सोशल मीडिया पर अतिसक्रियता

सोशल मीडिया पर अतिसक्रियता

आज क़रीब-क़रीब सबके पास स्मार्टफोन है। हर यूज़र फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम में से किसी न किसी प्लेटफार्म पर जुड़ा हुआ है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका अकाउंट सब जगह है। इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का अच्छा इस्तेमाल कम और ग़लत इस्तेमाल ज़्यादा हो रहा है। कई मुस्लिम यूज़र्स उड़ते तीर पकड़कर परेशानियों का शिकार हो रहे हैं। कुछ यूज़र्स की अतिसक्रियता से मुस्लिम समाज का नुक़सान हो रहा है। आज के ब्लॉग में हम इस ज्वलंत मुद्दे पर तार्किक चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला इर्शाद फ़रमाता है,
★अपने रब के रास्ते की तरफ़ हिकमत और अच्छी नसीहत के साथ बुलाइये और उनसे अच्छे तरीक़े से बहस कीजिये, बेशक आपका रब ख़ूब जानता है कि कौन उसकी राह से भटका हुआ है और वह उनको भी ख़ूब जानता है जो राह पर चलने वाले हैं। (सूरह नहल : 125)

एक-दूसरे से संवाद करने के निम्नलिखित तरीक़े हैं,
01. रूबरू (फेस-टू-फेस) व्यक्तिगत बातचीत व ग्रुप डिस्कशन।
02. भाषण के ज़रिए अपने विचार दूसरों तक पहुंचाना।
03. सेमिनार, सिंपोजियम आदि।
04. ऑडियो-वीडियो कॉलिंग।
05. वेबिनार यानी वीडियो कॉलिंग के ज़रिए संवाद।
06. पत्र-पत्रिकाओं (प्रिंट मीडिया) में लेखन।
07. ऑनलाइन प्लेटफार्म्स पर पोस्टिंग, ब्लॉगिंग आदि।
08. विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर चैटिंग।

इनमें से किसी भी माध्यम से संवाद, चर्चा-परिचर्चा करने का क्या उसूल होना चाहिये, उसके बारे में स्पष्ट निर्देश ऊपर बयान की गई क़ुरआनी आयत में मौजूद है। हिकमत यानी समझ-बूझ और अच्छी नसीहतों के साथ किसी के साथ संवाद करना। अगर बहस भी करनी हो तो भले तरीक़े से यानी सभ्यता के दायरे में रहकर करना।

अफ़सोस की बात यह है कि आज अक्सर मुसलमान ऐसा नहीं करते। सही इल्म या मुकम्मल जानकारी न होने के बावजूद वे फ़ालतू बहस का हिस्सा बन जाते हैं और ग़ैर-ज़रूरी बातें कहकर उनको मसाला उपलब्ध करा देते हैं। अगर हमारे पास उस मसले पर ठोस जानकारी नहीं है या हम तर्कसंगत अंदाज़ में बात नहीं कर सकते तो हमारा ख़ामोश हो जाना ज़्यादा बेहतर है।

कई बार फेक न्यूज़ जान-बूझकर फैलाई जाती है और बहुत सारे मुसलमान उसे शेयर करके या उस पर बेवक़ूफ़ी भरे कमेंट्स करके, उसके जाल में फंस जाते हैं। उसके बाद मुसलमानों द्वारा उकसावे में आकर किये गये कमेंट्स को हिंदू समुदाय में वायरल किया जाता है और उनके जज़्बाती युवाओं को आक्रोशित किया जाता है।

हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह के स्वास्थ्य को लेकर एक फ़र्ज़ी ट्वीट वायरल हुआ। कई लोगों ने उस पर अशोभनीय टिप्पणियां की। अंत में जब मामले का पटाक्षेप हुआ तो पता चला कि भावनाओं में बहकर न जाने कितने लोग सरकार के राडार पर आ गये।

ऐसा करने वालों को सोचना चाहिये कि ऐसी हरकतों से मुस्लिम समाज का व दीने-इस्लाम का कितना बड़ा नुक़सान होता है?

अगर किसी ने मुसलमानों पर ज़ुल्म भी किया है तो मुसलमानों को क्या करना चाहिये? सूरह नहल की अगली आयत में बताया गया है।

★ और अगर तुम बदला लो तो उतना ही बदला लो जितना तुम्हारे साथ किया गया है, और अगर तुम सब्र करो तो वह सब्र करने वालों के लिए बहुत बेहतर है। (सूरह नहल : 126)

अगर किसी ने एक चांटा मारा है तो उसके जवाब में एक ही चांटा मारा जा सकता है। एक से अधिक चांटे या घूंसे मारना ग़लत है। लेकिन अल्लाह तआला ने बदला न लेने और सब्र करने को ज़्यादा बेहतर क़रार दिया है।

अगर किसी ने इस्लाम या मुस्लिम समाज के बारे में ग़लत पोस्ट डाली है, तो पहले उसे भले तरीक़े से समझाएं। फिर भी वो अगर बाज़ न आये तो उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करें। हाल ही में कई मीडिया से जुड़े लोगों की FIR दायर होने के बाद बोली बदली है।

ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ भी दुश्मन कई तरह की तदबीरें (युक्तियां) किया करते थे। अल्लाह तआला ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपनी हिमायत साथ होने का यक़ीन दिलाते हुए फ़रमाया,

★ और सब्र कीजिये, और आपका सब्र करना अल्लाह ही की तौफ़ीक़ से है, और आप उन पर ग़म न करें और जो कुछ तदबीरें वे कर रहे हैं उससे तंगदिल न हों। ★ बेशक अल्लाह उन लोगों के साथ है जो परहेज़गार हैं और जो नेकी करने वाले हैं। (सूरह नहल : 127-128)

अंत में यही गुज़ारिश है कि बेकार की पोस्ट न तो ख़ुद डालें और न ही शेयर करें और इसके साथ ही ग़लत कमेंट्स करने से बचें। वक़्त का सही इस्तेमाल यह है कि अच्छी किताबें पढ़ें, अच्छे लोगों के कॉन्टेक्ट में रहें ताकि अच्छी बातें सीखने को मिले।

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