटें मिलीं, उसके सहयोगी दक्षिणपंथी गठबंधन को 22 सीटें मिली। यानी कुल 58 सीटें। एक साल में लगातार तीसरी बार हुए चुनाव में नेतान्याहू बहुमत से चूक गए।
इस्राईल के पूर्व सेना प्रमुख बैनी गैंज़ की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी को 33 सीटें मिलीं। उनकी पार्टी को वामपंथी लेबर गेशर मेरेटज़ पार्टी (7) व राष्ट्रवादी इस्राईल बैतुन पार्टी (7) के कुल 14 में से 13 सांसदों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार बैनी गैंज़ को 46 सीटें मिलीं। फलस्तीनी अरबों की पार्टी जॉइंट लिस्ट (15 सांसद) के पास सत्ता की चाबी थी। अरब जॉइंट लिस्ट के मुस्लिम विरोधी माने जाने वाले बिन्यामीन नेतान्याहू को समर्थन देने को कोई संभावना नहीं थी। आज उसने बैनी गैंज़ को समर्थन देने की घोषणा कर दी, इसी के साथ उनके समर्थकों की संख्या 61 हो गई जो कि बहुमत का आंकड़ा है।
इस्राईल की नई सरकार अब फलस्तीनी अरबों के समर्थन से चलेगी। ऐसा इस्राईल के 72 वर्षीय इतिहास में पहली बार हुआ है।
इस्राईल के हालिया चुनाव भारतीय मुसलमानों के लिए भी एक संदेश हैं। इस्राईल में फलस्तीनी मुसलमानों की कई छोटी-छोटी पार्टियां थीं। उनके अलग-अलग चुनाव लड़ने से वोट बर्बाद हो जाते थे। छह महीने पहले हुए चुनाव में उन्होंने गठबंधन बनाकर अरब जॉइंट लिस्ट के झंडे तले चुनाव लड़ा और पहली बार 13 सीटें जीत लीं लेकिन उस समय सरकार का गठन नहीं हो पाया था। इस कारण से 2 मार्च 2020 को फिर चुनाव हुए। इस बार अरब जॉइंट लिस्ट 15 सीटें जीतकर और मज़बूत हुई और किंगमेकर बन गई। भारत में भी मुसलमानों की कई छोटी-छोटी पार्टियां हैं। अगर वे एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो क़रीब 70-75 सीटें जीत सकते हैं और कांग्रेस की अगुवाई वाले UPA तथा बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA के बीच किंगमेकर की स्थिति में आ सकते हैं।
ज़रूरत इस बात की है कि कोई समझदार व क़ौम का हमदर्द मुस्लिम नेता, सभी मुस्लिम पार्टियों को एक जगह लाने की कोशिश करे।