बेटी ससुराल चली

  • Fri, 20 Mar 2020
  • National
  • Saleem Khilji

मॉडर्न बेटी ख़ूब ख़ुश हुई,
बाप ने ब्याह राजसी ढंग से किया।
शाही बाग में की दावत और,
दान-दहेज भी ख़ूब दिया।।

कर मेकअप नखराली, बेटी ससुराल चली।

सास गर्व करे और ननदें लेती बलाएं,
मालदार बाप की बेटी खूब दहेज है लाई।
गिफ़्ट में लाई महंगे जोड़े,
हमारा ख़ूब सम्मान बढ़ाया।।

शान पीहर की दिखला के, बेटी ससुराल चली।

अगर बेटी को विरासत मिलती,
तो वो किरोड़पति बन जाती।
बीस लाख में पीछा छूट गया,
भाई उसका ख़ुश ख़ूब हुआ।।

करोड़ गंवा, लेकर कौड़ी, बेटी ससुराल चली।

लेकिन ग़रीब की ज़िंदगी धूल गई,
ज़मीन बेटी की शादी में बिक गई।
अब बेटा भरते मकान किराया,
बाप गरीब फूट-फूटके रोया।

पीहर का पता गंवा के, बेटी ससुराल चली।

इस कविता का संदेश यह है कि अमीर बाप, अपनी बेटी की शादी में कुछ लाख रुपये ख़र्च करके, विरासत में मिलने वाली बड़ी रकम को हड़प कर जाता है। वहीं ग़रीब बाप नॉर्मल शादी करे तब भी बेटी को मिलने वाली विरासत से ज़्यादा ख़र्च हो जाता है। इस क्रोनोलॉजी को समझिए।