न्यू वर्ल्ड ऑर्डर-09 : भारत सरकार अधिनियम 1858 लागू
सन 1857 की क्रांति को नाकाम कर देने के बाद ज़बरदस्त ख़ूनी खेल खेला गया। इसमें सबसे ज़्यादा क़त्लेआम मुसलमानों का हुआ। पुरानी दिल्ली का कोई पेड़ ऐसा नहीं था जहाँ किसी मुसलमान की लाश न टंगी हो। "1857 की क्रांति के लिये जिहाद का फ़तवा" देने वाले आलिमों को फाँसी पर चढ़ाया गया और तोपों से उड़ाया गया। हैदराबाद, भोपाल, रामपुर समेत जिन मुस्लिम रियासतों के नवाबों ने 1857 की जंग में अंग्रेज़ों का साथ दिया था, वे इस क़त्लेआम की ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते। इसके साथ ही ब्रिटेन की संसद द्वारा पारित भारत सरकार अधिनियम 1858 (Government of India Act 1858) लागू कर दिया गया। महारानी विक्टोरिया के हाथों में भारत का राजपाट सौंप दिया गया। आज की इस कड़ी में हम इस एक्ट और महारानी विक्टोरिया के भाषण की कुछ ख़ास बातें बताने की कोशिश करेंगे।
एक अंग्रेज़ आईसीएस अफ़सर विलियम हंटर ने मुसलमानों के बारे में एक रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट के मुताबिक ग़दर (1857 की क्रांति) इसलिए हुआ था कि इस्लाम किसी रानी या राजा की ताक़त को स्वीकार नहीं करता। लिहाज़ा, मुसलमान शासक रानी विक्टोरिया के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए।
अंग्रेज़ों ने ग़द्दारों की मदद से जंग जीती ज़रूर थी लेकिन उनके दिल ख़ौफ़ मौजूद था। इसीलिये उन्होंने क़त्लेआम के ज़रिए जनता को डराने की कोशिश की।
विजेता शासक हमेशा पराजित क़ौम का ख़ून बहाता है और उसे ज़लील (अपमानित) करता है। अंग्रेज़ों ने भी यही किया। जिन लोगों ने 1857 की क्रांति में हिस्सा लिया उन्हें बेरहमी से क़त्ल करके भारत की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की गई कि अंग्रेज़ी शासन का विरोध करने का अंजाम ऐसा होगा।
ख़ूने-मुस्लिम का हर-इक गाँव बहाने वाले,
क्या कहेंगे तुझे आख़िर ये ज़माने वाले?
हिटलर से ज्यादा खून बहाया अंग्रेज़ों ने
1857 की जंग हिन्दू-मुसलमान दोनों ने मिलकर लड़ी थी। ‘हर-हर महादेव’ के साथ ‘अल्लाह-हो-अकबर’ के नारे गूंजते थे। इस बात से अंग्रेज़ घबरा गये थे। लड़ाई ख़त्म होने के बाद इसका उपाय किया गया। दिल्ली में पकड़े गए हिन्दू सैनिकों को छोड़ दिया गया। कहते हैं कि दिल्ली में एक ही दिन 22 हज़ार मुसलमान सैनिकों को फांसी दे दी गई। यही तरीक़ा कई जगह आजमाया गया। फिर हिन्दुओं को सरकारी नौकरी और ऊंचे पद दिए जाने लगे। मुसलमानों को दूर ही रखा गया। धीरे-धीरे जनता में हिन्दू-मुसलमान की भावना फैलने लगी। इसके ठीक बीस साल बाद पॉलिसी बदल दी गई। अब मुसलमानों को ऊंचे पदों पर बैठाया जाने लगा और हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जाने लगा। (9 फरवरी 2018 को इंडिया टुडे मैगजीन की सहयोगी वेबसाइट लल्लनटॉप डॉट कॉम पर प्रकाशित एक लेख का अंश)
1857 की क्रांति नाकाम, भारत हुआ ग़ुलाम
भारत सरकार अधिनियम 1858, यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) की संसद द्वारा पारित किया गया एक अधिनियम था। इसे 2 अगस्त 1858 को पारित किया गया था। इस अधिनियम के ज़रिए भारत को सीधे ब्रितानी राजशाही के अधीन कर दिया गया। भारत सरकार अधिनियम 1858 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे,
◆ मुग़ल बादशाह का पद ख़त्म करके भारत में मुग़ल शासन के ख़ात्मे का ऐलान कर दिया गया।
◆ भारत में कंपनी का शासन समाप्त करके शासन ब्रिटिश महारानी को दे दिया गया।
◆ भारत के शासन पर इंग्लैंड की संसद का सीधा व प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो गया।
◆ ब्रिटिश संसद में भारत मंत्री का पद एवं BOC व BOD को ख़त्म करके 15 सदस्यीय भारतीय परिषद का गठन किया गया।
◆ भारत के गवर्नर-जनरल का नाम "वायसराय" (राजमुकुट का प्रतिनिधि) कर दिया गया तथा वह भारत सचिव की आज्ञा के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य था। महारानी द्वारा भारत के वाइसरॉय की नियुक्ति की जाती थी।
1 नवंबर 1958 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने एक शाही ऐलान किया। भारत में उनके प्रतिनिधि यानी वायसराय लॉर्ड केनिंग ने इलाहाबाद में देसी राजाओं की सभा में उसे पढ़कर सुनाया। महारानी ने कहा था,
◆ हमने उन सभी भारतीय प्रदेशों को अपने अधिकार में लेने का फैसला किया है जो इससे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में थे और जिन पर वो हमारी ओर से राज कर थी।
◆ हम इन प्रदेशों की जनता से, अपने लिये, अपने वारिसों के लिये और अपने उत्तराधिकारियों के लिये "राजभक्ति की उम्मीद" करते हैं।
◆ हम लॉर्ड केनिंग को अपने भारतीय प्रदेशों का पहला वायसराय और गवर्नर जनरल नियुक्त करते हैं।
◆ हम उन तमाम संधियों (Treaties) को ख़ुशी के साथ स्वीकार करते हैं जो कंपनी ने राजाओं के साथ की है और उन्हें पूरा करने का यक़ीन दिलाते हैं।
◆ हमें अपने भारतीय प्रदेशों के विस्तार की इच्छा नहीं है। हम दूसरों के प्रदेशों या अधिकारों पर न तो ख़ुद छापा मारेंगे और न किसी और को अपने प्रदेशों पर छापा मारने की इजाज़त देंगे।
◆ हम अपने अधिकार, प्रतिष्ठा और सम्मान की तरह भारतीय राजाओं के अधिकार और सम्मान का आदर करेंगे।
◆ हम अपनी प्रजा पर अपने धार्मिक विचारों को नहीं थोपेंगे। हम अपनी प्रजा के धार्मिक जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
◆ क़ानून बनाने और और उनको लागू करने में भारतीयों के प्राचीन अधिकारों, प्रथाओं और रीति-रिवाजों का ध्यान रखा जाएगा।
◆ सभी के साथ समान और निष्पक्ष न्याय किया जाएगा।
◆ नौकरी में भर्ती का एकमात्र आधार योग्यता होगी। धर्म और जाति को महत्व नहीं दिया जाएगा।
◆ अपनी इस घोषणा में महारानी ने अंग्रेज़ों की हत्या में जो क्रांतिकारी शामिल नहीं थे, उनको माफ़ करने का ऐलान किया। क़ैदियों की रिहाई के आदेश जारी किये।
◆ देसी रियासतों के राजाओं और नवाबों से वादा किया गया कि वे अपने गोद लिये गये बेटों को भी वारिस बना सकेंगे।
महारानी विक्टोरिया ने और भी कई लुभावने वादे किये लेकिन उनमें से ज़्यादातर वादों पर पालन नहीं हुआ। देसी राजाओं ने महारानी साहिबा के भाषण का स्वागत किया क्योंकि ब्रिटिश राजसत्ता ने उनकी हुकूमत को बहाल रखा था। इन राजाओं को 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेज़ों का साथ देने का यह इनाम मिला था।
अगली कड़ी में हम उन क़ानूनों की जानकारी देंगे जो अंग्रेज़ों ने बनाए, जिनमें से ज़्यादातर क़ानून आज भी चल रहे हैं। न्यू वर्ल्ड ऑर्डर की हक़ीक़त को समझने के लिये हमारे साथ बने रहें। इस आर्टिकल को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर भी करें।
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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़,
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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