स्पोर्ट्स और एजुकेशन
कई बार क़ौमी लेवल पर क्रिकेट प्रतियोगिता होती है तो दो तरह के विचार सामने आते हैं।
01. कुछ लोग यह कहते हैं कि इतनी बड़ी रक़म क्रिकेट के आयोजन में ख़र्च की, उसके बदले तालीम के क्षेत्र में फलाँ-फलाँ काम किया जा सकता था।
02. कुछ लोग यह कहते हैं कि स्पोर्ट्स भी ज़रूरी है इसलिये इसे फ़िज़ूलख़र्ची कहना ग़ैर-मुनासिब है।
ज़िंदगी के लिये जहाँ तालीम की अहमियत है वहीं खेलकूद ज़रूरत को भी नकारा नहीं जा सकता। एजुकेशन और स्पोर्ट्स की ज़रूरत क्यों है? आज के ब्लॉग में हम इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे, इन् शा अल्लाह।
■ सबसे पहले एजुकेशन की बात
दीनी तालीम और मॉडर्न एजुकेशन, दोनों ही हमारे लिये ज़रूरी है। असल बात है कि तालीम हासिल करने का मक़सद क्या है?
दीनी तालीम हासिल करने का मक़सद है कि इंसान अपने रब को पहचाने और अपनी आख़िरत वाली ज़िंदगी को संवारे। अगर कोई दुनिया की दौलत कमाने के लिये दीनी तालीम हासिल करे तो उससे कोई फ़ायदा नहीं होता।
इसी तरह अगर कोई इंसान सिर्फ़ नौकरी पाने के लिये मॉडर्न एजुकेशन हासिल करे तो भी कोई फ़ायदा हासिल नहीं होता क्योंकि सरकारी नौकरी सबको नहीं मिल सकती। प्राइवेट कंपनियां डिग्री से ज़्यादा स्किल पर फ़ोकस करती है। कुछ लोग आर्थिक रूप से सक्षम, बिज़नेस परिवार से आते हैं, उनके लिये एजुकेशन सिर्फ़ स्टेटस सिम्बल होती है। उनकी बात अलग है, वो लोग चाहे जैसी डिग्री हासिल करें।
लेकिन आम नागरिकों की बात अलग है। ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट बनकर बेरोज़गारी का बिल्ला गले में टांगने से बेहतर है, ITI या पॉलिटेक्निक डिप्लोमा जैसी रोजगार-परक शिक्षा हासिल करके कोई काम-धंधा करना। एक "बेरोज़गार हाइली-एजुकेटेड इंसान" का अपने मज़दूर बाप से ख़र्च के लिये पैसे माँगना सबसे शर्मनाक बात है। तल्ख़ हक़ीक़त बयान करने के लिये माफ़ी चाहता हूँ लेकिन सच तो यही है।
हमारे एक दोस्त मुनव्वर अली ताज रिटायर्ड जेलर हैं और बहुत अच्छे शायर हैं। उनकी एक ग़ज़ल का हक़बयानी करने वाला शे'र पढ़िये,
चूल्हे की चीख़ सुनकर, सुख़नवर सहम गया।
तेवर गया, वक़ार गया, सारा अहम गया।
जब चूल्हा चीख़ता है तब कोई डिग्री काम नहीं आती। अच्छे से अच्छा सुख़नवर (लेखक) भी इसका सामना नहीं कर पाता।
हमारे कहने का मतलब है कि दीनी तालीम हर मुसलमान को हासिल करनी चाहिये क्योंकि इसी से उसकी पहचान जुड़ी है लेकिन मॉडर्न एजुकेशन अपनी ज़रूरत के अनुसार हासिल करनी चाहिये।
■ अब स्पोर्ट्स की बात
माज़रत के साथ कहना चाहूंगा स्पोर्ट्स का मतलब सिर्फ़ क्रिकेट नहीं है। देश में लाखों युवा अपने-अपने शहर में क्रिकेट खेलते हैं, सबका नेशनल टीम में या आईपीएल टीमों में सलेक्शन नहीं होता।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बेहतरीन घुड़सवार थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तीरंदाजी, तलवारबाजी और तैराकी में भी बहुत माहिर थे।
इसलिये बेहतर यही है कि क्रिकेट के साथ-साथ फुटबॉल, वॉलीबॉल, हॉकी, टेनिस, बैडमिंटन, रेस (दौड़), साइकिलिंग, घुड़सवारी, तैराकी, जूडो-कराटे, बॉक्सिंग, तीरंदाजी, शूटिंग आदि खेलों पर भी तवज्जो देनी चाहिये।
हमारे कहने का मतलब यह है कि जिस तरह मॉडर्न तालीम हासिल करने का मक़सद रोज़गार पाना या ज्ञान में दक्षता प्राप्त करना, होना चाहिये उसी तरह स्पोर्ट्स का भी मक़सद फिज़िकल फिटनेस यानी शारीरिक तंदुरुस्ती हासिल करना होना चाहिये। अगर किसी का सलेक्शन किसी भी खेल से सम्बंधित टीम में हो जाए तो बहुत अच्छी बात है वर्ना शरीर का तंदुरुस्त होना भी कोई कम बात नहीं है।
उम्मीद है आप इस ब्लॉग में कही गई बातों से सहमत होंगे। हम आपसे हमेशा की तरह गुज़ारिश करते हैं कि इसे शेयर करके ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने में हमारा सहयोग करें।
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर, राजस्थान
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