पैराटीचर्स के लिये चार रास्ते
इस पोस्ट के साथ दी गई इमेज को देखिये। यह 26 अक्टूबर 2017 के अख़बार का फ्रंट पेज है। पैराटीचर्स ने तत्कालीन सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी के घर के बाहर प्रदर्शन किया था। उस समय वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी सरकार थी। संविदा शिक्षाकर्मियों ने गांधीगिरी दिखाते हुए 15000 गुलाब के फूल अर्पित किये थे। यह गुलाब राजीव गांधी पाठशाला संविदा शिक्षा कर्मी, मदरसा पैराटीचर्स और प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों के संविदा टीचर्स की ओर से थे।
बीजेपी सरकार ने उन गुलाबों का गुलकंद बना लिया। संविदा शिक्षाकर्मियों ने प्रदेश कांग्रेस सचिव दानिश अबरार (वर्तमान में कांग्रेस विधायक) को भी पत्र लिखा था। कांग्रेस ने इस मुद्दे को अपने घोषणापत्र में शामिल कर लिया। घोषणापत्र के वादों का लोकतांत्रिक भारत में क्या हश्र होता है, यह हम सब जानते हैं। इसके बावजूद संविदा शिक्षाकर्मी कांग्रेस कार्यालयों पर क्या हुआ तेरा वादा, वो क़सम वो इरादा की धुन बजा रहे हैं।
हमने पहले भी उनकी समस्या के निराकरण के बारे में आर्टिकल्स लिखे हैं, शायद उन्हें ग़ौर से पढ़ा नहीं गया, इसलिये हम एक बार फिर इस पोस्ट में चार व्यावहारिक रास्ते सुझा रहे हैं।
01. क़ानूनी रास्ता : संविदा शिक्षाकर्मी कोर्ट में जाएं और वहाँ सेम वर्क, सेम पेमेंट का मुद्दा उठाकर नियमित सरकारी टीचर्स और संविदा शिक्षाकर्मियों की सैलेरी के बीच के भारी-भरकम अंतर की विसंगति को दूर करने की माँग करें। यह रास्ता थोड़ा लम्बा ज़रूर है लेकिन इसमें ठोस परिणाम की पूरी उम्मीद है।
02. राजनीतिक रास्ता : संविदा शिक्षाकर्मी आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल (मुख्यमंत्री दिल्ली) से सम्पर्क करें, जिनकी सरकार ने दिल्ली में सरकारी स्कूलों की कायापलट कर दी है। मुमकिन है कि इस मीटिंग से कांग्रेस सरकार के कान खड़े हो जाएं।
बीजेपी से उसकी सरकार रहते आप सम्पर्क कर चुके, वर्तमान कांग्रेस सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आपको नहीं मिल रही। किसी अन्य नेता से मिलने से कोई परिणाम आने वाला नहीं। मदरसा पैराटीचर्स ओवैसी से मिले थे, नतीजा क्या हुआ? धरनास्थल पर अब सिर्फ़ वही बैठे हैं। यह आंदोलन सिर्फ़ मदरसा पैराटीचर्स का बनकर रह गया है और अन्य संविदा शिक्षाकर्मी "चढ़ जा बेटा सूली पर" की धुन बजाकर अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं। सरकार भी यह तमाशा देख रही है, इसलिये वो टेंशन-मुक्त पोज़िशन में है।
03. किसानों की तरह आंदोलन करें : अगर आप आंदोलन के मार्ग से मंज़िल पाना चाहते हैं तो फिर 15000 परिवारों को धरनास्थल पर ले आएं। सियासत सरों को गिनती है, उसे चंद चेहरों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। बात कड़वी है, मगर यही सच है।
04. ख़ुद-मुख़्तार बनें और अपना एजुकेशन स्टार्टअप बनाएं : शिक्षा सबकी ज़रूरत है। यह कोई ऐसी शय नहीं है कि जिसके बिना किसी का काम चल जाए। उठ खड़े होइये। अपना ख़ुद का एजुकेशन सेटअप बनाइये। क़्वालिटी एजुकेशन दीजिये। लोग पेमेंट करने के लिये तैयार हैं। पैराटीचर्स के छोटे-छोटे ग्रुप्स इस काम को यक़ीनी तौर पर कर सकते हैं, अगर वे ऐसा करने की ठान लें।
अगर आपको यह पोस्ट उपयोगी लगी हो तो हमारे फेसबुक पेज पर कमेंट करके आप अपनी राय भी दे सकते हैं।
सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
Leave a comment.