कोरोना इफेक्ट्स-01: सोशल मीडियाई साम्प्रदायिकता
देश कोरोना नामी एक ऐसी महामारी से जूझ रहा है, जिसका अब तक कोई कारगर इलाज नहीं मिल सका है। राष्ट्रीय संकट के इस समय में राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा होने के बजाय, जनता को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने का कुत्सित प्रयास चल रहा है। महाराष्ट्र के सीमावर्ती ज़िले पालघर के एक गांव गढ़चिंचले में दो साधुओं की भीड़ द्वारा निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई। जहाँ ये घटना हुई वहाँ मुस्लिम बसावट ही नहीं है। उसके बावजूद कुछ न्यूज़ चैनल्स ने मामले को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की। हत्यारी भीड़ के वायरल वीडियो में सुनाई दे रही "ओए बस, ओए बस" की आवाज़ को "मार शोएब" कहकर प्रचारित किया गया। सोशल मीडिया ज़हरबयानी में दो क़दम आगे निकल गया। ट्विटर पर संतों हमें विराथु दो ट्रेंड करने लगा। कौन है अशिन विराथु, जिसकी माँग की जा रही? इस बढ़ती साम्प्रदायिकता के क्या दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं? इस नफ़रत को कैसे रोका जाये? आज के इस ब्लॉग में हम एक सुलगते मसले पर चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।
कोरोना महामारी के लिये ज़िम्मेदार कोविड-19 वायरस से दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी संक्रमित हुई है, बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं। दुनिया के कई देश इसका इलाज तलाशने में जुटे हैं लेकिन अभी तक सौ फीसद कारगर इलाज तलाशा नहीं जा सका है। यह पहली ऐसी बीमारी है, जिसके चलते लॉकडाउन जैसा शब्द सबकी ज़बान पर आया। आज़ादी से विचरण करने की आदी मानव जाति को गृह-कारावास की सज़ा झेलनी पड़ी है।
संकट के समय, जानवर भी एक झुंड में इकट्ठे हो जाते हैं। कई जानवर ऐसे हैं जो अपनी ही प्रजाति में एक-दूसरे पर हमलावर रहते हैं। लेकिन कई बार देखा गया है कि जान संकट में आने पर, वे भी एकजुट हो जाते हैं।
हमारे देश में सामूहिक एकजुटता की भावना को जैसे किसी की नज़र लग गई है। संकट की इस विकट घड़ी में भी धर्मयोद्धा अपना मानवीय धर्म भूलकर, कर्मकांडी धर्म के जयकारे लगाने में जुटे हुए हैं। किसी को ये शब्द थोड़े तीखे लग सकते हैं लेकिन हमारी भावना क़तई ग़लत नहीं है। हम, इंसानों में विलुप्त होते जा रहे हमदर्दी के जज़्बात को उभारना चाहते हैं, उन्हें झकझोरना चाहते हैं। फिर भी अगर किसी को हमारी कोई बात बुरी लगी हो, तो हम बिना शर्त माफ़ी माँगते हैं।
अंदाज़े-बयां गरचे मेरा शोख़ नहीं है,
शायद के उतर जाए किसी दिल में मेरी बात।
■ अशिन विराथु कौन है?
म्यांमार (बर्मा) का एक बौद्ध भिक्षु, जिसका काम गौतम बुद्ध की शिक्षा प्रेम और करुणा फैलाना होना चाहिये था लेकिन उसने उससे उलट मार्ग चुना। अपने देश के एक अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ उसने इतनी ज़हरबयानी की कि सदियों से साथ रहने वाले बहुसंख्यक बौद्ध, उन पर टूट पड़े। जमकर नरसंहार हुआ। इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई। अगर भारत के बहुसंख्यक समुदाय का कोई समूह, अशिन विराथु जैसे किसी संत को रोल मॉडल मानने लगे तो यह काफ़ी चिंताजनक बात है। समय रहते साम्प्रदायिक सद्भावना को बढ़ावा देने वाले कामों में तेज़ी लाई जानी चाहिये।
■ साम्प्रदायिकता के क्या दुष्प्रभाव नज़र आये?
मार्च 2020 में हुए तब्लीग़ी जमाअत के इज्तिमा के बारे में बहुत-कुछ कहा, सुना और लिखा जा चुका है। लेकिन उसके नाम पर जो न्यूज़ चैनल्स, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया में जो नफ़रत का तूफ़ान उठा, वो इस देश के हर समझदार नागरिक के लिये चिंता की बात है। न्यूज़ चैनल्स पर झूठी ख़बरें टेलीकास्ट की गईं, अख़बारों में छापी गईं। कुछ अख़बारों में एक समुदाय के सोशल बॉयकॉट का आह्वान किया जाने लगा।
एक धर्म विशेष के झंडे लगाकर सब्ज़ी बेचना या कोई ख़ास रंग की पगड़ी बांधना या पटका गले में लटकाकर फल-सब्ज़ी या कोई और चीज़ बेचने से भी किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होता अगरचे उसके साथ अपने स्व-धर्मी बंधुओं से ही सामान ख़रीदने का आह्वान न किया जाता। सौभाग्य से सरकार ने समय रहते उचित कार्रवाई करके इस अभियान को रोकने की कोशिश की।
नफ़रत इतने चरम स्तर पर पहुंच गई कि बड़े-बड़े चेहरे भी बौनी हरकतें करने लगे। एक चुने हुए सांसद ने अरब देशों की मुस्लिम महिलाओं की बेडरूम लाइफ़ पर घटिया टिप्पणी की। जिन अरब देशों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया, उन्हीं देशों में भारत-विरोधी भावनाएं देखने को मिलीं। सांसद के ख़िलाफ़ एक्शन लेने की मांग प्रधानमंत्री मोदी से की गई। यही नहीं, साम्प्रदायिक सोच रखने वाले भारतीय कामगारों को नौकरी से निकालने और वापस भेजने की बात होने लगी।
जब बात ज़्यादा बिगड़ने लगी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम समाज के प्रति हमदर्दी वाला बयान जारी किया। उनकी भी ट्रोलिंग की गई, जिसके बारे में हम 26 अप्रैल 2020 के ब्लॉग प्रधानमंत्री मोदी : रमज़ान में ज़्यादा दुआ करें ताकि ईद तक सब हो ठीक में विस्तार से चर्चा कर चुके हैं। आपने अगर नहीं पढ़ा है तो उसे हमारे ब्लॉग पेज पर ज़रूर पढ़ें।
अंततः आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद इस दुष्प्रचार में कमी देखने को मिली। लेकिन अभी भी देश के अलग-अलग स्थानों से मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत की ख़बरें लगातार आ रही हैं।
सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी अकाउंट्स बनाकर मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत-अभियान जारी है। कुछ लोग तो इतने कॉन्फिडेंट हैं कि वे अपनी असली आइडेंटिटी के साथ न सिर्फ़ अपनी नफ़रत का इज़हार कर रहे हैं बल्कि उसे जायज़ ठहराने के लिये विभिन्न तर्क भी दे रहे हैं। सैकड़ों लोगों के ख़िलाफ़ आईटी एक्ट व अन्य धाराओं के तहत मुक़द्दमे दर्ज हुए हैं लेकिन स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती है।
■ इस नफ़रत को कैसे रोका जाये?
हमारा देश इस समय लगभग वैसे ही साम्प्रदायिक तनाव के दौर से गुज़र रहा है जैसा कि आज़ादी से पहले का माहौल था। इसे रोकने के लिये दोनों बड़े समुदायों को मिलकर काम करना होगा। इस सम्बंध में हमारे कुछ सुझाव हैं,
01. सभी लोग अपने-अपने धर्म का पूरी निष्ठा के साथ पालन करें लेकिन कोई दूसरे धर्म पर टीका-टिप्पणी न करे। अगर बतौर मिसाल भी कोई बात कहनी हो तो उस धर्म की प्रमाणित किताबों के हवाले देकर की जाए।
02. अगर कोई व्यक्ति, ग़लत जानकारी के चलते कोई अप्रिय टिप्पणी करे तो उसे सही संदर्भ देकर समझाने की कोशिश की जाए। इसके बाद भी वह दुर्भावना रखते हुए अपनी हरकत जारी रखे तो उसके ख़िलाफ़ उचित क़ानून के तहत कार्रवाई की जाए।
03. जिस व्यक्ति के मन में, धर्म विशेष के प्रति कोई ग़लत धारणा है, उससे रूबरू मिलकर या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके स्वस्थ चर्चा की जाए ताकि उसकी ग़लतफ़हमी दूर हो। यह काम वही व्यक्ति करे जिसको अपने धर्म के बारे में पर्याप्त जानकारी हो और उसे अच्छे ढंग से बात करना भी आता हो।
04. जिस समुदाय के ख़िलाफ़ ग़लत धारणा फैलाई जा रही है, उस समाज के लोग अपने-आप को इतना बेहतर बना ले कि ग़लत धारणा फैलाने वाले लोग, ख़ुद ही ग़लत साबित हो जाएं।
05. जज़्बात में बह जाने वाले लोगों के बजाय समझ-बूझ रखने वाले लोगों के साथ मिलकर काम करें। दुर्भावना रखने वाले लोगों को हाशिये पर डाला जाए, चाहे वो अपने ही समाज का क्यों न हो।
डॉ. वसीम बरेलवी ने बहुत ख़ूब कहा है,
चलो हम ही पहल कर दें कि हमसे बदगुमां क्यूँ हो?
कोई रिश्ता ज़रा-सी ज़िद की ख़ातिर रायगां नहीं होता।
आओ ये मुहब्बत है, इसे मिलके निबाहें,
एक दिल में समा जाए ये वो राज़ नहीं है।
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