क़ुर्बानी क्यों की जाती है?

 

इस ऑडियो आर्टिकल में निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा की गई है। 01. क़ुर्बानी का मक़सद क्या है? 02. क़ुर्बानी का संदेश क्या है? 03. क़ुर्बानी से जुड़ी इकोनॉमिक्स। आप इसे सुन भी सकते हैं और टेक्स्ट के रूप में पढ़ भी सकते हैं।

हर साल ईद-उल-अज़हा के मौक़े पर जानवरों की क़ुर्बानी को लेकर माहौल ख़राब करने की कोशिश की जाती है। मीडिया इस मुद्दे पर स्पेशल प्रोग्राम बनाता है और दिखाता है। सबसे अहम बात तो यह है कि मीडिया को किसी धर्म विशेष से जुड़े मुद्दे पर टॉक शो के लिये अन्य धर्म से जुड़े विद्वानों और नेताओं को नहीं बुलाना चाहिये। इससे साम्प्रदायिक टकराव बढ़ता है।

कुछ लोग बिन मांगी, बेतुकी सलाह देने लगते हैं। मसलन, मिट्टी का बकरा बनाकर उसकी प्रतीकात्मक क़ुर्बानी दे दी जाए या केक पर बकरे की फ़ोटो बनाकर केक काट दिया जाए। जो लोग इस तरह की बेतुकी बातें करते हैं, उन्हें क़ुर्बानी का मक़सद ही मालूम नहीं है।

आज के वीडियो में हम इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे कि मुसलमान क़ुर्बानी क्यों करते हैं?

क़ुर्बानी का मक़सद क्या है?

इस्लाम में क़ुर्बानी का सबसे पहला वाक़या दुनिया के पहले इंसान हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के दो बेटों के मिलता है। यह वाक़या क़ुरआन मजीद में मौजूद है। एक का नाम था हाबील और दूसरे का काबील। किसी मसले पर दोनों ने एक मन्नत मानी और अल्लाह तआला के सामने अपनी-अपनी ओर से क़ुर्बानी पेश की। हाबील की क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली गई और काबील की क़ुर्बानी रद्द कर दी गई।

इस मामले में क़ुर्बानी का मक़सद अल्लाह तआला की रज़ा मालूम करना था कि कौन सही है और कौन ग़लत?

क़ुरआन मजीद में क़ुर्बानी से सम्बंधित दूसरा मशहूर वाक़या हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से मांगी गई क़ुर्बानी का है।

हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह तआला ने अपना ख़लील (दोस्त) कहा है। अल्लाह ने उनको कई तरीक़ों से आज़माया और अनेक नेअमतें भी उनको अता कीं। सभी आजमाइशों और नेअमतों पर विस्तार से जानकारी दी जाए तो यह वीडियो काफ़ी लम्बा हो जाएगा। इसलिये हम सिर्फ़ क़ुर्बानी के मुद्दे पर ही बात करेंगे।

हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की दो बीवियाँ थीं, हज़रत सारा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत हाजरा (अलैहिस्सलाम)। दोनों से कोई औलाद नहीं थी। जब बुढ़ापे की उम्र आ पहुंची तो हज़रत हाजरा (अलैहिस्सलाम) से एक बेटा पैदा हुआ, हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम)।

हर इंसान बेटे की चाहत रखता है। बेटे को बुढ़ापे का सहारा समझता है। हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को एक बार फिर आज़माया गया कि बुढ़ापे में मिली औलाद से ज़्यादा मुहब्बत है या अल्लाह से?

हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) अल्लाह तआला के ज़रिए ली गई आज़माइश में एक बार फिर कामयाब हुए। अल्लाह की तरफ़ से एक ज़बीहा (क़ुर्बानी का जानवर) भेजा गया जिसकी क़ुर्बानी हुई। यहां दो बातें समझने की हैं,

01. अल्लाह तआला को हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की क़ुर्बानी नहीं चाहिये थी बल्कि उसका मक़सद आज़माइश था।

02. अल्लाह तआला की तरफ़ से भेजे गये ज़बीहे की क़ुर्बानी हुई। इसका संदेश यह है कि इंसान अपनी कमाई का एक हिस्सा, जानवर की क़ुर्बानी के रूप में हर साल ख़र्च करे।

अब हम असल सवाल पर वापस लौटते हैं कि जानवर की क़ुर्बानी क्यों की जाती है और उसके संदेश क्या हैं?

क़ुर्बानी का संदेश क्या है?

01. ईद-उल-अज़हा के दिनों में जानवरों की क़ुर्बानी करना अल्लाह का हुक्म है और उसके नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत है। हर मुसलमान पर यह फ़र्ज़ है कि वो अल्लाह के हुक्मों और उसके नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नतों को बिना तर्क-वितर्क किये, बिना Argument किये मान ले।

02. ईद-उल-अज़हा के मौक़े पर जिन जानवरों की क़ुर्बानी की जाती है वे जानवर इस्लाम की नज़र में पूजनीय नहीं हैं।

03. कुछ जानवरों को अल्लाह तआला ने इंसानों की ख़ुराक़ के लिये बनाया है। हर साल बड़ी संख्या में क़ुर्बानी किये जाने के बावजूद उनकी नस्ल ख़त्म नहीं होती। इस बात से अल्लाह की क़ुव्वते-ख़लक़त (रचना-शक्ति) का पता चलता है।

क़ुर्बानी से जुड़ी इकोनॉमिक्स

01. दुनिया भर में हर साल ईद-उल-अज़हा के मौक़े पर करोड़ों जानवरों की क़ुर्बानी की जाती है। यह समय पशुपालन करने वाले लोगों के लिये फेस्टिवल सीज़न होता है। कई लोगों की सालाना गुज़र-बसर का इंतज़ाम इस एक महीने में हो जाता है।

02. ग़रीब-मिस्कीन, मिडिल क्लास लोगों को तोहफ़े में काफ़ी गोश्त मिल जाता है जिससे उनको पौष्टिक आहार मिलता है। उनके शरीर की साल भर की प्रोटीन की ज़रूरत पूरी हो जाती है।

03. ईद-उल-अज़हा के तीन-चार दिनों में बड़ी मात्रा में चमड़े का उत्पादन होता है। इससे जुड़ी इंडस्ट्रीज के लिये भी यह सीज़न टाइम होता है। उन्हें बड़ी मात्रा में कच्चा माल मिल जाता है।

04. क़ुर्बानी के जानवरों से प्राप्त ख़ून व लीद ज़मीन की उर्वरक शक्ति बढ़ाते हैं। आजकल सीवर लाइन में बहाया गया ख़ून व लीद, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में जाते हैं जहां वाटर ट्रीटमेंट के बाद बाक़ी बचा अपशिष्ट खाद के रूप में काम आता है।

अंत में हमारा यही कहना है कि जो लोग शाकाहारी हैं, वे अपने तरीक़े से जियें और मुसलमानों के मज़हबी मामलों में टीका-टिप्पणी करने से बचें। इसी तरह मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है कि वे जानवरों की क़ुर्बानी करने के दौरान कुछ ज़रूरी एहतियातों का पालन करें ताकि अन्य लोगों को तकलीफ़ न हो।

ईद-उल-अज़हा कैसे मनाएं? शीर्षक से एक वीडियो हमारे यूट्यूब चैनल ख़लीज मीडिया Khalee Media पर उपलब्ध है। 3 मिनट के इस वीडियो में अनेक एहतियाती तदबीरों का ज़िक्र है। आप उसे देखें और पसंद आये तो शेयर भी करें।

सलीम ख़िलजी चीफ़ एडिटर आदर्श मुस्लिम

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