पेट्रोल-डीज़ल महंगा क्यों?
2014 के लोकसभा चुनाव में पेट्रोल-डीज़ल की दरों पर हंगामा करने वाली बीजेपी इनकी दरों में लगातार बढ़ोतरी क्यों किये जा रही है? आइये जानते हैं।
साल 2014, जब अंतरराष्ट्रीय मार्केट में क्रूड ऑयल 107.09 डॉलर प्रति बैरल था। उस समय देश में पेट्रोल 71.41 रुपये और डीज़ल 55.49 रुपये प्रति लीटर था। आज जबकि क्रूड ऑयल के भाव ज़मीन (42.41 डॉलर प्रति बैरल) पर आए हुए हैं तो फिर उसका फ़ायदा जनता को क्यों नहीं मिल रहा है?
कांग्रेस पार्टी ने 2014 और 2020 में क्रूड ऑयल, पेट्रोल, डीज़ल और टेक्सेज़ की तुलना करने वाले पोस्टर्स जारी किये हैं। लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे पर वैसी जनभावना नहीं उभार पाई है जैसी बीजेपी उस समय उभारने में कामयाब रही थी।
अगर क्रूड ऑयल की 2014 और 2020 वाली रेट्स की तुलना की जाए तो आज की तारीख़ में पेट्रोल क़रीब 60 रुपये और डीज़ल क़रीब 45 रुपये लीटर होना चाहिये। लेकिन हुआ यह है कि पेट्रोल व डीज़ल दोनों की दरें 80 रुपये लीटर हो रही हैं।
■ इसकी वजह क्या है?
कुछ दिनों पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि लॉक डाउन के कारण जीएसटी कलेक्शन घटकर 45% रह गया है। अगर सिर्फ़ जीएसटी की बात करें तो सरकार की आमदनी में 55% की कमी हुई है। इसके अलावा इंकम टेक्स, आयात शुल्क, कस्टम ड्यूटी, कॉरपोरेट टेक्स जैसे टेक्सेज़ से होने वाली बड़ी आय में भी भारी गिरावट आई है।
मगर ख़र्च में कोई कमी नहीं हुई है। सांसदों-विधायकों की तनख्वाह, भत्ते, पूर्व सांसदों-विधायकों की पेंशन का मीटर भी चालू है। देश में भले ही लॉक डाउन हो, सरकारी दफ्तरों में न के बराबर कामकाज हो रहा हो, ट्रेनें गिनती मात्र की चल रही हों, लेकिन सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह उतनी ही देनी पड़ रही है।
जब आमदनी अठन्नी और ख़र्च रुपैया हो तो सरकार क्या करे? ज़ाहिर है, ऐसे समय में सरकारें टेक्सेज़ बढ़ाती हैं। देश की अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है। कोरोना का डर जब तक पूरी तरह ख़त्म नहीं हो जाता, जब तक उत्पादन और बिक्री पहले की तरह नहीं हो जाती, तब तक ये हालत सुधरने वाली नहीं है। इसलिये अगर आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीज़ल की दरें और बढ़ जाए तो ताज्जुब की बात नहीं होगी।
डीज़ल की भारी दरों की वजह से एक नुक़सान और देखने को मिलेगा। ट्रांसपोर्ट ख़र्च बढ़ने की वजह महंगाई बढ़ेगी। यातायात महंगा होगा तो लोग सफ़र करने से गुरेज करेंगे। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था के वापस पटरी पर लौटने तक जनता को राहत की उम्मीद नहीं करनी चाहिये।
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