साम्प्रदायिकता के क्रांतिकारी साइबर योद्धा

वो 11 साल से इंजीनियरिंग पास नहीं कर पा रहा है, हिन्दू-मुस्लिम करने में ज़िन्दगी झोंक रहा है। क्या उसे नहीं पता है कि साम्प्रदायिकता का अंजाम क्या होता है? आई.ए.एस. अधिकारी प्रियंका शुक्ला ने एक फेसबुकिये की कारस्तानी की जानकारी देते हुए कहा।

निशा जिंदल उर्फ़ रवि की गिरफ्तारी के बाद, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की आई.ए.एस. अधिकारी प्रियंका शुक्ला ने अपने ट्वीट में लिखा, साम्प्रदायिक वैमनस्यता भड़काने के आरोप में जब रायपुर पुलिस, एफ़.बी. (Facebook) यूज़र 'निशा जिंदल' को गिरफ़्तार करने पहुँची तो पता चला कि 11 साल से इंजीनियरिंग पास नहीं कर पा रहा 'रवि' ही वास्तव में 'निशा 'है। 'निशा' के 10,000 फॉलोअर्स को सच बताने के लिए पुलिस ने रवि से ही उसकी सच्चाई पोस्ट कराई।

ये हैं भारत के साइबर क्रांतिकारी, सम्मानजनक शब्दों में जिन्हें कुछ राजनीतिक पार्टियों के नेताओं द्वारा आईटी सेल के साइबर योद्धा भी कहा जाता है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत में सूचना क्रान्ति का दुरुपयोग सबसे ज़्यादा हो रहा है। उसकी वजह है, हमारे देश के नेताओं द्वारा हिंदू-मुस्लिम के नाम पर लोगों के दिलो-दिमाग़ में भरा गया ज़हर।

हालत यह कि राजनीतिक पार्टियों के आई.टी. सेल में बहुत सारे गालीबाज़ मौजूद हैं। कभी उन्होंने सोचा कि उनका परिवार उनके बारे में क्या सोचता होगा? क्या उनके माँ-बाप लोगों से यह कह सकते हैं कि उनका बेटा या बेटी फेसबुक/ट्विटर पर गाली देने का बिज़नेस करते हैं?

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आईएएस अधिकारी, प्रियंका शुक्ला के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा, कोई फ्रॉड फैलने नहीं दिया जाएगा। जो कोई ग़लतफ़हमी फैलाने की इच्छा रखता है, हमें उसे बेनक़ाब करना होगा। गुड जॉब, रायपुर पुलिस।

मशहूर कवि डॉ. कुमार विश्वास ने भी प्रियंका शुक्ला के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा, निशा और निशाचर में भेद जगज्ञापित करने के लिये रायपुर पुलिस को बधाई।

डॉ. कुमार विश्वास के ट्वीट के जवाब देते हुए प्रिंयका शुक्ला ने लिखा,
सारी फ़ितरत तो नकाबों में छिपा रक्खी थी,
सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रक्खी थी।

ये पंक्तियाँ @rahatindori जी ने शायद इन ही जैसों के लिए लिखी थीं।

बहरहाल, छत्तीसगढ़ पुलिस की यह कार्रवाई और उस पर राज्य के मुख्यमंत्री की सराहना राहत के झौंके की तरह है। देश में न जाने कितने नक़ली फेसबुकिये अभी भी नफ़रत फैलाने के काम में सक्रिय हैं। इसके लिये फेसबुक की नीतियां भी कम दोषी नहीं हैं। एक तरफ़ सबूतों के साथ लिखने वाले असली यूज़र्स के पेज को कम्युनिटी स्टैंडर्ड के ख़िलाफ़ बताकर फेसबुक पर बैन किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ नक़ली यूज़र्स उसके प्लेटफार्म का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं।

निशा जिंदल के फेसबुक अकाउंट की अकाल मौत पर टिप्पणी करते हुए डॉ. प्रियंका शुक्ला ने अपने ही ट्वीट पर कमेंट लिखा, निशा रूपी रवि इससे कम डिज़र्व भी नहीं करते थे। दो मिनट का मौन निशा जिंदल के सभी 10,003 फॉलोवर्स के लिये।

क्या भारत के युवा यही डिज़र्व करते हैं? क्या आई.टी. सेल वाले या रवि जैसे लड़के सोचते होंगे कि अपने ही देश के एक धर्म-विशेष के लोगों को गाली देना, प्रताड़ित करना राष्ट्रवाद है?

जो ज़हर लोगों के ज़हनों में भरा गया है उसके चलते साम्प्रदायिक व्यक्ति यह समझता है कि वह किसी धर्म, नस्ल, जाति के व्यक्ति या समुदाय का नुक़सान कर रहा है। लेकिन शायद वो नहीं जानता कि साम्प्रदायिकता उस समाज की बर्बादी की गारंटी है जो उस पर अमल कर रहा है।

जो लोग साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलाकर, हिंदू समाज के युवाओं को मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाला साइबर युद्ध लड़ने के लिये उकसा रहे हैं वे असल में हिन्दुओं के सबसे बड़े दुश्मन हैं। जिस पीढ़ी को इस नफ़रत की आग में झोंका गया वो रचनात्मक काम करके हिंदू समाज का गौरव भी बन सकती थी। यह बात हिंदू समाज के समझदार तबके को, अपने इन साइबर योद्धाओं को समझानी होगी और मुस्लिम समाज को भी इसमें सहयोग करना चाहिये।

यह ब्लॉग हमने इसलिये लिखा है कि मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबक़ा यह मानता है कि फूट डालो और राज करो की कुत्सित नीति के तहत इन लोगों को टार्गेटेड मिसाइल की तरह मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगाया गया है। ज़्यादातर मुसलमान यह मानते हैं कि देश के हिंदू हमारे भाई हैं और हमारे भाई के बच्चे ग़लत राह पर चलें तो हमें भी फ़िक्रमंद होना चाहिये।

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