We will Change (हम बदलेंगे)

We will Change (हम बदलेंगे)

सोशल मीडिया पर इस समय समाज सुधार आंदोलन चल रहा है। जी हाँ! सिर्फ़ सोशल मीडिया पर, सोशल लाइफ़ में नहीं। अमली तौर पर नहीं बल्कि वर्चुअल, एकदम वर्चुअल (आभासी)। फिर भी सकारात्मक सोच रखते हुए हम इसका स्वागत करते हैं कि चलो यह बात समझ में तो आई कि मुस्लिम समाज में बहुत सारी बुराइयां घर कर गई है और उन्हें सुधारने की जरूरत है।

एक कहावत है, आवश्यकता, आविष्कार की जननी है। जब समाज सुधार की आवश्यकता हम सब महसूस कर रहे हैं तो इसके लिये कोई आविष्कार भी होना चाहिये और वो आविष्कार है, We will Change (हम बदलेंगे)। जी हाँ समाज सुधार होगा, होकर रहेगा अगर हम सुधार की शुरूआत ख़ुद से करें।

चलिये आज ही से शुरूआत करते हैं। कुछ लोग, कई दिनों से एक न्यूज़ शेयर कर रहे हैं, बारात में नहीं जाएंगे 11 लोगों से ज़्यादा। अच्छी बात है, अच्छी ख़बरें शेयर करें लेकिन उसके साथ एक भी कैप्शन लिखें, शुरूआत मेरे घर से, मैं नहीं जाऊंगा, मेरे बीवी-बच्चे नहीं जाएंगे। पहले जो हुआ-सो हुआ, अब नहीं। अब मैं लड़की के बाप पर बोझ नहीं बनूंगा। यक़ीन जानिये, पढ़ने वालों का ज़मीर भी सोचने पर मजबूर होगा, इन् शा अल्लाह।

हम मानते हैं कि दहेज ग़लत है, तो फिर इसकी भी शुरूआत ख़ुद से। ऐलान करें, मैं अपने बेटे की शादी में बेड-बिस्तर समेत सारा इंतज़ाम ख़ुद करूँगा। अपने समधी को स्पष्ट शब्दों में दहेज न देने के लिये कहूँगा। कहकर देखिये, जो बेटियां शादी की उम्र को पहुंच चुकी हैं, उनके दिल से दुआएं निकलेगी।

हम मानते हैं कि बारात लेकर दुल्हन के घर जाने का शरीअत में कोई सुबूत नहीं है। तो फिर यह भी ऐलान करें, मैं अपने बेटे की शादी में बारात नाम का जुलूस लेकर समधी के घर नहीं जाऊँगा। बेटी का बाप बहुत बड़े ताम-झाम से बच जाएगा।

हम मानते हैं, मस्जिद अल्लाह का घर है। निकाह मस्जिद में करना चाहिये। तो फिर खुलकर यह भी कहें, मैं अपने बेटे की शादी मस्जिद में करूंगा। बिना किसी डीजे-बाजे के। एकदम सादगी से। पैसे की बचत और मस्जिद में शादी करने की सुन्नत अदा करने का सवाब भी मिलेगा।

ये सब काम ख़ालिस अल्लाह की रज़ा के लिये कीजिये। यक़ीन जानिये घर में आने वाली बहू बेटी की तरह आपके घर से मुहब्बत करेगी।

अल्हम्दुलिल्लाह! पिछले 25 सालों से हम समाज-सुधार के एक अभियान से जुड़े हैं। जो कहा, वो किया के उसूल पर हत्तल इम्कान अमल करते हैं। अल्लाह तआला आइंदा भी हमें हर ग़ैर-इस्लामी रिवाज से बचने और बचे रहने की तौफ़ीक़ दे, आमीन। दोस्तों! दीन के मुताबिक़ शादी करना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस ज़रूरत है अहद (प्रतिज्ञा) करने की।

शहरयार की लिखी एक ग़ज़ल का बोल है,
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये।

और इसी के साथ, इसी ग़ज़ल के एक बोल के ज़रिए, हम आपसे एक मुहब्बतभरी अपील भी करते हैं,
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये।

मानेंगे न! बोलिये, इन् शा अल्लाह! समाज सुधार की शुरुआत ख़ुद से, आज ही से। इस नेकी के मिशन में आप साथ जुड़कर हमारे सहयोगी बनें।

आख़िर में एक बात और, हर सुधार तभी होगा जब बिगाड़ को हम एक झटके में रोकेंगे। रोज़ा रखना है, अज़ान होते ही हर चीज़ खाना-पीना बंद। थोड़ा-थोड़ा करके बदलाव आएगा, यह सोच एक भुलावे से ज़्यादा कुछ नहीं है।

यह ब्लॉग आप सबके पास एक अपील के रूप में भेजा गया है। अल्लाह के लिये, इस पर ग़ौर कीजिये। अगर आप समझें कि इसमें अल्लाह की तौफ़ीक़ से अच्छी बात कही गई है तो फिर इसे शेयर करके आगे से आगे पहुंचाने में हमारा सहयोग कीजिये।

सलीम ख़िलजी
(चीफ़ एडिटर आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप न. 9829346786

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