ज़ीनत वाले लिबास की अहमियत पता चली

आज की यह पोस्ट शालीन कपड़ों की अहमियत पर लिखी गई है। ग़ौरतलब है कि कोरोना वायरस के खतरे से निपटने के लिए भारत और अमेरिका दोनों देशों के अधिकारियों ने लोगों को कपड़े से बने मास्क पहनने की सलाह दी है।

इस्लाम ने जहाँ औरतों को पर्दा करने का हुक्म दिया, वहीं मर्दों को भी ज़ीनत वाले लिबास (Noble Dress) पहनने का आदेश दिया। मर्दों के लिये न्यूनतम सतर नाफ़ (नाभि) से लेकर घुटनों तक ढंकना है, जो कि हर हाल में ज़रूरी है। लेकिन जब आम लोगों के सामने जाना हो, या नमाज़ पढ़ना हो तो कंधों से लेकर टखनों के ऊपर तक जिस्म ढांकना ज़रूरी है। इसके अलावा सर पर अमामा (पगड़ी) पहनना भी सुन्नत है।

इस्लाम की इसी ड्रेस-सेंस की तथाकथित मॉडर्न लोग दकियानूसी भरा कहकर आलोचना करते हैं। ख़ुद को नारीवादी और मॉडर्न मानने वाली औरतें कहती थीं, मेरा जिस्म ख़ूबसूरत है तो क्यों न दिखाऊं? अब कोरोना के क़हर के चलते वे आधुनिक महिलाएं भी चेहरे पर मास्क लगाकर पर्दा करने पर मजबूर हैं।

हमारा देश भारत परंपरागत रूप से पर्दा-प्रथा का समर्थक रहा है। भारत में चेहरा ढंकना कोई नई बात नहीं है। देश के मौसम के कारण लोगों द्वारा चेहरा ढंकना पुरानी बात है। लेकिन ख़ुद को दकियानूस लोगों से अलग दिखाने के चक्कर में बहुत से भारतीय अपनी संस्कृति से दूर हो गये थे।

पिछले कुछ सालों से हमारे देश के फैशन डिज़ाइनर भी ऐसे कपड़े डिज़ाइन करने लगे हैं, जो जिस्म के अंगों को छुपाने के बजाय और ज़्यादा उभारता है। कोरोना के क़हर के बाद, अब उनको भी भारतीय संस्कृति फिर से याद आई है। इस लेख को लिखते हुए हमें यह शे'र याद आ रहा है, जब रंज दिया बुतों ने तो ख़ुदा याद आया।

भारत के मशहूर ड्रेस डिजाइनर रितु कुमार ने बताया कि भारतीय हमेशा से से तीन तरह के पोशाक पहनते थे। एक ऊपर के हिस्से के लिए, दूसरे निचले हिस्से के लिए और एक सिर को ढंकने के लिए, जो चेहरा ढंकने के भी काम आता है। उन्होंने कहा, 'महाराष्ट्र के कार्ले गुफा, दो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी का है, उसमें एक चित्र है जिसमें महिला और पुरुष तीन तरह के कपड़ें पहने हुए दर्शाए गए हैं।' उन्होंने यह भी कहा है कि शहरी महिलाएं भी दुपट्टा का इस्तेमाल चेहरा ढंकने के लिए करती रही हैं।

नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद की डिसप्लिन लीड, टेक्सटाइल डिजाइन स्वाति सिंह घई ने बताया कि हमारे देश में पुरुष भी बाहर जाने पर गमछा का इस्तेमाल चेहरा ढंकने के लिए करते रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि खेत में काम करने वाले किसान और अन्य भी धूल, गर्मी और उमस से बचने के लिए चेहरा ढंकने को कपड़ा साथ में रखते हैं।

कॉस्ट्यूम डिजाइनर संध्या रमन ने कहा कि संस्कृत साहित्य में महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने पर घूंघट और दुपट्टा के इस्तेमाल करने वर्णन है। हाथ-पैर धोकर घर के अंदर जाना और फिर खाना खाने का संबंध भी स्वच्छता से ही है। संध्या रमन ने यह भी कहा, ये काफी पुरानी परंपरा रही है। ताकि धूल, संक्रमण और अन्य चीजों को बाहर रखा जाए।

इस्लाम का यह संदेश सबको याद रखना चाहिये कि मुसीबतों में फंसने के बाद इंसान अपनी असली फ़ितरत (प्राकृतिक अवस्था) की ओर लौटता है। लेकिन यह भी इंसान की एहसानफरामोशी है कि वो मुसीबतों का दूर होते ही फिर से मनमानी करने लगता है। इसीलिए इस्लाम ने आख़िरत के दिन हिसाब-किताब के बाद गुनाहों की सज़ा दिये जाने से इन्सानों को ख़बरदार किया है। क़ुरआन कहता बार-बार लोगों से यह सवाल करता है, "है कोई जो नसीहत पकड़े?"

अंत में यही अपील है कि इस पोस्ट को शेयर करके हक़ बात लोगों तक पहुंचाने में हमारे मददगार बनें।

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