विरोध, नफ़रत-आधारित नहीं होना चाहिये
योगगुरु बाबा रामदेव के कोरोना ट्रीटमेंट किट पर कई खिल्ली उड़ानेवाले कमेंट्स किये जा रहे हैं, वहीं जापानी कंपनी ग्लेनमार्क द्वारा बनाई गई दवा फेविपिराविर पर किसी का ध्यान ही नहीं है। आज की इस स्पेशल रिपोर्ट में हम दोनों दवाओं का निष्पक्षता से विश्लेषण करेंगे ताकि आप ग़ौर कर सकें कि कोरोना के नाम पर क्या खेल चल रहा है।
कोरोना के इलाज के लिये एक दवा लाँच हुई है जिसका नाम है, फेविपिराविर, इसे बनाया है, ग्लेनमार्क नाम की एक दवा कंपनी ने। ग्लेनमार्क का कहना है कि यह दवा कोरोना के हल्के व मध्यम लक्षणों वाले मरीज़ों के लिये कारगर है।
इस कंपनी ने दावा किया है कि उसने इस दवा का 150 मरीज़ों पर सफल ट्रायल किया है, हालांकि कंपनी के दावे की अभी तक किसी सरकारी एजेंसी ने पुष्टि नहीं की है। किसी भी नामचीन मेडिकल जर्नल में इसके बारे में कोई रिपोर्ट भी पब्लिश नहीं हुई है। इसके बावजूद ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने इस दवा के इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है।
फेविपिराविर (ब्रांड नेम फैबिफ्लू) क्या है?
फेविपिराविर की एक गोली की क़ीमत है, 103 रुपये। एक महीने के लिये 3500 रुपये की एक स्ट्रिप। कम्पनी का कहना है कि पूरे फ़ायदे के लिये इसे 2 महीने तक लेना होगा। फेविपिराविर दवा को जापान की सरकार ने इन्फ्लूएंजा यानी फ़्लू (बुख़ार) के इलाज के लिये लाइसेंस दिया था।
ग्लेनमार्क का दावा है कि फेविपिराविर कोरोना वायरस के आरएनए से जुड़कर उसे कमज़ोर करती है, जिससे मरीज़ ठीक हो जाता है। लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स भी हैं। दवा निर्माता कम्पनी ग्लेनमार्क का कहना है, किडनी और लिवर की गंभीर बीमारी वाले मरीज़ों और गर्भवती औरतों को फेविपिराविर नहीं दी जानी चाहिये।
अब बात योगगुरु बाबा रामदेव द्वारा लाँच किये गये तीन दवाओं, कोरोनिल, श्वासारी और अणु तेल वाले कोरोना ट्रीटमेंट किट की। बाबा रामदेव ने कोरोना के 280 मरीज़ों पर परीक्षण के बाद 100% कारगर होने का दावा किया। उन्होंने भी यही कहा कि इसमें मौजूद आयुर्वेदिक दवाएं कोरोना वायरस के आरएनए को कमज़ोर करती है। बाबा रामदेव ने इस किट को इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक शक्ति) बढ़ाने वाला बताया। इस किट की क़ीमत क़रीब 600 रुपये बताई गई।
बाबा रामदेव के दावे के बाद जैसे कोहराम मच गया। कुछ लोग इसकी तारीफ़ कर रहे थे तो कुछ लोगों ने इसके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। सरकारें भी बैकफ़ुट पर जाती दिखाई दीं।
बीजेपी शासित उत्तराखंड सरकार का कहना है कि उसने पतंजलि को इम्यूनिटी बूस्टर दवा के लिये लाइसेंस दिया था।
कांग्रेस शासित राजस्थान सरकार का कहना है कि इस बात की उसे कोई जानकारी नहीं है कि राजधानी जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में कोरोनिल का परीक्षण किया गया।
बीजेपी शासित केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने पतंजलि द्वारा उपलब्ध कराए गये दस्तावेजों के सत्यापन होने तक कोरोनिल, श्वासारी व अणु तेल (कोरोना ट्रीटमेंट किट) की बिक्री और विज्ञापन पर रोक लगा दी।
फेविपिराविर और कोरोनिल की तुलना
आपके सामने दो दवाओं के बारे में तथ्यात्मक जानकारी रखी गई है। इन दोनों की तुलना कीजिये।
◆ फेविपिराविर को बनाने वाली ग्लेनमार्क कंपनी ने 150 मरीज़ों पर सफल ट्रायल का दावा किया। उसकी सरकारी एजेंसी ने पुष्टि नहीं की। पतंजलि ने 280 मरीज़ों पर ट्रायल की बात कही, उसकी पुष्टि भी होनी है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने फेविपिराविर को मंज़ूरी दे दी मगर आयुष मंत्रालय ने कोरोनिल पर रोक लगा दी।
◆ फेविपिराविर नामी दवा इन्फ्लूएंजा के लाइसेंस पर बनी, कोरोनिल दवा इम्यूनिटी बूस्टर के लाइसेंस पर बनी।
◆ फेविपिराविर की एक एक स्ट्रिप 3500 रुपये की है वहीं कोरोनिल किट की क़ीमत 600 रुपये है।
ऐसा लगता है कि सारा खेल दवा माफ़िया का है। महंगी दवा वाली कम्पनी ज़्यादा कमीशन दे सकती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पतंजलि के कोरोना किट से उनको अपना खेल बिगड़ता नज़र आ रहा है।
क्या इस बात पर किसी ने ग़ौर किया कि कोई दवा या वैक्सीन न होने के बावजूद हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग ठीक कैसे हुए? डॉक्टरों का भी यह कहना है कि तंदुरुस्त होना शरीर में मौजूद इम्यूनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) पर निर्भर करता है। इसका मतलब यह हुआ कि जो चीज़ें इसको बढ़ा दें, वही इसकी दवा है चाहे वो आयुर्वेदिक काढ़ा ही क्यों न हो।
अगर कोरोना ट्रीटमेंट किट को पतंजलि के बजाय, डाबर या हिमालया जैसी आयुर्वेद दवा कम्पनी ने बनाया होता तब शायद उसका इतना विरोध नहीं होता। इसलिये हमारा कहना यही है कि जब तक आयुष मंत्रालय पतंजलि के कोरोना किट को बेअसर घोषित न कर दे, तब तक कोई हंगामा खड़ा करना ग़लत है।
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