पुलिस में शिकायत के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?

न्यूज़ 18 के एंकर अमीश देवगन की ख़्वाजा साहब के ख़िलाफ़ की गई विवादित टिप्पणी के बाद अब लेटेस्ट पोज़िशन क्या है? इस मामले में क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता? आज की इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करेंगे।

ऊपर छपी तस्वीर देखिये और अमीश देवगन की ऊंची पहुंच को महसूस कीजिये। पिछले कुछ महीनों में अमीश देवगन द्वारा न्यूज़ 18 चैनल पर की गई डिबेट्स पर नज़र डालें तो पता चल जाता है कि उनका झुकाव खुल्लमखुल्ला सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की ओर है। देवगन के द्वारा साम्प्रदायिक टिप्पणियां लगातार की जाती रही हैं और आज तक कोई क़ानूनी पकड़ उनकी नहीं हुई। ऐसे में क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि उनकी हालिया टिप्पणी पर भी कोई कार्रवाई होगी?

शायद नहीं! क्योंकि मुसलमानों का ग़ुस्सा पानी की तरह है, उबलता भी जल्दी है और वापस ठंडा भी जल्दी होता है। हमारी इस बात से शायद बहुत से लोग सहमत नहीं होंगे, लेकिन माफ़ कीजियेगा, सच्चाई यही है।

सुप्रीम कोर्ट के एक वकील हैं, डॉ. फ़ारूक़ ख़ान, उनका कहना है कि थाने में दी गई हर शिकायत, एफआईआर में तब्दील नहीं होती और जब तक किसी मामले में विधिवत एफआइआर दर्ज नहीं होती तब तक उस पर कोई जाँच भी नहीं होती।

वो आगे यह भी कहते हैं, सोशल मीडिया के स्वघोषित योद्धा यह समझते हैं कि शिकायत करने भर से काम हो गया। वे ऐसी बातों पर ऐसे जश्न मनाते हैं जैसे शिकायत करके उन्होंने जंग जीत ली। हक़ीक़त यह है कि शिकायत मिलने के बाद पुलिस की मर्ज़ी चलती है, वो चाहे कार्रवाई करे या न करे।

अगर हम पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओं पर नज़र डालें तो हमें यह बात पूरी तरह सही लगती है। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), सय्यिदा आइशा (रज़ियल्लाह अन्हा) और सहाबा-ए-किराम के बारे में नाज़ेबा बातें कीं और आज भी सोशल मीडिया पर उनकी ग़लत हरकतें जारी हैं। लेकिन हमारे सोशल मीडिया क्रांतिवीर, शोशेबाजी से आगे नहीं बढ़ पाते।

इस समस्या का क़ानूनी इलाज क्या है?

01. सिर्फ़ शिकायत दर्ज कराकर चुप न बैठें बल्कि शिकायत के साथ यथोचित सबूत व तथ्य पेश करके विधिवत तरीक़े से एफआईआर दर्ज कराएं।

02. एफआईआर दर्ज होने के बाद लगातार पुलिस पर क़ानूनी दबाव बनाएं ताकि वो जल्दी अनुसंधान पूरा करके आवश्यक कार्रवाई करे। जिन मामलों में गिरफ्तारी ज़रूरी हो, उनमें मुल्ज़िम को गिरफ़्तार करके अदालत के सामने पेश करे।

03. अपनी शिकायत के साथ इतने पुख़्ता सबूत व क़ानूनी तथ्य उपलब्ध कराएं कि पुलिस चालान पेश करते समय केस को कमज़ोर न कर सके।

04. अच्छे वकीलों के ज़रिए अदालत में मामले की दमदार ढंग से पैरवी सुनिश्चित कराएं। ऐसा करने पर ही मुल्ज़िम पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है और सज़ा मिल सकती है।

आम तौर पर हमारा रिकॉर्ड बताता है कि हम क़ौमी मामलों में पूरी शिद्दत के साथ क़ानूनी कार्रवाई नहीं करते हैं, इसलिये किसी मुल्ज़िम को सज़ा नहीं मिलती। इसके विपरीत वो मुल्ज़िम व्यक्ति उस मामले में विक्टिम कार्ड खेलकर अपने समाज में हीरो और धर्मयोद्धा बन जाता है।

यही पिछले कुछ सालों से होता आया है। किसी को सज़ा मिलना तो दूर की बात है, अक्सर मामलों में मुल्ज़िम की गिरफ़्तारी तक नहीं होती। अमीश देवगन मामले में भी ऐसा ही होने की संभावना है क्योंकि जोश-जज़्बात दिखाकर सोशल मीडिया में प्रचार पाने वाले लोग इस मामले की ढंग से पैरवी शायद ही कर पाएंगे।

अगर आए दिन होने वाली इन घटनाओं का प्रभावी इलाज करना है तो ऐसी परिस्थितियों से निबटने के लिये मुस्लिम समाज का देशव्यापी लीगल सेल बनाना ज़रूरी है।

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