वसीम रिज़वी की मंशा क्या थी?

वसीम रिज़वी की मंशा क्या थी?

इस ब्लॉग को पूरा पढ़े बिना कोई राय मत बनाइयेगा। यक़ीनन इसमें हमने आपको एक गहरी साज़िश की जानकारी देने की कोशिश की है।

छह महीने पहले; 12 सितंबर 2020; स्थान कराची (पाकिस्तान)। लाखों सुन्नी मुसलमानों का हुजूम सड़कों पर था, नारे लगाए जा रहे थे, "काफ़िर-काफ़िर, शिया काफ़िर।"

वजह क्या थी?

पाकिस्तान में लोकडाउन हटा ही था। मुहर्रम का महीना आ गया। एक विदेशी शिया मुबल्लिग ने 10 मुहर्रम के दौरान आयोजित एक शिया जलसे में सहाबा-ए-किराम को बुरा-भला कहा। पाकिस्तान के शिया आलिमों ने उसे आइंदा बुलाने पर बैन लगाने का ऐलान करके "डैमेज कंट्रोल" की कोशिश की थी। लेकिन तब तक मुस्लिम क़ौम की दरारें खुलकर सामने आ चुकी थीं।

तीन दिन तक लगातार जुलूस निकले। पहले दिन सुन्नी बरेलवी, दूसरे दिन सुन्नी अहले हदीस, तीसरे दिन सुन्नी देवबंदी। नारा सबका एक ही था, जिसका ज़िक्र ऊपर किया जा चुका है।

वसीम रिज़वी भी शायद भारत में कुछ ऐसा ही करना चाहता था। सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी रिट के बारे में उसने जो-कुछ कहा, पढ़ चुके हैं और सुन चुके हैं। वसीम रिज़वी ने ख़लीफ़ा हज़रत अबूबक्र (रज़ि.), हज़रत उमर (रज़ि.), हज़रत उस्मान (रज़ि.) पर क़ुरआन में तब्दीली करने का इल्ज़ाम लगाया। "भांड मीडिया" ने ढोल-थाली बजाकर उसका "प्रचार" किया। स्वार्थी लोगों को "पाकिस्तान जैसी ख़बर" आने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था।

अल्हम्दुलिल्लाह! सुम्म अल्हम्दुलिल्लाह!! भारत में यह साज़िश नाकाम हो गई और फ़ित्ना-ए-वसीमिया फैल हो गया। क्योंकि,

शिया आलिमों ने लखनऊ में जलसा करके वसीम रिज़वी को मुर्तद घोषित करने और क़ुरआन ईमान रखने का ऐलान करने में ज़रा-सी भी देरी नहीं की।

मा शा अल्लाह! सुन्नी आलिमों ने वसीम रिज़वी की मज़म्मत तो की लेकिन शिया-सुन्नी टकराव जैसी कोई बात नहीं कही।

यही नहीं, सुन्नी समुदाय के आम लोगों ने शिया व सुन्नी आलिमों के बयानों को जन-जन तक पहुंचाकर ग़लतफ़हमी को पनपने से पहले ही ख़त्म कर दिया।

इस नेक काम में एक छोटा-सा सहयोग हम सब ने दिया। आपके सहयोग का शुक्रिया, आपकी मुहब्बत को सलाम! यही स्पिरिट हमेशा बनाए रखियेगा। अल्हम्दुलिल्लाह! देश भर से हमारे पास दर्जनों फ़ोन रोज़ाना आ रहे हैं। बंगाल, ओडिशा से भी कई लोग टूटी-फूटी हिंदी में बात करके अपने जज़्बात का इज़हार कर रहे हैं।

इस क़ौमी एकजुटता का नतीजा देखिये। कल 15 मार्च को भारत सरकार के नेशनल माइनॉरिटी कमीशन ने वसीम रिज़वी से 21 दिन में माफ़ी मांगने को कहा। जब नेशनल माइनॉरिटी कमीशन ने अपने नोटिस में स्वीकार किया है कि वसीम रिज़वी के बयान से आईपीसी की धारा 153A- और 295-A का उल्लंघन हुआ है तो 21 दिन में माफ़ी मांगने की अपील क्यों? डायरेक्ट केस क्यों नहीं?

आदर्श मीडिया नेटवर्क द्वारा बाक़ायदा एक ब्लॉग लिखकर वसीम रिज़वी के ख़िलाफ़ लग सकने वाली सम्भावित धाराओं की जानकारी दी जा चुकी है। फैज़ान मुस्तफ़ा जैसे कई काबिल मुस्लिम वकीलों ने वसीम रिज़वी केस की परतें उधेड़कर रख दी हैं।

अल्हम्दुलिल्लाह! पूरे देश से ज़बरदस्त एकजुटता की आवाज़ सुनाई दे रही है। अलग-अलग शहरों में वसीम रिज़वी के ख़िलाफ़ मुक़द्दमे दायर करने की ख़बरें आ रही हैं। कीप इट अप दोस्तों! लेकिन अभी भी कुछ लोग फ़ालतू के मैटर में अपना समय ख़राब कर रहे हैं। हम उनसे अपील करते हैं कि बिना तहक़ीक़ात किये कोई पोस्ट शेयर न करें और न किसी की पोस्ट पर कमेंट्स करें।

भारतीय सेना के एक रिटायर्ड मेजर गौरव आर्य ने एक इंटरव्यू में मुस्लिम समाज में मौजूद दरारों का ज़िक्र किया था। जी हाँ! हमारे मुस्लिम समाज में कई दरारें मौजूद हैं। कई स्वार्थी तत्व समय-समय पर उन दरारों को चौड़ा करने की कोशिश करते रहते हैं। हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इन दरारों को बड़ी न होने दें। सतर्क रहिये, चौकन्ने रहिये।

अगर आपको यह ब्लॉग पसंद आया हो तो हमेशा की तरह इसे जमकर शेयर कीजिये।

सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़ आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान

Leave a comment.