कोरोना वायरस दुनिया की सबसे बड़ी परेशानी नहीं है

  • Thu, 16 Apr 2020
  • National
  • Professor Noam Chomsky

कोरोना वायरस की एक ख़ासियत यह होगी कि यह हमें सोचने पर मजबूर करे कि हम किस तरह की दुनिया में रहना चाहते हैं? कोरोना वायरस का संकट इस समय क्यों है? क्या यह बाज़ार आधारित बन रही दुनिया की नाकामयाबी की गाथा है?

91 साल के मशहूर अमेरिकी भाषाविद् और राजनीतिक विश्लेषक नॉम चॉम्स्की ने आज के संकट पर अमेरिका के एरिजोना के DiEM25 टी.वी. से बातचीत की है। प्रस्तुत है इस बातचीत का संक्षिप्त संपादित अंश।

प्रोफ़ेसर नॉम चोम्स्की (Noam Chomsky) की पैदाइश साल 1928 की है। दस साल की उम्र में नॉम चोम्स्की ने अपना पहला निबन्ध स्पेनिश सिविल वॉर पर लिखा था। नॉम चोम्स्की ने दूसरे विश्व युद्ध से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ गठन पर, बर्लिन की दीवार गिरने से लेकर शीत युद्ध पर, वियतनाम वार से लेकर तेल संकट पर, यानी सब पर लिखा।

1938 से लेकर 2020 तक दुनिया में उन तमाम महत्वपूर्ण घटनाओं पर जिसने दुनिया का रुख बदल दिया। इस इतिहास को समेटना बहुत मुश्किल है लेकिन इससे यह अंदाज़ लगाया जा सकता है कि नॉम चोम्स्की के चिंतन का परिदृश्य कितना बड़ा है?

नॉम चोम्स्की कहते हैं कि मैं भी इस समय सेल्फ़ आइसोलेशन में हूँ। मैं अपने बचपन में रेडियो पर हिटलर के भाषण सुना करता था। मुझे शब्द नहीं समझ में आते थे फिर भी उस मूड और डर को महसूस कर लेता था जो हिटलर के भाषणों में मौजूद था। ठीक इस तरह से मौजूदा दौर में डोनाल्ड ट्रंप के भाषण होते हैं। इनसे भी ठीक वही प्रतिध्वनि महसूस होती है। इसका मतलब यह नहीं डोनाल्ड ट्रंप फ़ासिस्ट है। डोनाल्ड ट्रंप फ़ासिस्ट विचारधारा में धंसा हुआ शख्स नहीं है। लेकिन सामाजिक तौर पर विकृत इंसान है। समझिये एक तरह के सोशिओपैथ जिसे केवल अपनी फ़िक्र होती है। इस महत्वपूर्ण समय में यही डराने वाली बात है कि डोनाल्ड ट्रंप अगुवाई की भूमिका में है।

कोरोनो वायरस काफी गंभीर है, भयानक है। इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं। लेकिन आगे जाकर हम इससे बच निकलेंगे। न्यूक्लियर वार का बढ़ता ख़तरा, ग्लोबल वार्मिंग और जर्जर होता लोकतंत्र, मानव इतिहास के यह तीन ऐसे बड़े ख़तरे हैं जिनसे निपटा नहीं गया तो ये हमें बर्बाद कर देंगे। ख़तरनाक यह नहीं है कि अमरीका की बागडोर डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में है। ख़तरनाक यह है कि अमरीका जैसे शक्तिशाली देश की बागडोर डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में है।

यह देश दूसरे देशों पर प्रतिबन्ध लगाता है, लोगों को मरवाता है लेकिन दुनिया का कोई लोकतंत्र इसका खुलकर विरोध नहीं करता। यूरोप, ईरान पर लगे प्रतिबन्ध को सही नहीं मानता है, लेकिन अमरीका की ही बात मानता है। यूरोप को डर है कि अगर वह अमरीका का विरोध करेगा तो उसे इंटरनेशनल फाइनेन्शिसियल सिस्टम से बाहर कर दिया जाएगा।

ईरान की आंतरिक परेशानियां है लेकिन उस पर कड़े प्रतिबन्ध लगाए गए हैं। ऐसे प्रतिबन्ध लगाए हैं कि वह कोरोनावायरस के दौर में बहुत अधिक दर्द सह रहा है।

वह क्यूबा जो अपनी आज़ादी के बाद से लेकर अब तक जूझ रहा है, इस दौर में क्यूबा यूरोप की मदद कर रहा है। यह अचरज भरी बात है। इस दौर में क्यूबा जैसा देश यूरोप के देशों की मदद कर रहा है। लेकिन यूरोप के देश ग्रीस (यूनान) की मदद नहीं कर रहे हैं। पता नहीं इसे क्या कहा जाना चाहिए?

दुनिया के सारे देशों के राजनेता वायरस से लड़ने को भी युद्ध कह रहे हैं। दुनिया के नेताओं की तरफ से यह एक तरह का रिटोरिक (Rhetoric) है, जिसे बचाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इसका महत्व है। इस वायरस से लड़ने के लिए उस तरह की मोबलाइज़ेशन की ज़रूरत है जो युद्धों के समय की जाती है? समाज तक पहुँचने के लिए ऐसे शब्दों की ज़रूरत पड़ती है।

भारत के बहुत सारे लोगों की ज़िन्दगी ऐसी है जैसे रोज़ कुआं खोदकर रोज़ पानी पीने का काम किया जाता हो। अगर यह आइसोलेशन में जाएंगे तो भूख इन्हें मार देगी। तब आख़िरकार क्या होना चाहिए? एक सभ्य समाज में अमीर देशों को ग़रीब देशों की मदद करनी चाहिए। अगर दुनिया की परेशानियां ऐसी ही चलती रहीं तो आने वाले दशकों में दक्षिण एशिया में रहना मुश्किल हो जाएगा।

इस गर्मी में राजस्थान का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के क़रीब चला गया। आगे यह और अधिक बढ़ेगा। पानी ख़राब होता जा रहा है। पीने लायक़ नहीं बचा है। दक्षिण एशिया में दो न्यूक्लिअर पावर वाले देश हैं। ये दोनों हर वक़्त लड़ते रहते हैं।

मेरे कहने का मतलब है कि कोरोना वायरस की परेशानी बहुत ख़तरनाक है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े संकटों का बहुत छोटा सा हिस्सा है। इन संकटों से हम ज़्यादा दिनों तक बच नहीं सकते हैं।

हो सकता है कि दुनिया की कई सबसे बड़ी परेशानियां हमारी ज़िन्दगी में उस तरह से छेड़छाड़ महसूस न करवाए जितनी कोरोना वायरस की वजह से हम अपनी ज़िन्दगी में छेड़छाड़ महसूस कर रहे हैं। लेकिन दुनिया की यह सबसे बड़ी परेशानियां हमारी ज़िन्दगी को इस तरह से बदलकर रख देंगी कि इस दुनिया में ख़ुद को बचाना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे दिन ज़्यादा दूर नहीं है, ये आने वाले ही हैं।

कोरोना वायरस की एक ख़ासियत यह होगी कि यह हमें सोचने पर मजबूर करे कि हम किस तरह की दुनिया में रहना चाहते हैं? कोरोना वायरस का संकट इस समय क्यों है? क्या यह बाज़ार आधारित बन रही दुनिया की नाकामयाबी की गाथा है? जब हम इस संकट से उबरेंगे तो हमारे पास कई विकल्प होंगे कि क्या एक तानाशाही सरकार की स्थापना की जाए जिसके पास सारा कण्ट्रोल हो या एक ऐसे समाज की जो मानवीय मदद पर आधारित हो?

(यह लेख, मेरठ से एडवोकेट परवेज़ आलम से हमें प्राप्त हुआ। यह लेख हमें आज के दौर में इंसानियत को बचाने के लिये चिंतन-मनन करने की दावत देता है। हमने इस लेख में कोई एडिटिंग नहीं की है, बस बड़े पैराग्राफ्स को छोटा किया और कुछ अहम वाक्यों के फॉण्ट को बोल्ड किया है। - सलीम ख़िलजी चीफ़ एडिटर आदर्श मुस्लिम)