ये माफ़ी है या झाँसेबाज़ी है?
मुकेश अम्बानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्वामित्व वाली मीडिया कम्पनी नेटवर्क18 के प्रमुख पत्रकार अमीश देवगन की एक टिप्पणी पर देश भर के मुस्लिम समाज में आक्रोश दिखाई दिया। अमीश देवगन ने ग़रीब नवाज़ के नाम से मशहूर ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के बारे में आक्रांता और लुटेरा जैसी अशोभनीय टिप्पणी की। जब देश भर में मुस्लिम समाज की ओर से उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराई जाने लगी तो उसने आज 17 जून 2020 को माफ़ी मांगी।
अमीश देवगन ने पहले ट्विटर पर Apologize किया फिर एक वीडियो जारी करके खेद जताया। लेकिन यह सब झाँसेबाज़ी के सिवा और कुछ नहीं है। उसने अपने ट्वीट में कहा कि वो ख़िलजी को आक्रांता और लुटेरा कहना चाहता था लेकिन ग़लती से उसके मुंह से चिश्ती निकल गया। क्या ये बात मानने के लायक है, आइये विचार करते हैं। पहली बात तो यह कि अमीश देवगन ने खेद ज़ाहिर करने का जो वीडियो जारी किया है, उसमें शर्मिंदगी वाले हावभाव नज़र नहीं आते।
दूसरी बात, जिस शो में अमीश देवगन ने उक्त अभद्र टिप्पणी की उसका विज्ञापन पोस्टर देखिये। इसमें टॉक शो का शीर्षक लिखा है, अयोध्या की आस पूरी, संत कहें काशी-मथुरा क्यों अधूरी?
इस शो के दौरान एक मुस्लिम धर्मगुरु ने जब भारत में इस्लाम फैलाने के लिये ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की शिक्षाओं को श्रेय दिया तब अमीश देवगन ने ख़्वाजा साहब के बारे में कथित अभद्र टिप्पणी की। जब उक्त शो में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी की बात ही नहीं चल रही थी तब सफ़ाई देते समय उनका ज़िक्र करने का क्या मतलब है?
इससे यह स्पष्ट होता है कि अमीश देवगन ने इरादतन ख़्वाजा साहब का नाम लिया था और देश भर में फूटे आक्रोश के बाद उसने मामले का रुख़ दूसरी ओर मोड़ने की कोशिश की।
अब हम इस घटना के पीछे छुपे संभावित एजेण्डे पर विचार करते हैं। मामला यह है कि हिंदू संतों के एक संगठन ने 1991 में बनाए गये उस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि 1947 में धर्मस्थलों की जो स्थिति थी उसे बरक़रार रखा जाएगा। इस क़ानून में अयोध्या मामले को अलग रखने की बात कही गई थी।
यह क़ानून कहता है कि अयोध्या मामले को छोड़कर शेष सभी धर्मस्थलों के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा। यानी अयोध्या मामले के अलावा 1947 में जो मंदिर था वो मंदिर रहेगा और जो मस्जिद थी वो मस्जिद रहेगी।
हम आपको बता दें कि 1991 में बने इस क़ानून का ज़िक्र सुप्रीम कोर्ट की अयोध्या मामले के लिये गठित संविधान पीठ ने भी अपने फैसले में किया था। उस फैसले के समय यह माना गया था कि अब काशी-मथुरा मामले के विवाद पर भी पूर्णविराम लग गया है।
इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिंदू संतों के संगठन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के खारिज होने की पूरी संभावना है। इस याचिका पर अभी सुनवाई शुरू नहीं हुई है। ऐसे में अमीश देवगन द्वारा इस मुद्दे पर टॉक शो आयोजित करना, एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। हो सकता है कि काशी-मथुरा के मुद्दे पर राम मंदिर निर्माण जैसा ही कोई और आंदोलन खड़ा करने की योजना के तहत इस मसले को मीडिया में उछालने की कोशिश की गई है।
देश से प्यार करने वाले सभी लोगों को सावधान रहने की ज़रूरत है। राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान बने माहौल की जिनको जानकारी है वो लोग आगे आएं और देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिशों को नाकाम करने में अपना योगदान दें। सलीम ख़िलजी
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