ज्ञापन/पुलिस में शिकायत के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?* (आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी : पार्ट-04

ज्ञापन/पुलिस में शिकायत के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?* (आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी : पार्ट-04

जून 2020 में न्यूज़ 18 के एंकर अमीश देवगन की ख़्वाजा साहब के ख़िलाफ़ एक विवादित टिप्पणी की थी। मुसलमानों ने ख़ूब ज्ञापन दिये और पुलिस में कंप्लेंट की। लेकिन कुछ कार्रवाई नहीं हुई। यति नरसिंहानंद मामले में भी ख़ूब ज्ञापन/पुलिस कंप्लेंट्स हो रही है। लेकिन इस मामले में भी कोई कड़ी कार्रवाई होने की संभावना कम ही है। क्यों? जानने के लिये पढ़िये आज का ब्लॉग

मुसलमानों का ग़ुस्सा पानी की तरह है, उबलता भी जल्दी है और वापस ठंडा भी जल्दी होता है। हमारी इस बात से शायद कुछ लोग सहमत नहीं होंगे, लेकिन माफ़ कीजियेगा, बात कड़वी है मगर सच्चाई यही है।

8 अप्रैल 2021 के ब्लॉग, प्रेक्टिकल एप्रोच इख़्तियार करने की ज़रूरत में हमने कुछ जानकारियां देने की कोशिश की थीं। बहुत-से लोगों ने उसे पसंद किया। लेकिन कल दिन भर आप विधायक, अमानतुल्लाह ख़ान का वीडियो वायरल होता रहा। उनकी सलाह मानकर एक बार फिर मुसलमानों ने ज्ञापनबाज़ी में ख़ूब पैसे बर्बाद किये। अब आप कहेंगे भला यह क्या बात हुई? माफ़ कीजियेगा हम जज़्बाती बात करने के आदी नहीं हैं। हम उसी काम की राय देते हैं जो प्रेक्टिकल हो।

इस तहरीर को ग़ौर से पढ़ लीजिये और एक बात अच्छी तरह से गाँठ बांध लीजियेगा कि जब तक प्रॉपर तरीक़े से क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जाती तब तक मुजरिम को कोई सज़ा नहीं होती। अब आप सोचेंगे कि प्रॉपर यानी विधिवत क़ानूनी कार्रवाई कैसे की जाती है? तो आगे पढ़ियेगा।

सुप्रीम कोर्ट के एक वकील हैं, डॉ. फ़ारूक़ ख़ान। उनका कहना है कि थाने में दी गई हर शिकायत, एफआईआर (FIR) में तब्दील नहीं होती और जब तक किसी मामले में विधिवत FIR दर्ज नहीं होती तब तक उस पर कोई जाँच भी नहीं होती।

फ़ारूक़ ख़ान साहब आगे यह भी कहते हैं, सोशल मीडिया के स्वघोषित योद्धा यह समझते हैं कि शिकायत करने भर से काम हो गया। वे ऐसी बातों पर ऐसे जश्न मनाते हैं जैसे शिकायत करके उन्होंने जंग जीत ली। हक़ीक़त यह है कि शिकायत मिलने के बाद पुलिस की मर्ज़ी चलती है, वो चाहे तो कार्रवाई करे और चाहे तो न करे।

अगर हम पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओं पर नज़र डालें तो हमें यह बात पूरी तरह सही लगती है। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने क़ुरआन पाक, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), सय्यिदा आइशा (रज़ियल्लाह अन्हा) और सहाबा-ए-किराम के बारे में नाज़ेबा बातें कीं और आज भी सोशल मीडिया पर उनकी ग़लत हरकतें जारी हैं। लेकिन हमारे सोशल मीडिया के क्रांतिवीर, शोशेबाजी से आगे नहीं बढ़ पाते।

इस समस्या का क़ानूनी इलाज क्या है?

01. पहला काम : प्रॉपर तरीक़े से पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं

पुलिस में शिकायत दर्ज कराते वक़्त, मुल्जिम के आपत्तिजनक भाषण की सीडी, उसका ट्रांसक्रिप्शन (बयान का लिखित रूप) पेश करें। मुल्ज़िम द्वारा अख़बार/फेसबुक/ट्विटर आदि पर दिये गये भड़काऊ बयानों/कमेंट्स के प्रिंट्स भी शिकायत के साथ लगाएं।

02. दूसरा काम : आपके द्वारा दी गई शिकायत या ज्ञापन, विधिवत FIR के रूप में दर्ज हो, यह सुनिश्चित करें

सिर्फ़ शिकायत दर्ज कराकर या ज्ञापन देकर चुप न बैठें बल्कि शिकायत/ज्ञापन के साथ यथोचित सुबूत, गवाह, बयान एवं तथ्य पेश करके विधिवत तरीक़े से FIR दर्ज कराएं।

03. तीसरा काम : एफआईआर दर्ज होने के बाद लगातार पुलिस पर क़ानूनी कार्रवाई करने का दबाव बनाएं ताकि वो जल्दी अनुसंधान पूरा करके आवश्यक कार्रवाई करे। जिन मामलों में गिरफ्तारी ज़रूरी हो, उनमें मुल्ज़िम को गिरफ़्तार करके अदालत के सामने पेश करे।

04. चौथा काम : अपनी शिकायत के साथ इतने पुख़्ता सबूत व क़ानूनी तथ्य उपलब्ध कराएं कि पुलिस चालान पेश करते समय केस को कमज़ोर न कर सके।

05. पाँचवां काम : अगर पुलिस FIR दर्ज न करे तो उस सूरत में किसी अच्छे वकील के ज़रिए कोर्ट में इस्तगासा पेश करें।

06. छठा काम : अदालत में मामले की दमदार ढंग से पैरवी सुनिश्चित कराएं। चाहे आप FIR दर्ज कराएं या कोर्ट में इस्तगासा पेश करें; हर सूरत में मामले की अच्छी पैरवी किया जाना ज़रूरी है। ऐसा करने पर ही मुल्ज़िम पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है और उसे सज़ा मिल सकती है।

आम तौर पर हमारा रिकॉर्ड बताता है कि हम क़ौमी मामलों में पूरी शिद्दत के साथ क़ानूनी कार्रवाई नहीं करते हैं, इसलिये किसी मुल्ज़िम को सज़ा नहीं मिलती। इसके विपरीत वो मुल्ज़िम व्यक्ति उस मामले में विक्टिम कार्ड खेलकर, ख़ुद को पीड़ित बताकर, अपने समाज में हीरो और धर्मयोद्धा बन जाता है। पहले भी यही हुआ और यति नरसिंहानंद भी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहा है। सुबूत के तौर पर इस ब्लॉग के साथ दिये गये ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट देख लीजिये।

पिछले कुछ सालों से होता आया है कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले में किसी को सज़ा मिलना तो दूर की बात है, अक्सर मामलों में मुल्ज़िम की गिरफ़्तारी तक नहीं होती।

अगर आए दिन होने वाली इन घटनाओं का प्रभावी इलाज करना है तो ऐसी परिस्थितियों से निबटने के लिये मुस्लिम समाज का हर राज्य में एक-एक लीगल सेल बनाना ज़रूरी है। क़ानून के जानकार और वकील हज़रात इस बात पर संजीदगी से ग़ौर करें।

इस ब्लॉग में काफ़ी उपयोगी जानकारियाँ देने की कोशिश की गई है।
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सलीम ख़िलजी (एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान।

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