यह देश किसका है? हर देश किसका है?
 
                                                            
यह ब्लॉग समझ-बूझ रखने वाले लोगों को ग़ौरो-फ़िक्र की दावत देने के लिये लिखा गया है। इसलिये ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ें, उसके बाद अपनी राय दें, हमारा नम्बर इस ब्लॉग के अंत में दिया हुआ है।
भारत में अक्सर मुसलमान यह कहते हुए पाए जाते हैं, यह हमारा "भी" है। दलील देते हुए कहते हैं, हमारे पूर्वजों ने इस देश पर 800 साल हुकूमत की है। क्या 1000-800 साल हुकूमत करने से किसी देश पर लाइफटाइम मालिकाना हक़ का पट्टा मिल जाता है?
एक हैदराबादी लीडर नारा-ए-तकबीर लगवाते हुए कहते हैं कि अगर हम कहीं जाएंगे तो लाल क़िला भी ले जाएंगे, ताजमहल भी ले जाएंगे। भोली-भाली मुस्लिम जनता तालियां पीटती है, ज़िंदाबाद के नारे लगाती है। यह कोई नहीं पूछता कि 74 साल पहले जिन्होंने पाकिस्तान लिया था, वो इस्लामी समाज बना पाए या वो सिर्फ़ नाम का मुसलमान देश है?
याद रखिये, यह देश अल्लाह का है, हर देश अल्लाह का है। जो लोग ख़ुद को मुसलमान कहते हैं वो अल्लाह के बंदे हैं और जो लोग उसे किसी और नाम से पुकारते हैं वो भी अल्लाह के बंदे हैं। यहां तक कि जो लोग अल्लाह का इंकार करते हैं, वो भी अल्लाह के बंदे हैं। अल्लाह का बंदा होने के नाते यह देश सब इंसानों का है, हर देश सब इंसानों का है।
रहा सवाल हुकूमत का, तो अल्लाह जिसे चाहता है, उसे हुकूमत देता है और जिससे चाहता है, छीन लेता है। हुकूमत किसे देनी है और किससे छीननी है यह अल्लाह तय करता है? ईवीएम हो या बैलेट पेपर, यह सब तो ज़रिया-मात्र है।
वो अल्लाह कहता है, जैसे तुम्हारे आमाल (कर्म) होंगे, वैसे तुम्हारे उम्माल (शासक) होंगे। पहले अपने आमाल देख लें, फिर शिकायत करें कि हमारे हाकिम अच्छे क्यों नहीं हैं?
■ कभी सोचा, मुसलमानों से हुकूमत क्यों छीन ली गई?
◆ जिन्हें अल्लाह की पनाह में रहना चाहिये था उन्होंने ख़ुद जहाँपनाह और आलमपनाह कहलवाना शुरू कर दिया। जब अल्लाह ने हुकूमत छीनी तो इस सरज़मीन पर भी उनको पनाह नहीं मिली।
◆ जनता से लगान और नज़राने वसूले जा रहे थे। आलिम फाकाकशी पर मजबूर थे और चापलूसों पर धन लुटाया जा रहा था। जिल्ले-इलाही और जिल्ले-सुब्हानी की सदाएं लगाने वाले मौज कर रहे थे।
◆ बादशाह और नवाब, मुजरों के शौकीन थे। तवायफों का नाच, तहज़ीब का हिस्सा बन गया था। वो शादी ही क्या, जिसमें तवायफों का मुजरा न हो। फ़िज़ूलख़र्ची वाले रिवाजों ने मुस्लिम समाज में गहरी जड़ें जमा ली थीं।
◆ एक वक़्त वो भी आया जब अल्लाह तआला ने जिन्हें Givers (देने वाला) बनाकर भेजा था वो ख़ुद Baggers (माँगने वाले) बन गये।
◆ 1947 में इस्लाम का नाम लेकर एक अलग देश पाकिस्तान बनाया। लेकिन किया क्या? लाहौर की हीरा मंडी में तवायफों के कोठे, तथाकथित इस्लामी रिपब्लिक पाकिस्तान में आज भी मौजूद हैं। पाकिस्तानी फिल्मों में नाचती लगभग नंगी औरतें किस तहज़ीब की नुमाइंदगी करती हैं? मगर पाकिस्तान के तथाकथित मुजाहिदीन को यह नज़ारा नहीं दिख रहा, उनको तो बस गज़वा-ए-हिंद करके जन्नत में जाना है।
और भारत का अतीतजीवी मुसलमान आज भी 800 साल की हुकूमत को याद करके गर्व किये जा रहा है, किये ही जा रहा है। अब आप ईमानदारी से बताइये कि अपनी ख़ामियां सुधारे बिना यह समाज कैसे फिर से सम्मानित स्थान पा सकता है?
इज़्ज़त भी मिलेगी और देश में गौरवशाली स्थान भी, बस दो शब्द कहने हैं, हम बदलेंगे (We will Change)। अपने-आप को बदलने का अज़्म कीजिये और उस पर डट जाइये। आँखों पर बंधी अतीत के गौरव की पट्टी हटाकर सच्चाई का सामना कीजिये। सब ठीक हो जाएगा, इन् शा अल्लाह।
इस ब्लॉग में इस्तेमाल किये गये अल्फ़ाज़ से अगर किसी भाई या बहन की दिल-आज़ारी हुई हो तो माफ़ी चाहते हैं लेकिन कड़वी सच्चाई बयान किये बिना सुधार की उम्मीद करना बेमानी होगा। अगर आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा हो तो इसे आगे शेयर करके सहयोग कीजिये।
सलीम ख़िलजी 
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क) 
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप न. 9829346786
 
                         
                                                            
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