राहुल गाँधी ने लॉकडाउन पर सरकार को घेरा

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लॉकडाउन पर केंद्र सरकार को घेरने का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए चार देशों के साथ भारत की तुलना की है। राहुल ने एक ग्राफ ट्वीट करके कहा है कि भारत में लॉकडाउन पूरी तरह फेल हो गया है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चार देशों के साथ भारत की तुलना करते हुए साबित करने की कोशिश की है कि लॉकडाउन से देश में कोरोना संकट कम नहीं किया जा सका है। उन्होंने स्पेन, जर्मनी, इटली और यूके के साथ भारत में लॉकडाउन की घोषणा और उसके बाद की स्थिति का ग्राफ ट्वीट किया। उन्होंने ट्वीट के साथ लिखा, असफल लॉकडाउन ऐसा दिखता है।

इस ग्राफ के मुताबिक, स्पेन में 14 मार्च 2020 को लॉकडाउन लागू किया गया और 28 अप्रैल 2020 को लॉकडाउन उठा लिया गया। इस बीच वहां कोरोना का ग्राफ पीक पर पहुंचकर फिर नीचे आ चुका था।

इसी तरह, जर्मनी ने 17 मार्च 2020 को लॉकडाउन घोषित किया और 22 अप्रैल 2020 को हटा लिया। तब तक वहां कोरोना का ग्राफ ऊपर चढ़कर नीचे आ गया था।

इटली में भी कमोबेश यही स्थिति रही। वहां 8 मार्च 2020 को लॉकडाउन लागू किया गया और 16 अप्रैल 2020 को हटा लिया गया। तब तक वहां कोविड-19 मरीजों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

वहीं, यूके ने अपने यहां 22 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगाया और 12 मई 2020 को हटा लिया। तब से वहां कोरोना पॉजिटिव केस में लगातार गिरावट आ रही है।

■ स्पेन, जर्मनी, इटली और यूके से इतर भारत की स्थिति

हालांकि, भारत का ग्राफ बताता है कि यहां 25 मार्च 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन लागू हुआ और 1 जून 2020 से इसे हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। हालांकि, ऊपर चारों देशों से इतर भारत में लॉकडाउन हटाने का फैसला कोरोना केस बढ़ते रहने के बावजूद किया गया है। जहां स्पेन, जर्मनी, इटली और यूके में लॉकडाउन लागू होने और हटने के बीच कोरोना का पीक दिख रहा है, लेकिन बाद में गिरावट दिख रही है, वहीं भारत में लॉकडाउन लागू होने के बाद से लगातार मामले बढ़ते दिख रहे है और इसी बीच हटने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

बहरहाल, राहुल गांधी लॉकडाउन को लेकर केंद्र सरकार पर लगातार हमले कर रहे हैं। वो जब-तब यह साबित करने में जुटे रहते हैं कि लॉकडाउन लागू कर केंद्र सरकार ने देश का भला नहीं किया बल्कि कोरोना संकट के बीच अन्य गंभीर समस्याएं पैदा कर दीं। राहुल गाँधी लॉकडाउन को देश की अर्थव्यवस्था और बड़ी आबादी के रोज़गार के लिहाज से बेहद घातक बताते रहे हैं।

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