समस्या की जड़

यह लघुकथा कनीज़ फ़ातिमा साहिबा ने सेंड की है। यह छोटी-सी कहानी हमें ज़िंदगी मे पेश आने वाली समस्याओं के बारे में एक बहुत बड़ी नसीहत देती है। (बिलाल ख़िलजी डेस्क एडिटर)
एक राजा ने बहुत ही सुंदर महल बनावाया। उस महल के मुख्य द्वार पर एक गणित का सूत्र लिखवाया और यह घोषणा की कि इस सूत्र से यह द्वार खुल जाएगा और जो भी इस ''सूत्र'' को ''हल'' करके ''द्वार'' को खोल देगा मैं उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दूंगा।
राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और सूत्र देखकर लौट गये, किसी को कुछ समझ नहीं आया।
आख़री दिन आ चुका था। उस दिन तीन लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देंगे। उसमें से दो व्यक्ति दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ थे। वे अपने साथ बहुत सी पुरानी गणित के सूत्रों की पुस्तकों सहित आये। लेकिन एक व्यक्ति जो साधक की तरह नजर आ रहा था, एकदम सीधा-साधा इंसान, वो कुछ भी साथ नहीं लाया था। उसने कहा मैं यहां बैठा हूँ पहले इन्हें मौक़ा दिया जाए। दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए लेकिन द्वार नहीं खोल पाये और अपनी हार मान ली।
अंत में उस साधक को बुलाया गया और कहा कि आपका सूत्र हल करिये समय शुरू हो चुका है। साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के साथ 'द्वार' की ओर गया।
साधक ने धीरे से द्वार को धकेला और यह क्या? द्वार खुल गया। राजा ने साधक से पूछा, आपने ऐसा क्या किया? साधक ने बताया, जब मैं 'ध्यान' में बैठा तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज़ आई कि पहले ये जाँच तो कर ले कि सूत्र है भी या नहीं? उसके बाद उसे हल करने के बारे में सोचना और मैंने वही किया।
राजा को अपना उत्तराधिकारी मिल गया और राज्य को समझदार नया राजा।
इस कहानी का सार यह है कि कई बार जिंदगी में कोई ''समस्या'' होती ही नहीं है लेकिन हम ''विचारों'' में उसे बड़ा बना लेते हैं।
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