और हवा उखड़ गई

  • Fri, 03 Apr 2020
  • National
  • Saleem Khilji

आदर्श मुस्लिम अख़बार से लोग, सही तथ्यों पर आधारित जानकारियों की उम्मीद रखते हैं। हमारी भी कोशिश रहती है कि हम पाठकों की उम्मीद पर खरा उतरें।

आज की पोस्ट, तब्लीग़ी जमाअत पर आए संकट की घड़ी में तमाम मुसलमानों को ख़ुद-एहतिसाबी (आत्मचिंतन) की तरफ़ तवज्जोह दिलाने के लिये लिखी गई है। इसे ग़ौर से पढ़ें और पूरी पढ़ें। इंशाअल्लाह, इसमें काफ़ी ऐसी जानकारियां मिलेंगी, जो शायद बहुत से लोग नहीं जानते।

निजामुद्दीन मर्कज़ पर हुई हालिया कार्रवाई ने तब्लीग़ी जमाअत और उसके अमीर मौलाना मुहम्मद सअद कांधलवी को चर्चा में ला दिया है। मौलाना का एक ऑडियो क्लिप वायरल हो रहा है, जिसकी वजह से पुलिस को उनके ख़िलाफ़ पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत मुक़द्दमा दर्ज करने का आधार मिल गया।

इस कथित ऑडियो क्लिप के अनुसार मौलाना कह रहे थे, अगर मस्जिद में आने से किसी की मौत होती है तो उसके लिए मस्जिद से अच्छी कौनसी जगह होगी? सबसे पहले हम यह स्पष्ट कर दें कि आदर्श मुस्लिम इस ऑडियो की सत्यता का दावा नहीं करता है।

■ तब्लीग़ी जमाअत की स्थापना कब हुई?

तब्लीग़ी जमाअत की स्थापना मौलाना मुहम्मद इल्यास कांधलवी (रह.) ने 1926 में की थी। यानी आरएसएस की स्थापना के एक साल बाद।

ग़ौरतलब है कि अनेक जातियों, पंथो और सम्प्रदायों को एकजुट करने के मक़सद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना केशव बलिराम हेगड़ेवार ने 1925 में की थी। RSS यह दावा करता है कि वो एक सांस्कृतिक संगठन है, उसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। जबकि हक़ीक़त यह है कि आज़ादी के बाद उसकी छत्रछाया में एक राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ बनी जिसने 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का नाम धारण किया। इस समय देश में RSS की राजनीतिक शाखा बीजेपी सत्ता में है।

■ तब्लीग़ी जमाअत क्या है?

तब्लीग़ी जमाअत इस्लाम के हनफ़ी मसलक की पैरोकार है। इसकी स्थापना के समय से ही यह कहा गया कि इसका मक़सद सुन्नी मुस्लिमों को इस्लाम की तालीमात (शिक्षाओं) के लिये प्रतिबद्ध बनाना है। तब्लीग़ी जमाअत समर्पित कार्यकर्ता आधारित एक मज़बूत संगठन है। जमाअत में जाने वाले लोगों को हनफ़ी मसलक के अनुसार इस्लाम की बुनियादी बातें सिखाई जाती है। जमाअत के कार्यकर्ता जब तब्लीग़ के लिये दूसरे शहर में जाते हैं तो मस्जिद में ही रहते हैं, वहीं सोते हैं। मस्जिद में ही उनको दीन सीखने-सिखाने की व्यवस्था होती है। इसके अलावा जमाअत के कारकुन मस्जिद के आसपास की बस्तियों में गश्त करते हैं और वहाँ के लोगों को दीन की बातें बताते हैं। ख़ास तौर पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ने पर उभारा जाता है।

तब्लीग़ी जमाअत का दावा है कि वह पूरी तरह अराजनीतिक संगठन है। यह बात सच भी है क्योंकि अपनी स्थापना के 94 साल बाद भी उसने अपनी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाई।

स्थापना के कुछ ही वर्षों में तब्लीग़ी जमाअत का फैलाव दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के तमाम देशों में हो गया। आज अमेरिका, यूरोपीय देश समेत करीब 100 देशों में तब्लीग़ी जमाअत सक्रिय है। इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित बंगलेवाली मस्जिद है। दुनियाभर से तब्लीग़ के लिये भारत आने वाले लोग सबसे पहले इसी मस्जिद में रिपोर्ट करते हैं। इसके बाद ही वे भारत के अन्य शहरों में स्थित किसी मर्कज़ में जाते हैं।

■ तब्लीग़ी जमाअत में दो-फाड़

1926 में मौलाना मुहम्मद इल्यास कांधलवी द्वारा तब्लीग़ी जमाअत की स्थापना के बाद से 1995 तक एक अमीर की क़यादत (नेतृत्व) में, बिना किसी मतभेद या असंतोष के यह जमाअत अपना काम करती रही।

दरअसल 1992 में जमाअत के तत्कालीन अमीर मौलाना इनामुल हसन ने जमाअत को चलाने के लिए लिए 10 सदस्यीय एक शूरा का गठन किया था। 1995 में मौलाना की मौत के बाद उनके बेटे मौलाना जुबैरुल हसन और एक अन्य सीनियर मेंबर मौलाना मुहम्मद सअद ने एक साथ शूरा का नेतृत्व किया। ग़ौरतलब है मौलाना मुहम्मद सअद, जमाअत के संस्थापक, मौलाना इल्यास (रह.) के पड़पोते हैं।

मार्च 2014 में जब मौलाना जुबैरुल हसन की मौत हो गई तो मौलाना मुहम्मद सअद ने ख़ुद को जमाअत का अमीर घोषित कर दिया। कहा जाता है कि ख़ुद को अमीर घोषित करने के बाद मौलाना सअद मनमाना फैसले लेने लगे। इससे जमाअत के अंदर कई वरिष्ठ सदस्यों में नाराज़गी बढ़ने लगी और आख़िरकार 2 साल पहले तब्लीग़ी जमाअत आधिकारिक रूप से दो हिस्सों में बंट गई।

मौलाना मुहम्मद सअद की अगुवाई वाली जमाअत इमारत ग्रुप कहलाती है। मौलाना अहमद लाड, मौलाना इब्राहीम देवला और मुहम्मद फ़ारूक़ की अगुवाई वाला जमाअत का दूसरा गुट शूरा ग्रुप कहलाता है, जिसका मुख्यालय मुंबई के नजदीक नरोल की एक मस्जिद है।

■ फूट के बाद टूटी ताक़त

क़ुरआने-करीम में अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है, *इताअत करो अल्लाह की, और उसके रसूल की, और आपस में झगड़ा मत करो, वर्ना तुम बुझदिल हो जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। और सब्र करो, बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।* (अल अन्फाल : 46)

इस आयत को पेश करने का एक ख़ास मक़सद है जो आपको ऊपर लिखा मैटर पढ़ने के बाद समझ में आ गया होगा। तब्लीग़ी जमाअत से जुड़े लोगों के लिये इस आयत में ग़ौरो-फ़िक्र करने का मक़ाम है।