तस्कीन न हो जिसमें, वो राज़ बदल डालो।

तस्कीन न हो जिसमें, वो राज़ बदल डालो।
जो राज़ न रख पाए, वो हमराज़ बदल डालो।

तुमने भी सुनी होगी, बड़ी आम कहावत है।
अंजाम का हो ख़तरा तो आग़ाज़ बदल डालो।

दुश्मन के इरादों को है, ज़ाहिर करना अगर।
तुम खेल वही खेलो, अंदाज़ बदल डालो।

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