यति नरसिंहानंद सरस्वती जैसे लोग क्यों उभर रहे हैं?

पिछले दिनों एक कथित हिंदू संत यति नरसिंहानंद सरस्वती ने नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में अपनी ज़हरीली विचारधारा को एक बार फिर उजागर किया। उसने अल्लाह के आख़री नबी, हज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बारे में बेहद आपत्तिजनक बातें की, जिसको लेकर मुस्लिम समाज में ज़बरदस्त ग़म व ग़ुस्से का माहौल है। हम उस धर्मांध व्यक्ति की बातों को इस ब्लॉग में दोहराकर शाने-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) में गुस्ताख़ी करना नहीं चाहते।
यति नरसिंहानंद जैसे और भी कई लोग इस समय देश में अपने भड़काऊ भाषणों और बयानों के ज़रिए मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने में लगे हुए हैं।
कोई सेमिनार कर रहा है तो कोई "हिंदू पंचायत" का आयोजन कर रहा है। कई लोग फेसबुक पेज व ग्रुप बनाकर मुस्लिम विरोधी नफ़रत फैला रहे हैं तो कुछ लोग यूट्यूब चैनल खोलकर दिन-रात अपनी ज़हरीली सोच को आम हिंदुओं के मन में भरने की कोशिश कर रहे हैं। तारेक फतेह और वसीम रिज़वी जैसे इस्लाम से मुर्तद लोग भी ऐसे लोगों के सहयोगी बने हुए हैं। न्यूज़ चैनल्स व प्रिंट मीडिया से भी मुस्लिम विरोधी दुष्प्रचार किया जा रहा है।
असल में हमें इस बात पर विचार करना चाहिये कि आम तौर पर सहिष्णु माने जाने वाले हिंदू समाज में ऐसे लोग क्यों उभर रहे हैं? क्या वजह है कि ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कोई कड़ी क़ानूनी कार्रवाई नहीं हो रही है? कौन है जो इनकी पीठ पर हाथ रखे हुए है और इस पुश्तपनाही के पीछे उसका मक़सद क्या है?
देश के अनेक राज्यों की सरकारों ने धर्म परिवर्तन और अंतर्धार्मिक शादियों पर क़ानून बनाए हैं। बड़े-बड़े राजनेताओं द्वारा आम हिंदुओं को यह एहसास कराया जा रहा है कि उनका वजूद ख़तरे में है। धर्म-निरपेक्ष मानी जाने वाली पार्टियां और उनके नेता, मुसलमानों के साथ खुलकर खड़े होने यहाँ तक कि टिकट देने से भी कतरा रहे हैं।
यह सब क्या हो रहा है? इस सवाल से भी ज़्यादा ज़रूरी सवाल यह है कि यह सब क्यों हो रहा है?
अगर हम पेंग्विन द्वारा प्रकाशित और ब्रिटेन की नागरिक यास्मीन ख़ान द्वारा लिखित किताब, विभाजन : भारत और पाकिस्तान का उदय पढ़ें
या लैरी कॉलिंस व डॉमिनिक लैपियर द्वारा लिखित किताब, Freedom at Midnight (जिसका हिंदी वर्ज़न, आधी रात को आज़ादी नाम से उपलब्ध है) को पढ़ें।
या आज़ादी के आंदोलन के कालखंड पर आधारित, भीष्म साहनी द्वारा लिखित तमस जैसी कोई और किताब पढ़ें।
या मौलाना अबुल कलाम आज़ाद द्वारा लिखी गई गुबारे-ख़ातिर, व India Wins Freedom जैसी किताबों और अल हिलाल व अल बलाग़ अख़बार में उनके द्वारा लिखे गये लेखों को पढ़ें।
हमें महसूस होगा कि देश में "हिंदू-मुस्लिम नफ़रत" का कमोबेश वैसा ही माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है जैसा कि आज से 100 साल पहले था।
यति नरसिंहानंद सरस्वती, आनंद स्वरूप, पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ, अंकुर आर्या, वसीम रिज़वी, अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे अनेक लोग जाने-अनजाने में साम्प्रदायिक सद्भावना का माहौल बिगाड़ने में अपना-अपना रोल निभा रहे हैं।
अब एक महत्वपूर्ण सवाल हमारे सामने जवाब के इंतज़ार में है, ऐसे हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी क्या है? इसका जवाब चंद लाइनों में नहीं दिया जा सकता। आइंदा ब्लॉग्समें इस सवाल का तथ्यात्मक जवाब देने की कोशिश की जाएगी, इन् शा अल्लाह!
आपसे गुज़ारिश है कि हमेशा की तरह इस ब्लॉग को भी ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप न. 9829346786
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