पॉलिटिकल लिटमस टेस्ट
इस ब्लॉग का विषय समझने के लिये पहले थोड़ी जानकारी लिटमस टेस्ट के बारे में देना मुनासिब होगा। स्कूल-कॉलेज के साइंस स्टूडेंट्स को कैमिस्ट्री लैब में एक प्रयोग कराया जाता है जिसे लिटमस टेस्ट कहते हैं।
■ नीला लिटमस पेपर किसी लिक्विड में डालने पर अगर लाल हो जाए तो इसका मतलब है कि उसमें तेज़ाब (Acid) है।
■ लाल लिटमस पेपर किसी लिक्विड में डालने पर अगर नीला हो जाए तो इसका मतलब है कि उसमें कास्टिक सोडा जैसा कोई क्षार (Base) है।
■ अगर किसी लिक्विड में डालने पर नीला लिटमस नीला और लाल लिटमस लाल ही रहे तो इसका मतलब है कि वो लिक्विड सामान्य (Neutral) है।
हर देश की सरकारें समय-समय पर पॉलिटिकल लिटमस टेस्ट कराती हैं। इसके ज़रिए पता लगाया जाता है कि कौन सरकार समर्थक है, कौन सरकार विरोधी है और कौन न्यूट्रल है। समय-समय पर, ट्विटर पर चलाए जाने वाले हैशटैग कैम्पेन पॉलिटिकल लिटमस टेस्ट का एक उदाहरण है।
कभी-कभी किसी संगठन-विशेष के प्रति लोगों की हमदर्दी कितनी है, इसकी जाँच के लिये भी कभी-कभी कोई शिगूफा छोड़ा जाता है। एक कहावत है, इंसान अपनी ख़ुशी या ग़म को छुपा नहीं सकता। किसी संगठन या किसी व्यक्ति के प्रति अगर किसी को मुहब्बत या नफ़रत हो तो वो किसी ख़ास परिस्थिति में सामने आ ही जाती है। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां पैदा भी की जाती है।
सूरत (गुजरात) की एक स्थानीय कोर्ट द्वारा 127 लोगों को बरी किये जाने के फ़ैसले को मीडिया में "हाइलाइट" करना भी कोई "लिटमस टेस्ट" तो नहीं? 20 साल बाद लोअर कोर्ट का फ़ैसला आया है। यह सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला नहीं है जिसे फाइनल समझा जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार यह जानकारी लेना चाहती हो कि अभी भी कितने लोग प्रतिबंधित संगठन सिमी के हमदर्द के रूप में आइडेंटिफाई होते हैं? ग़ौरतलब है इन लोगों को जब गिरफ़्तार किया गया तब भी गुजरात व केंद्र में बीजेपी सरकार थी और जब ये फ़ैसला आया है तब भी दोनों जगह बीजेपी की सरकार है।
मुसलमानों की हालत आज खाया-पिया कुछ नहीं और गिलास फोड़ा पाँच रुपया हर्जाना वाली है। कुछ लोग जज़्बातों में बहकर प्रतिक्रिया देने की उतावली में रहते हैं और वे निशाने पर आ जाते हैं।
मुसलमानों का पहला काम अपने घर में सुधार लाना होना चाहिये। दीन की तबलीग़ या समाज-सुधार से जुड़ा कोई इज्तिमा या सम्मेलन करना हो तो क़ानूनी तौर पर इजाज़त लेकर सार्वजनिक रूप से करना चाहिये। ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिये कि किसी को शक करने का मौक़ा मिले।
इसके साथ ही सरकार को भी चाहिये कि न्याय व्यवस्था में ऐसा सुधार करे कि फिर किसी के 20 साल बर्बाद न हों।
सलीम ख़िलजी
(चीफ़ एडिटर आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान
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