सय्यिदिना अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) जिन्होंने बचपन में इस्लाम क़ुबूल किया
अल्लाह के रसूल, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जब अपनी नुबुव्वत का ऐलान किया तो शुरूआत में सिर्फ़ तीन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया। औरतों में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पाक बीवी सय्यिदा ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा), मर्दों में सय्यिदिना अबूबक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) और बच्चों में सय्यिदिना अली (रज़ियल्लाहु अन्हु)।
ऐलाने-नुबुव्वत के लिये अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने ख़ानदान को जमा किया, उन्हें अल्लाह के दीन की दावत दी। मगर सबने इन्कार कर दिया। उस बड़े मजमे में सय्यिदिना अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) उठे और उन्होंने हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नुबुव्वत का इक़रार किया। उन्होंने कहा, भाईजान! भले ही मेरी उम्र काफी छोटी है, मुझमें ताक़त कम है, लेकिन मैं आप पर ईमान लाया और अपनी आख़िरी सांस तक आपके साथ खड़ा रहूंगा।
उस वक़्त सय्यिदिना अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) की उम्र महज़ 10 साल की थी। कुछ रिवायतों में 8 साल का भी ज़िक्र है। अल्लाहु अक्बर! इतनी छोटी उम्र में इतनी बेबाकी?
हज़रत अली के चंद मशहूर क़ौल
◆ तुम्हारा एक रब है फिर भी तुम उसे याद नहीं करते, लेकिन उस के कितने बन्दे हैं फिर भी वह तुम्हे नहीं भूलता।
◆ खालिक से मांगना शुजाअत है। अगर वो दे दे तो रहमत है और न दे तो उसकी हिकमत है। मखलूक से मांगना जिल्लत है, अगर दे दे तो एहसान और ना दे तो शर्मिंदगी।
◆ बात तमीज़ से और ऐतराज़ दलील से करो क्योंकि ज़बान तो हैवानों में भी होती है, मगर वह इल्म और सलीक़े से महरूम होते हैं।
◆ सब्र एक ऐसी सवारी है, जो सवार को कभी गिरने नहीं देती।
◆ दौलत मिलने पर लोग बदलते नहीं, बल्कि बेनकाब हो जाते हैं।
◆ रिश्तों के बारे में उनका यह क़ौल अपने अंदर बहुत गहरा मतलब समाए हुए है। रिश्ते खून के नहीं एहसास के होते हैं। अगर एहसास हो तो अजनबी भी अपने हो जाते हैं। अगर एहसास नहीं हो तो अपने भी अजनबी बन जाते हैं।
◆ एक मौक़े पर उन्होंने कहा, जब भी रब से दुआ मांगो, तो अच्छा नसीब मांगो, क्योंकि मैंने ज़िंदगी में बड़े-बड़े अक्लमंदों को अच्छे नसीब वालों के सामने झुकते देखा है।
◆ इंसान की पहचान कैसे की जाए, इसके बारे में उन्होंने कहा था, इंसान का किरदार उसकी ज़ुबान के नीचे छुपा होता है। अगर किसी इंसान की पहचान करनी हो तो उसे गुस्से की हालत में देखो।
◆ भरोसे की मिसाल देते हुए उन्होंने कहा, अगर तुम ज़िंदगी में किसी को धोखा देने में कामयाब हो गये तो यह मत समझना कि वो शख़्स कितना बेवकूफ था, बल्कि ये समझना कि उसको तुम पर कितना ऐतबार (भरोसा) था?
आज 21 रमज़ान को सय्यिदिना अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) की यौमे-शहादत पर उनकी सीरत को पढ़ने व समझने का अज़्म करने की ज़रूरत है।
वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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