पार्ट-01 : ज़कात को ज़ाया (बर्बाद) न होने दें

पार्ट-01 : ज़कात को ज़ाया (बर्बाद) न होने दें

जो लोग साहिबे-निसाब हैं उन पर फ़र्ज़ है कि वे हर साल अपने माल की ज़कात ख़ुशदिली से अदा करें।

जिन पर ज़कात अदा करना फ़र्ज़ है, उनकी यह भी ज़िम्मेदारी है वे ज़कात असल हक़दार तक पहुंचाने की कोशिश करें। ग़ैर-ज़रूरतमंद या नाअहल (अयोग्य) लोगों को ज़कात देकर उसे ज़ाया (बर्बाद) न करें। अल्लाह तआला ने जिन लोगों को ज़कात का हक़दार नहीं कहा है, उनको ज़कात न दें वर्ना याद रखियेगा आपकी ज़कात अदा नहीं होगी।

एक छोटी-सी मिसाल से बात को समझने की कोशिश करें। हम प्रिंटिंग-पब्लिशिंग बिज़नेस में हैं। रमज़ान शुरू होने से 5 दिन पहले, 28 मार्च 2022 को हमारे ऑफ़िस में एक मौलाना टाइप शख़्स आए और बोले कि उनके मदरसे की रसीद बुक छपवानी है। हमने उनसे पुरानी रसीद बुक का सैम्पल दिखाने को कहा तो उनका जवाब था कि उन्होंने नया मदरसा क़ायम किया है इसलिये उनके पास कोई पुरानी रसीद बुक नहीं है।

हमारी उत्सुकता जागी, हमने उनके मदरसे के बारे में कुछ और पूछताछ की। हमने उनसे पूछा कि मदरसा कहाँ पर है? बिल्डिंग कैसी है? कितने बच्चे पढ़ते हैं? क्या आपका मदरसा किसी जमात से या मदरसा बोर्ड से एफिलेटेड है? हमारे सवालों पर वो साहब उखड़ गये, कहने लगे कि आप तो रसीद बुक की कॉस्ट बताइये और छापकर दे दीजिये, आपको इन सब बातों से क्या मतलब? इतना कहकर वो साहब यह कहते हुए उठकर चले गये कि जोधपुर में और बहुत-से प्रेस वाले हैं, पैसा देकर उनसे छपवा लेंगे।

हर शहर में ऐसे लोग मिल जाएंगे, इसलिये हम आपको आगाह करना चाहते हैं कि बिना ठोस तहक़ीक़ के, किसी को ज़कात की रकम न दें।

इसलिये हमारी राय यह है कि रमज़ान की शुरूआत से हिसाब लगाकर ज़कात की रक़म को अलग करके रख दें। फिर जब आप उसके असल हक़दार की पहचान कर लें तो उसे अदा कर दें।

इस संबंध में हम 2-3 दिन में तफ़्सील से जानकारी उपलब्ध कराने की कोशिश करेंगे, इं-शा-अल्लाह!

अल्लाह तआला हमें सहीह बात कहने, सुनने व समझने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, आमीन।

वस्सलाम,

सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़,
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786

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