अल बैक : सदक़ा, रिज़्क़ कैसे बढ़ाता है?

  • Sat, 30 May 2020
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  • Adarsh Muslim Beuro

सऊदी रेस्टोरेंट अल बैक के बारे में यह ब्लॉग अब्दुल वहीद (राजू) मोदी ने सेंड किया है। इसमें एक नसीहत छुपी है, रिज़्क़ देने वाले अल्लाह के वादे का यह एक सबूत भी है। पूरा वाक़या जानने के लिये यह ब्लॉग पढ़िये। (बिलाल ख़िलजी, डेस्क एडिटर)

आप मे से जो सऊदी अरब गए हैं वह मशहूर फ़ास्ट फ़ूड रेस्टोरेंट अल बैक के बारे में यक़ीनन जानते होंगे कि इसको अवाम में किस कदर मक़बूलियत (लोकप्रियता) हासिल है? इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि हमारे देश में भी कई मुस्लिम इलाक़ों में अल बैक नाम के नॉन-वेज शॉप्स खुल गये हैं, हालांकि उनका सऊदी अरब वाले अल बैक से कोई संबंध नहीं है। वे सिर्फ़ उसके नाम की लोकप्रियता को भुना रहे हैं।

क्या आप जानते हैं कि इस फास्ट फूड चैन पर लोगों का इतना बेपनाह रश क्यों है?

क्या आप जानते हैं कि अवाम घंटों लाइनों में लगकर, इस क़दर तकलीफ उठाकर, उसी का ही खाना क्यों पसंद करती है?

क्या आप जानते हैं कि अक्सर सिर्फ एक पार्सल लेने के लिए कम से कम दो घंटों से ज़्यादा का इन्तेज़ार करना पड़ता है? आख़िर क्या वजह है कि उस पर चींटियों की तरह छाए रहते हैं?

◆ क्या अल बैक के चिकन आइटम्स का ज़ायक़ा सब से जुदा है?
◆ क्या अल बैक के रेस्टोरेंट का माहौल बहुत ज़्यादा खूबसूरत है?
◆ क्या उसके दर्जे का सऊदिया में कोई फास्ट फूड सेंटर नहीं है?
◆ क्या उनके यहां इस्तेमाल किये गए मसाले नायाब किस्म के हैं, जो किसी और रेस्टोरेंट में इस्तेमाल नहीं होते?

लेकिन असल वजह कुछ और ही है जो अभी चन्द माह पहले सामने आई।

"अलबैक" के मालिक ने जब यह काम शुरू किया था, तो उसने अपने-आपसे एक वादा किया था। वो वादा क्या था? "मैं हर पैकेट यानी हर ऑर्डर के साथ एक रियाल सदक़ा करूँगा।"

उस शख़्स ने सारी ज़िंदगी इस वादे पर अमल किया। दिन भर में जितने पैकेट बिकते, वह उसके हिसाब से रियाल किसी खैराती तंज़ीम, या ग़रीब-फ़क़ीर या किसी ज़रूरतमंद को रोज़ाना बांट देता।

एक हदीस है, हर दिन जब सुबह होती है, एक फरिश्ता दुआ करता है, ऐ अल्लाह! ख़र्च करने वाले के माल में बरकत दे। दूसरा फरिश्ता कहता है, ऐ अल्लाह! कंजूसी करने वाले का माल बर्बाद कर।

अल बैक की कामयाबी की वजह यही है कि उसके मालिक ने इस बात को महसूस किया कि उसकी कमाई में ग़रीबों-मिस्कीनों का हक़ है। अल्लाह तआला ग़रीबों की दुआओं के ज़रिए रिज़्क़ को बढ़ाता है। इस सच्चे वाक़ये को पढ़ने के बाद हम अपना जाइज़ा लें कि हमारा हाल क्या है?