ज़कात, ज़ाया (बर्बाद) न करें

इस साल कोविड-19 आंशिक लॉकडाउन के चलते कई ज़कात के असल हक़दार आप तक नहीं पहुंच पाए होंगे और न ही आप उन तक पहुंचा पा रहे होंगे। सही लोगों तक ज़कात पहुंचे, इसके लिये ज़कात का हिसाब लगाकर उसकी रक़म को अलग रख दें। सरकारी पाबंदियां ख़त्म हो जाने के बाद, ज़कात की रक़म को असल हक़दारों तक पहुंचा दें।
माल पर साल पूरा होते ही ज़कात निकालना ज़रूरी है, इसके लिये रमज़ान का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिये। अक्सर लोग पिछले साल के रमज़ान से इस मौजूदा साल के रमज़ान तक ज़कात अदा करने का पीरियड रखते हैं। ऐसा लोग इसलिये करते हैं क्योंकि रमज़ान में अल्लाह तआला हर नेकी का सवाब 10 गुना से लेकर 700 गुना तक बढ़ा देता है। इसलिये लोग ज़्यादा सवाब कमाने की नीयत से रमज़ान में ही ज़कात निकालते हैं। हालांकि इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है।
असल चीज़ है, सहीह हक़दारों तक ज़कात की रक़म का पहुँचना। ग़ैर-ज़रूरतमंद या नाअहल (अयोग्य) लोगों को ज़कात देकर उसे ज़ाया (बर्बाद) न करें। अल्लाह तआला ने जिन लोगों को ज़कात का हक़दार नहीं कहा है, उनको ज़कात न दें वर्ना ज़कात अदा नहीं होगी। इसलिये हमारी राय यह है कि ज़कात की रक़म को अलग करके रख दें और लॉकडाउन, नाइट कर्फ़्यू, आवाजाही की दिक़्क़तों जैसी परिस्थितियों के ख़त्म होने के बाद सही जगह पर ज़कात की उस रक़म को पहुँचा दें।
अगर ज़कात के असल हक़दारों तक ज़कात पहुँचाना, ऑनलाइन पेमेंट सहित किसी भी तरीक़े से मुमकिन हो तो ज़कात की अदायगी में देरी न करें।
अल्लाह तआला हमें सहीह बात कहने, सुनने व समझने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, आमीन।
वस्सलाम, सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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