संबित पात्रा का ट्वीट, पुलिज़्तर अवार्ड और संवेदना
क्या किसी मार्मिक घटना पर प्रतिक्रिया देते समय संवेदनशील नहीं होना चाहिये? क्या हर मामले को सियासी फ़ायदे की नज़र से तूल देना सही है?
कश्मीर में आतंकवादियों और सशस्त्र बलों के बीच चल रही गोलीबारी में एक निर्दोष नागरिक की गोली लगने से मौत हो गई। वो अपने 3 बरस के नाती के साथ दूध लेने निकला था। नाना की लाश पर बैठकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे मासूम को क्या मालूम कि उसके नाना की मौत हो चुकी है।
जिसने भी इस तस्वीर को देखा, उसकी आंखें नम हो गईं। लेकिन सबके दिल में संवेदना हो ज़रूरी नहीं है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा के ट्वीट को देखकर लगा कि नफ़रत जो न करा दे, वही कम है। इस फ़ोटो पर संबित पात्रा ने कैप्शन लिखा, "पुलित्ज़र लवर्स??"
इस ट्वीट के पीछे छुपी भावना को समझने के लिये पहले यह जान लें कि पुलित्ज़र अवार्ड क्या है?
हंगरी मूल के जोसेफ़ पुलित्ज़र एक अख़बार के प्रकाशक थे। उन्होंने अपनी वसीयत में 2 लाख 17 हज़ार डॉलर्स अमेरिका की प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी को देने की बात लिखी थी। उनकी इच्छा थी कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी इस रक़म को पत्रकारिता कोर्स करवाने और हर साल पत्रकारिता सम्मान देने के लिये इस्तेमाल करे। उन्हीं की याद में 6 जून 1917 से लेकर आज तक, हर साल पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को पुलित्ज़र अवार्ड दिया जाता है।
जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो जर्नलिस्टों को इस साल पुलित्ज़र अवार्ड दिया गया। संबित पात्रा के ट्वीट में शायद यह तंज़ छुपा हुआ था कि क्या ये फोटो अगले साल के पुलित्ज़र अवार्ड का दावेदार बनेगा?
हमारा मानना है कि डॉ. संबित पात्रा को एक नकाबपोश को पुलिस की गाड़ी पर पत्थर मारने वाले फ़ोटो को मिले पुलित्ज़र अवार्ड पर अपनी नाराज़गी जताने के लिये इस मानवीय संवेदना के हक़दार फ़ोटो पर ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिये थी।
जब कुछ लोगों ने इस पर नाराज़गी जताई और संबित पात्रा पर लाइन क्रॉस करने का इल्ज़ाम लगाया तो उन्होंने बजाय खेद जताने के उन लोगों पर आतंकवादी कार्रवाई के प्रति नरम रवैया अपनाने का इल्ज़ाम लगाना शुरू कर दिया।
देश में साम्प्रदायिक नफ़रत का ज़हर गहराई तक घुल चुका है। लोगों के दिलो-दिमाग़ से इसे साफ़ करने के लिये एक अभियान चलाने की ज़रूरत है।
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