कोरोना इफेक्ट्स-05 : समाज व्यवस्था पर असर

कोरोना महामारी के चलते लागू हुए देशव्यापी लॉक डाउन के दौरान दो तस्वीरें देखने को मिलीं। एक सुखद है और दूसरी दुखद। आज के ब्लॉग में हम इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।

24 मार्च 2020 की रात 8 बजे, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात 12 बजे से लागू होने वाले राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन की घोषणा की तो जैसे सब-कुछ ठहर-सा गया। एक अजीब डर का माहौल हर जगह पसर गया।

कई ग़रीब परिवार, जिनकी रोज़ी-रोटी दिहाड़ी मज़दूरी पर चलती है, उनके सामने गुज़र-बसर का संकट पैदा हुआ। कई ऐसे परिवार जो सीमित आमदनी वाले हैं, उनका हाल भी कुछ ऐसा ही था।

■ सुखद (अच्छी) तस्वीरें

लेकिन यहाँ एक अच्छी तस्वीर सामने आई। समाजसेवा का जज़्बा रखनेवाले कई लोगों ने आगे बढ़कर इंसानी हमदर्दी का परिचय दिया। कुछ लोगों ने आर्थिक मदद दी, कुछ लोगों ने उस मदद का इस्तेमाल करके ज़रूरतमंद परिवारों तक राशन का सामान पहुंचाया। कई लोगों ने इन दोनों कामों में हिस्सा लिया। इस नेक काम में सामाजिक संस्थाओं ने भी बेहतरीन रोल निभाया। सबसे अच्छी बात यह रही कि मदद करनेवाले लोगों ने न किसी की जाति देखी और न किसी का धर्म देखा। सेवाभावी लोगों के ज़रिए अभी भी यह काम चल रहा है।

अल्लाह तआला इस बात को बहुत पसंद करता है कि भूखों को खाना खिलाया जाये, ज़रूरतमंद लोगों की मदद की जाये। जिन लोगों ने अल्लाह की रज़ा की ख़ातिर ये काम किया और अब तक कर रहे हैं, वो लोग वाक़ई बहुत अच्छे लोग हैं। इन लोगों को इस नेकी का अल्लाह तआला निहायत अच्छा बदला देगा, इस दुनिया में भी और उस दुनिया (आख़िरत) में भी।

लॉक डाउन के दौरान, साम्प्रदायिक सद्भाव की एक और बेहतरीन तस्वीर नज़र आई। एक हिंदू व्यक्ति की मौत पर लॉक डाउन के चलते उसके घरवाले नहीं पहुंच सके तो मोहल्ले में रहनेवाले मुसलमानों ने उसकी अर्थी को कांधा दिया और हिंदू रीति से उसका अंतिम संस्कार किया। देश के कई इलाक़ों से हिंदुओं द्वारा मुसलमानों की मदद की जाने की ख़बरें आईं।

लॉक डाउन के कारण छात्रों से लेकर कामगार तक अपने घरों से दूर फंसे हुये हैं। ऐसा ही एक मुस्लिम युवक असम के माजुली में भी है। रमज़ान में ये मुस्लिम युवक भी रोजा रख रहा है। सबसे खूबसूरत बात ये है कि इस युवक के लिये इफ्तारी का इंतजाम एक हिंदू परिवार कर रहा है। ये परिवार बाकायदा इस युवक के साथ बैठकर इफ्तार में शामिल भी होता है। ऑल इंडिया रेडियो न्यूज़ ने ये तस्वीर जारी की है जिसमें एक परिवार की महिला और पुरुष के बीच युवक टोपी लगाये बैठा है। सामने खाने-पीने की चीजें रखी हैं और तीनों ही लोग साथ में चाय पी रहे हैं। यह तस्वीर भी सुकून देती है।

■ दुखद (बुरी) तस्वीरें

हालांकि इस दौरान दिखावा करनेवाले लोगों की हरकतें भी सामने आईं। उन्होंने मदद के बहाने अपनी वाहवाही कराने की घटिया हरकतें की। राशन किट बाँटकर मजबूर लोगों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालकर उन्हें रुस्वा किया। इन हरकतों की जितनी मज़म्मत (निंदा) की जाए कम है। ऐसे लोगों की निंदा के लिये हमने एक ई-पोस्टर भी जारी किया, जिसे आप ऊपर देख पा रहे हैं।

एक बुरी तस्वीर यह सामने आई कि एक व्यक्ति ने अपने यहाँ वफ़ादारी के साथ नौकरी कर रही एक महिला को कोरोना संदिग्ध समझकर नौकरी से निकाल दिया। जब उसके कोरोना नेगेटिव होने की रिपोर्ट आई तो उस व्यक्ति के चाहने के बावजूद उस ख़ुद्दार महिला ने नौकरी से इंकार कर दिया।

एक और बुरी तस्वीर यह भी देखने को मिली कि कुछ जगहों पर नालायक बेटों ने लॉक डाउन के दौरान मरे अपने माँ या बाप का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया जबकि उनकी मौत कोरोना की वजह से नहीं हुई थी।

जब ऐसी ख़बरें देश के अलग-अलग इलाक़ों से आने लगी तो सरकार ने इसके ख़िलाफ़ ई-पोस्टर्स जारी किये। सरकार की ओर से मोबाइल कॉलर ट्यून के ज़रिए अपील की गई कि बीमार से घृणा न करें।

सारांश यह है कि कोविड-19 संक्रमण के दौरान एक ओर मदद और सद्भावना की मिसालें देखने को मिलीं, वहीं दूसरी ओर कोरोना से जंग लड़ रहे डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ़ व अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के ख़िलाफ़ संक्रमण फैलने के डर से भेदभाव भी बरता गया। कई ठीक हो चुके कोरोना मरीज़ों के साथ भी अछूतों जैसा बर्ताव किया गया।

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