शादी लड़के से या उसकी दुनियावी डिग्री से?
मुस्लिम समाज में बहुत सारी लड़कियां अपनी शादी की उम्र पार कर चुकी हैं। मेट्रीमोनियल ग्रुप्स पर 30-40 साल तक की बिनब्याही (Un-Married) लड़कियों के बायोडाटा मौजूद हैं। इनमें से ज़्यादातर उच्च-शिक्षित (Highly Educated) हैं। उनके इश्तिहार में भी लिखा होता है कि फलाँ शैक्षणिक योग्यता (Educational Qualification) वाला रिश्ता दरकार है। परफेक्ट मैच की तलाश में उन लड़कियों की उम्र बढ़ती जा रही है।
लड़की किसके साथ ज़िंदगी गुज़ारेगी मर्द के साथ या अंग्रेज़ी तालीम वाली डिग्री के साथ? अगर अंग्रेज़ी डिग्रीधारी मर्द या उसका परिवार बद-अख़लाक़ हुआ तो फिर क्या होगा? सोचने की बात है, अगर कोई सोचे तो।
पढ़ी-लिखी लड़कियों के समय पर रिश्ते न होने की एक वजह यह भी है कि लड़के की थोड़ी-सी भी क्वालिफिकेशन कम हो तो इंकार कर दिया जाता है। लोगों की यह सोच बनी हुई है कि एजुकेशन में बराबरी होगी तो ही ज़िंदगी आसान और खुशहाल बनती है। जबकि ऐसी सैकड़ों मिसालें मौजूद हैं कि मियाँ-बीवी की ऊँची तालीम भी रिश्ता जोड़कर रखने में मददगार न हो सकी।
एक वक़्त था जब लड़की की पढ़ाई को लेकर लड़के इगो का शिकार हो जाते थे। आज के दौर में कम पढ़ा-लिखा मर्द ख़ुद से ज़्यादा पढ़ी-लिखी दुल्हन के साथ आसानी से एडजस्ट कर लेता है लेकिन ज़्यादा पढ़ी-लिखी लड़की या उसके घरवाले कम एजुकेशन वाले लड़के के साथ रिश्ते पर रज़ामंद नहीं होते हैं। नतीजा वही होता है जिसका ज़िक्र इस आर्टिकल के शुरू में किया जा चुका है।
याद रखियेगा, मॉडर्न एजुकेशन एक मायाजाल है। हज़ारों लाखों रूपये फीस के रूप में ख़र्च करने के बाद, डिग्री मिलने की तो गारंटी होती है लेकिन उस डिग्री के ज़रिए सम्मानजनक आमदनी भी मिलेगी, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। मॉडर्न एजुकेशन के बावजूद लोगों में इंसानियत का जज़्बा धीरे-धीरे ख़त्म होता जा रहा है, उसकी वजह यह है कि इस आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था में अच्छे अख़लाक़ की ट्रेनिंग का कोई इंतज़ाम नहीं है।
बेहतर यही है कि "अँग्रेज़ी तालीम की बराबरी" की होड़ करने के बजाय "इस्लामी अख़लाक़ की बराबरी" को तरजीह (प्राथमिकता) दी जाए। अच्छे अख़लाक़ वाला कोई लड़का नज़र में आ जाए तो उसकी कमतर तालीम (Lower Education) को इश्यू बनाकर रिश्ते से इंकार न किया जाए। इसी में समाज की भलाई है।
रिश्ता तलाशते वक़्त यह भी देखें कि लड़का हुनरमंद है या नहीं। उच्च-शिक्षित बेरोज़गार लड़के से बेहतर वो आदमी है जो किसी भी काम को छोटा नहीं समझता। जो आदमी कमाकर अपनी बीवी और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सकता हो वो ज़्यादा अच्छा है।
यह आर्टिकल, अच्छे संस्कारों पर आधारित समाज (Good Values Based Society) के निर्माण के लिये लोगों की सोच विकसित करने के उद्देश्य से लिखा गया है। अगर आप इससे सहमत हों तो इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें ताकि हमारे समाज की लड़कियों की सही उम्र में शादी हो सके।
सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
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