शास्त्री और मोदी जी : एक तुलना
यह आर्टिकल पीयूष तिवारी की फेसबुक वॉल से आदर्श मुस्लिम के पेज पर आया है। लेखक ने काफ़ी रोचक जानकारियां देने की कोशिश की है, आप भी ग़ौर करें। (चीफ़ एडिटर)
अब जब गृहमंत्री अमित शाह ने स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री और नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की तुलना कर ही दी तो आईए कुछ तुलना और हो जाए।
तुलना नंबर -1
शास्त्री जी के 1964 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उनको सरकारी आवास के साथ ही इंपाला शेवरले कार मिली थी। जिसका उपयोग वह बिल्कुल ना के बराबर ही करते थे। वह गाड़ी किसी राजकीय अथवा विशिष्ट अतिथि के आने पर ही निकाली जाती थी।
एक बार उनके पुत्र सुनील शास्त्री किसी निजी काम के लिए इंपाला कार ले गए और वापस लाकर चुपचाप खड़ी कर दी।
शास्त्री जी को जब पता चला तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाकर पूछा कि कितने किलोमीटर गाड़ी चलाई गई ? और जब ड्राइवर ने बताया कि चौदह किलोमीटर, तो उन्होंने निर्देश दिया कि लिख दो, चौदह किलोमीटर प्राइवेट यूज। शास्त्री जी यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाकर निर्देश दिया कि उनके निजी सचिव से कह कर वह सात पैसे प्रति किलोमीटर की दर से सरकारी कोष में पैसे जमा कर दें।
मोदी जी , अपने शौक पूरा करने के लिए ₹6880 करोड़ के जनता के पैसे से शानदार लक्जरियस 2 बोईंग विमान खरीद चुके हैं।
तुलना नंबर-2
जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और बम्बई जा रहे थे। रेलमंत्री होने के नाते उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्री जी बोले, डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा, जी, इसमें कूलर लग गया है।
शास्त्री जी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, कूलर लग गया है?… बिना मुझे बताए? आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गरमी नहीं लगती होगी?
शास्त्री जी ने कहा, कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए।
मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी। आज भी फर्स्ट क्लास के उस डिब्बे में जहां कूलर लगा था, लकड़ी जड़ी है।
1956 में महबूबनगर के अरियालपुर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी। इस पर शास्त्री जी ने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
मोदी जी के शासन में कितनी जाने गयीं? इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, गुजरात से लेकर दिल्ली तक लाशों का अंबार लगा हुआ है पर यह शख्स अपने कुर्ते पर एक शिकन आने नहीं देता।
तुलना नंबर-3
आज़ादी से पहले की बात है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपतराय ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना था।
आर्थिक सहायता पाने वालों में लाल बहादुर शास्त्री भी थे। उनको घर का खर्चा चलाने के लिए सोसाइटी की तरफ से 50 रुपए हर महीने दिए जाते थे।
एक बार उन्होंने जेल से अपनी पत्नी ललिता को पत्र लिखकर पूछा कि क्या उन्हें ये 50 रुपए समय से मिल रहे हैं और क्या ये घर का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त हैं?
ललिता शास्त्री ने जवाब दिया कि- ये राशि उनके लिए काफी है। वो तो सिर्फ 40 रुपये ख़र्च कर रही हैं और हर महीने 10 रुपये बचा रही हैं।
लाल बहादुर शास्त्री ने तुरंत सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि उनके परिवार का गुज़ारा 40 रुपये में हो जा रहा है, इसलिए उनकी आर्थिक सहायता घटाकर 40 रुपए कर दी जाए और बाकी के 10 रुपए किसी और जरूरतमंद को दे दिए जाएँ।
मोदी जी के खर्च की तुलना कर लीजिए? एक अनुमान के अनुसार केवल उनके शरीर पर कपड़े , घड़ी , पेन, चश्मे और जूते की लागत ₹10 लाख से अधिक होगी।
तुलना नंबर-4
शास्त्री जी जब रेलमंत्री थे उस वक़्त उन्होंने अपनी माँ को नहीं बताया था कि वो रेलमंत्री हैं, बल्कि ये बताया कि वे रेलवे में नौकर हैं। इसी दौरान मुगलसराय में एक रेलवे का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें शास्त्री जी को ढूंढते-ढूंढते उनकी मां पहुंच गईं।
उनकी माँ ने वहाँ मौजूद लोगों से कहा कि उनका बेटा भी रेलवे में नौकरी करता है, लोगों ने नाम पूछा , माँ ने कहा "लाल बहादुर शास्त्री"। लोग हैरान रह गये कि शास्त्री जी की माँ को यह ही नहीं पता कि उनका बेटा रेलवे में नौकरी नहीं करता बल्कि रेलमंत्री है।
मोदी जी, प्रधानमंत्री के रुतबे के साथ हर साल कैमरों के साथ माँ हीराबेन से मिलने पहुचते हैं और पूरे देश की मीडिया उनका यह कार्यक्रम लाईव दिखाती है।
तुलना नंबर-5
एक बार शास्त्री जी कपड़े की एक दुकान में साड़ियां खरीदने गए। दुकान का मालिक शास्त्री जी को देख कर बहुत खुश हो गया। उसने उनके आने को अपना सौभाग्य माना और उनका स्वागत-सत्कार किया। शास्त्री जी ने उससे कहा कि वे जल्दी में हैं और उन्हें चार-पांच साड़ियां चाहिए।
दुकान का मैनेजर शास्त्री जी को एक से बढ़कर एक साड़ियां दिखाने लगा। सभी साड़ियां काफी कीमती थीं। शास्त्री जी बोले- भाई, मुझे इतनी महंगी साड़ियां नहीं चाहिए। कम कीमत वाली दिखाओ।
इस पर मैनेजर ने कहा- सर… आप इन्हें अपना ही समझिए, दाम की तो कोई बात ही नहीं है। यह तो हम सबका सौभाग्य है कि आप पधारे।
शास्त्री जी उसका मतलब समझ गए। उन्होंने कहा- मैं तो दाम देकर ही लूंगा। मैं जो तुम से कह रहा हूं उस पर ध्यान दो और मुझे कम कीमत की साड़ियां ही दिखाओ और उनकी कीमत बताते जाओ।
तब मैनेजर ने शास्त्री जी को थोड़ी सस्ती साड़ियां दिखानी शुरू कीं। शास्त्री जी ने कहा- ये भी मेरे लिए महंगी ही हैं। और कम कीमत की दिखाओ।
मैनेजर को एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच हो रहा था। शास्त्री जी इसे भांप गए। उन्होंने कहा- दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ियां हों, वो दिखाओ। मुझे वही चाहिए।
आखिरकार मैनेजर ने उनके मनमुताबिक साड़ियां निकालीं। शास्त्री जी ने उनमें से कुछ चुन लीं और उनकी कीमत अदा कर चले गए।
मोदी जी के ₹10 लखिया सूट के बारे में आपको पता ही होगा ?
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